THE PROTECTION OF CHILDREN FROM SEXUAL OFFENCES ACT (No. 32 of 2012)
लैंगिक अपराधों
से बालकों का संरक्षण अधिनियम (2012 का अधिनियम
संख्यांक 32
[19th June, 2012] ·
लैंगिक हमला, लैंगिक उत्पीड़न और अश्लील साहित्य के
अपराधों से बालकों का संरक्षण करने
और ऐसे अपराधों का
विंचारण करने के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना तथा उनसे संबंधित या आनुषंगिक विषयों
के लिए उपबंध करने के लिए अधिनियम।
• संविधान के
अनुच्छेद 15 का खंड (3) अन्य
बातों के साथ राज्य के
बालकों के लिए विशेष उपबंध करने के लिए सशक्त करता है;
• संयुक्त राष्ट्र की महासभा द्वारा बालकों के. अधिकारों से
संबंधित सम्मेलन में अंगीकृत किए गए
प्रस्ताव, जिसमें बालक के सर्वोत्तम हित को सुरक्षित करने के लिए सभी
राज्य पक्षकारों द्वारा पालन किए जाने वाले मानकों को विहित किया गया है,
उसे
भारत सरकार द्वारा तारीख 11 दिसम्बर, 1992 को अंगीकृत किया गया है
; • बालक के उचित विकास के लिए यह आवश्यक है कि प्रत्येक
व्यक्ति द्वारा उसकी निजता और गोपनीयता के अधिकार का सभी प्रकार से सम्मान करते हुए तथा
किसी न्यायिक प्रक्रिया के सभी प्रक्रमों के माध्यम से संरक्षित और सम्मानित
किया जाए:
• यह अनिवार्य है
कि विधि ऐसी रीति से प्रवर्तित हो कि बालक के अच्छे शारीरिक, भावात्मक, बौद्धि और सामाजिक विकास को सुनिश्चित करने के लिए प्रत्येक प्रक्रम
पर बालक के सर्वोत्तम हित और कल्या पर सर्वोपरि महत्व के रूप में ध्यान दिया जाए:
• बालक के अधिकारों
से संबंधित अभिसमय के राज्य पक्षकारों से निम्नलिखित का निवारण करने
केलिए सभी समुचित राष्ट्रीय, द्विपक्षीय या बहुपक्षीय उपाय करना अपेक्षित है,-
(क) किसी विधिविरुद्ध
लैंगिक क्रियाकलाप में लगाने के लिए
किसी बालक को उत्प्रेरित या प्रपीड़न करना;
(ख) वेश्यावृत्ति
या अन्य विधि विरुद्ध लैंगिक व्यवसायों में
बालकों का शोषणात्मक उपयोग करना;
(ग) अश्लील गतिविधियों और
सामग्रियों से बालकों के
शोषणात्मक उपयोग करना;
• बालकों के
लैंगिक शोषण और लैंगिक दुरुपयोग जघन्य अपराध हैं, और उन पर प्रभावी रूप से कार्रवाई करने की
आवश्यकता है;
• भारत गणराज्य
के तिरसठवें वर्ष में संसद् द्वारा निम्नलिखित रूप
में यह अधिनियमित हो :-
अध्याय 1 प्रारंभिक
1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ .-
(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 है।
(2) इसका विस्तार '[x x x] संपूर्ण भारत पर है।. 31/10/19
(3) यह उस तारीख' को प्रवृत्त होगा, जो केन्द्रीय सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, नियत करे।
2. परिभाषाएँ .- (1) इस अधिनियम
में, जब तक कि संदर्भ से
अन्यथा अपेक्षित न हो,-
(क) "गुरुतर प्रवेशन लैंगिक हमला" का वही A अर्थ है जो धारा
5 में है;
(ख)-"गुरुतर लैंगिक हमला" का वही अर्थ है जो धारा 9 में है;
(ग) "सशस्त्र बल या सुरक्षा बल" से संघ के सशस्त्र बल या अनुसूची में यथाविर्निष्ट
सुरक्षा बल या पुलिस बल
अभिप्रेत है;
(घ) "बालक" से ऐसा कोई व्यक्ति,
जिसकी आयु अठारह वर्ष से कम है, अभिप्रेत है;
(घक) "बालक संबंधी अश्लील साहित्य" से किसी बालक को सम्मिलित करते हुए लैंगिक संबंध, बनाने के आचरण का कोई भी दृश्य चित्रण अभिप्रेत है, जिसके अंतर्गत फोटो, वीडियों, डिजिटल या कम्प्यूटर जनित ऐसी आकृति, जो वास्तविक बालक होने जैसी लगे और सृजित, रूपांतरित या परिवर्तित किन्तु बालक का
चित्र प्रतीत होने वाली आकृति भी है;I
(ङ) "घरेलू संबंध" का वही अर्थ है जो घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2005
(2005 का 43) के खंड 2(च) में है;
(च) "प्रवेशन लैंगिक हमला" का वही अर्थ है जो धारा 3 में है;
(छ) "विहित" से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है;
(ज) "धार्मिक संस्था" से उसका वही अर्थ है जो धार्मिक संस्था (दुरुपयोग निवारण) अधिनियम, 1988
(1988 का 41) में है;
(झ) "लैंगिक हमला" का वही अर्थ है जो धारा 7 में है ;
ञ) "लैंगिक उत्पीड़न" का वही अर्थ है जो धारा 11 में है ;
(ट) "साझी गृहस्थी" से ऐसी गृहस्थी अभिप्रेत है जहां अपराध से आरोपित व्यक्ति, बालक के साथ घरेलू नातेदारी
में रहता है या किसी समय पर रह चुका है;
(ठ) "विशेष न्यायालय" से धारा 28 के अधीन उस रूप में अभिहित कोई अभियोजक अभिप्रेत है;
(ड) "विशेष लोक अभियोजक" से धारा 32 के अधीन नियुक्त कोई अभियोजक अभिप्रेत है।
(2) उन शब्दों और पदों के, जो इसमें प्रयुक्त हैं और परिभाषित नहीं हैं किन्तु भारतीय दंड संहिता, 1860
(1860 का 45), दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2),
'[किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015
(2016 का 2)] और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (2000 का 21) में परिभाषित हैं, वही अर्थ होंगे जो उक्त संहिताओं या अधिनियमों में हैं।
अध्याय 2 बालकों के विरुद्ध लैंगिक अपराध
क .- प्रवेशन
लैंगिक हमला और उसके लिए दंड 3. प्रवेशन लैंगिक हमला .- कोई व्यक्ति "प्रवेशन लैंगिक हमला" करता है, यह कहा जाता है, यदि वह-
(क) अपना लिंग, किसी भी सीमा तक किसी बालक की योनि, मुंह, मूत्रमार्ग या गुदा में प्रवेश करता है या बालक
से उसके साथ या किसी अन्य व्यक्ति के साथ
ऐसा करवाता है; या
(ख) किसी वस्तु या
शरीर के किसी ऐसे भाग को, जो लिंग नहीं है, किसी सीमा तक बालक की योनि, मूत्रमार्ग या
गुदा में घुसेड़ता है या बालक से उसके साथ या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा करवाता है; या
(ग) बालक के शरीर के किसी भाग के साथ ऐसा अभिचालन करता है जिससे कि वह बालक की योनि, मूत्रमार्ग या गुदा में
या बालक के शरीर के किसी भाग में
प्रवेश कर सके या बालक से उसके साथ या किसी अन्य
व्यक्ति के साथ ऐसा करवाता है; या
(घ) बालक के लिंग, योनि, गुदा या मूत्रमार्ग पर अपना. मुंह लगाता
है या ऐसे व्यक्ति या किसी अन्य व्यक्ति के साथ
बालक से ऐसा करवाता है।
4. प्रवेशन
लैंगिक हमले के लिए दंड .-
[(1)] जो कोई प्रवेशन
लैंगिक हमला करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के
कारावास से जिसकी अबधि '[दस वर्ष] से कम की नहीं होगी किन्तु जो। आजीवन कारावास तक
की हो सकेगी और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।
[(2) जो कोई सोलह वर्ष से कम आयु के किसी बालकु पर प्रवेशन
लैंगिक हमला करेगा, वह कारावास से, जिसकी अवधि बीस वर्ष से कम की नहीं होगी, किन्तु जो आजीवन काराबास, जिसका अभिप्राय उस व्यक्ति के शेष प्राकृत जीवनकाल के लिए कारावास होगा, तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और
जुर्माने का भी दायी होगा।
(3) उपधारा (1) के अधीन अधिरोपित जुर्माना न्यायोचित और युक्तियुक्त होगा और उसका संदाय, ऐसे पीड़ित के चिकित्सा व्ययों और पुनर्वास की पूर्ति के लिए ऐसे पीड़ित को किया जाएगा।]
ख .- गुरुतर प्रवेशन लैंगिक हमला और उसके लिए दंड
5. गुरुत्तर प्रवेशन लैंगिक हमला .- (क) जो कोई पुलिस अधिकारी होते हुए, किसी बालक पर-
(i) पुलिस थाने या
ऐसे परिसरों की सीमाओं के भीतर जहां उसकी नियुक्ति की गई है; या
(ii) किसी थाने के
परिसर शीर, चाहे उस पुलिस थाने में अबस्थित
है या नहीं जहां उसकी नियुक्ति की गई हैं ; या
(iii) अपने कर्तव्यों के अनुक्रम में या अन्यथा; या
(iv) जहां वह, पुलिस अधिकारी के रूप में ज्ञात हो या उसकी पहचान की
गई हो, प्रवेशन लैंगिक
हमला करता है; या
(ख) जो कोई सशस्त्र बल या
सुरक्षा बल का सदस्य होते हुए बालक पर
(i) ऐसे क्षेत्र की सीमाओं के भीतर जहां वह व्यक्ति तैनात है ;
या
(ii) बलों या सशस्त्र बलों की कमान के अधीन क्षेत्रों में;
या
(iii) अपने कर्तव्यों के अनुक्रम में या अन्यथा;या
(iv) जहां उक्त व्यक्ति, सुरक्षा या सशस्त्र बलों के सदस्य के रूप में ज्ञात हो या उसकी पहचान की गई हो, प्रवेशन लैंगिक
हमला करता है; या
(ग) जो कोई लोक सेवक होते
हुए, किसी बालक पर प्रवेशन
लैंगिक हमला करता है; या
(घ) जो कोई किसी जेल, प्रतिप्रेषण गृह, संरक्षण गृह, संप्रेषण गृह या
तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा या उसके अधीन स्थापित अभिरक्षा या देखरेख और संरक्षण के किसी
स्थान का प्रबंध या कर्मचारिवृंद ऐसे जेल, प्रतिप्रेषण गृह, संप्रेषण गृह या अभिरक्षा या देखरेख और संरक्षण के अन्य स्थान पर रह रहे किसी बालक पर
प्रवेशन लैंगिक हमला करता है; या
(ङ) जो कोई किसी अस्पताल, चाहे सरकारी या
प्राइवेट हो, का प्रबंध या कर्मचारिवृंद होते हुए उस अस्पताल में किसी
बालक पर प्रवेशन लैंगिक हमला करता है; या
(च) जो कोई किसी शैक्षणिक
संस्था या धार्मिक संस्था का प्रबंध या कर्मचारिवृंद होते हुए उस संस्था में किसी बालक पर
प्रवेशन लैंगिक हमला करता है; या
(छ) जो कोई किसी बालक पर
सामूहिक प्रवेशन लैंगिक हमला करता है; या ·
स्पष्टीकरण .- जहां किसी बालक पर, किसी समूह के एक या
अधिक व्यक्तियों द्वारा उनके सामान्य आशय को अग्रसर करने में लैंगिक हमला किया गया है वहां
ऐसे प्रत्येक द्वारा इस खंड के अर्थातर्गत सामूहिक प्रवेशन लैंगिक हमला किया जाना समझा जाएगा
और ऐसा प्रत्येक व्यक्ति उस कृत्य के लिए वैसी ही रीति से दायी होगा मानो
वह उसके द्वारा अकेले किया गया था; या(ज) जो कोई, किसी बालक पर
घातक आयुध, अग्नयायुध, गर्म पदार्थ या
संक्षारक पदार्थ का प्रयोग करते हुए प्रवेशन लैंगिक हमला करता है; या
(झ) जो कोई, किसी बालक को घोर
उपहति कारित करते हुए
या शारीरिक रूप से नुकसान और क्षति करते हुए या उसके/उसकी जननेंद्रियों को
क्षति करते हुए प्रवेशन
लैंगिक हमला करता है; या
(ञ) जो कोई, किसी बालक पर
प्रवेशन लैंगिक हमला करता है जिससे,-
(i) बालक शारीरिक रूप से अशक्त हो जाता है या बालक मानसिक
स्वास्थ्य अधिनियम, 1987 (1987 का 14) की धारा 2 के खंड [(ख)] के अधीन
यथापरिभाषित मानसिक रुप से रोगी हो जाता है या किसी प्रकार का हास कारित करता
है जिससे बालक अस्थायी या स्थायी रूप से नियमित कार्य करने में अयोग्य हो जाता
है; '[*
** ]
(ii) बालिका की दशा में, वह लैंगिक हमले के परिणामस्वरूप, गर्भवती हो जाती है;
(iii) बालक, मानव
प्रतिरक्षाह्ास विषाणु या किसी ऐसे अन्य प्राणघातक रोग या संक्रमण से ग्रस्त हो जाता है जो
बालक को शारीरिक रूप से अयोग्य, या नियमित कार्य
करने में मानसिक रूप से अयोग्य करके अस्थायी या स्थायी रूप से हरास कर सकेगा; [ *** ]
[(iv) बालक की मृत्यु
हो जाती है; या
(ट) जो कोई बालक की मानसिक और शारीरिक अशक्तता का लाभ
उठाकर बालक पर प्रवेशन लैंगिक हमला करता है; या
(ठ) जो कोई उसी बालक पर
एक से अधिक बार या बार-बार प्रवेशन लैंगिक हमला करता है; या (ड) जो कोई बारह वर्ष से कम आयु के किसी बालक पर प्रवेशन
लैंगिक हमला करता है; या
(ढ) जो कोई, बालक का रक्त या
दत्तक या विवाह या संरक्षकता द्वारा या पोषण देखभाल करने वाला नातेदार या बालक
के मात-पिता के साथ घरेलू संबंध रखते हुए या जो बालक के साथ साझी गृहस्थी में रहता
है, ऐसे बालक पर लैंगिक हमला करता है; या
(ण) जो कोई बालक को सेवा प्रदान करने वाली किसी संस्था का
स्वामी या प्रबंध या कर्मचारिवृंद होते हुए बालक पर प्रवेशन लैंगिक हमला करता है; या
(त) जो कोई, किसी बालक के
न्यासी या प्राधिकारी के पद पर होते हुए बालक की किसी संस्था या गृह या
कहीं और, बालक पर प्रवेशन लैंकिग हमला करता है; या
(थ) जो कोई, यह जानते हुए कि बालक गर्भ से है, बालक पर प्रवेशन
लैंगिक हमला करता है; या
(द) जो कोई, बालक पर प्रवेशन
लैंगिक हमला करता है और बालक की हत्या करने का प्रयत्न करता है; या .
(ध) जो कोई, 'सामुदायिक या
पंथिक हिंसा के दौरान या या प्राकृतिक विपत्ति की स्थिति या उस प्रकार किन्हीं
भी स्थितियों के दौरान] बालक पर प्रवेशन लैंगिक हमला करता है; या
(न) जो कोई, बालक पर प्रवेशन
लैंगिक हमला करता है और जो पूर्व में इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध करने
के लिए या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन दंडनीय कोई लैंगिक अपराध किए जाने के लिए
दोषसिद्ध किया गया है; या
(प) जो कोई, बालक पर प्रवेशन लैंगिक हमला करता है और बालक
को सार्वजनिक रूप से विवस्त्र करता है या नग्न करके प्रदर्शन करता है; वह गुरुतर प्रवेशन लैंगिक हमला करता है, यह कहा जाता है।'[
6. गुरुतर
प्रवेशन लैंगिक हमले के लिए दंड .-
(1) जो कोई गुरुतर प्रवेशन लैंगिक हमला करेगा, वह कठिन कारावास
से, जिसकी अवधि बीस वुर्ष से कम की नहीं
होगी, किन्तु जो आजीवन 20 कारावांस, जिसका अभिप्राय उस व्यक्ति के शेष प्राकृत जीवनकाल
के लिए कारावास होगा, तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा या
मृत्यु से दंडित किया जाएगा।
(2) उपधारा (1) के अधीन अधिरोपित जुर्माना न्यायोचित और
युक्तियुक्त होगा और उसका संदाय, पीड़ित के चिकित्सा व्ययों और पुनर्वास की
पूर्ति के लिए ऐसे पीड़ित को किया जाएगा ।]
ग .- लैंगिक हमला और उसके लिए दंड
7. लैंगिक हमला .- जो कोई, लैंगिक आशय से बालकं की योनि, लिंग, गुदा या स्तनों
को स्पर्श करता है या बालक से ऐसे व्यक्ति या अन्य व्यक्ति की योनि, लिंग, गुदा या स्तन का
स्पर्श कराता है या लैंगिक आशय से कोई अन्य कार्य करता है जिसमें प्रवेशन किए बिना
शारीरिक संपर्क अंतर्ग्रस्त होता है, लैंगिक हमला करता
है, यह कहा जाता है।
8. लैंगिक हमले के लिए दण्ड .- जो कोई, लैंगिक हमला करेगा वह दोनों में से किसी भांति
के 3-5 कारावास से जिसकी
अवधि तीन वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो पांच वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा
और जुर्माने से भी. दड़नीय होगा।
घ .- गुरुतर
लैंगिक हमला और उसके लिए दंड
9. गुरुतर लैंगिक हमला .- (क) जो कोई पुलिस अधिकारी होते हुए, किसी बालक पर-
(i) पुलिस थाने या ऐसे परिसरों की सीमाओं के भीतर जहां उसकी नियुक्ति की गई है; या
(ii) किसी थाने के परिसरों में चाहे उस पुलिस थाने में अवस्थित है या नहीं जहां जिसमें उसकी
नियुक्ति की गई है; या
(iii) अपने कर्तव्यों के अनुक्रम में या अन्यथा; या
(iv) जहां वह, पुलिस अधिकारी के रूप में ज्ञात हो या उसकी पहचान की गई हो, प्रवेशन लैंगिक हमला करता है; या
(ख) जो कोई, सशस्त्र बल या सुरक्षा बल का सदस्य होते हुए
बालक पर,-
(i) ऐसे क्षेत्र की सीमाओं के भीतर जहां वह व्यक्ति तैनात है;
या
(ii) सुरक्षा या सशस्त्र बलीं की कमान के अधीन किन्हीं क्षेत्रों में ; या
(iii) अपने कर्तव्यों के अनुक्रम में या अन्यथा; या
(iv) जहां वह सुरक्षा या सशस्त्र बलों के सदस्य के रूप में ज्ञात हो या उसकी पहचान की गई हो, लैंगिक हमला करता है; या
(ग) जो कोई लोक
सेवक होते हुए, किसी बालक पर लैंगिक हमला करता है; या
(घ) जो कोई किसी
जेल, प्रतिप्रेषण गृह या संरक्षण गृह या संप्रेक्षण गृह या तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा या उसके अधीन स्थापित अभिरक्षा या
देखरेख और संरक्षण के
किसी अन्य स्थान का प्रबंध या कर्मचारिवृंद
होते हुए, ऐसे जेल या प्रतिप्रेषण गृह या संप्रेक्षण गृह या अभिरक्षा या देखरेख और
संरक्षण के अन्य स्थान पर रह
रहे किसी बालक पर लैंगिक हमला करता है; या
(ङ) जो कोई, किसी अस्पताल, चाहे सरकारी या प्राइवेट हो, का प्रबंध या
कर्मचारिवृंद होते हुए उस अस्पताल में किसी
बालक पर लैंगिक हमला करता है; या
(च) जो कोई किसी शैक्षणिक
संस्था या धार्मिक संस्था का प्रबंध तंत्र या कर्मचारिवृंद होते हुए उस संस्था में के
किसी बालक पर लैंगिक हमला करता है; या
(छ) जो कोई, किसी बालक पर
सामूहिक लैंगिक हमला करता है।
·स्पष्टीकरण .- जहां किसी बालक पर, किसी समूह के एक या अधिक व्यक्तियों द्वारा उनके सामान्य आशय को
अग्रसर करने में लैंगिक हमला किया गया है वहां ऐसे प्रत्येक व्यक्ति द्वारा
इस खंड के अर्थांतर्गत
सामूहिक लैंगिक हमला किया जाना समझा जाएगा और ऐसा प्रत्येक व्यक्ति उस कृत्य
के लिए वैसे ही रीति
से दायी होगा मानो वह उसके द्वारा अकेले किया गया था; या
(ज) जो कोई बालक पर घातक आयुध, अमन्यायुध, गर्म पदार्थ या संक्षारक पदार्थ का प्रयोग करते
हुए लैंगिक हमला करता
है; या
(झ) जो कोई, किसी बालक को घोर उपहति कारित करते हुए
या शारीरिक रूप से नुकसान और क्षति करते हुए या उसके/ उसकी जननेंद्रियों को क्षति करते हुए
प्रवेशन लैंगिक हमला करता है; या
(ञ) जो कोई, किसी बालक पर
लैंगिक हमला करता है जिससे- (i) बालक शारीरिक रूप
से अशक्त हो जाता है या बालक मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 1987 (1987 का
14) की धारा 2 के खंड
(ठ) के अधीन यथापरिभाषित
मानसिक रोगी हो जाता है या किसी प्रकार का ऐसा ह्ास कारित करता है
जिससे बालक अस्थायी या स्थायी रूप से नियमित कार्य करने में अयोग्य हो जाता है; या (ii) बालक, मानव प्रतिरक्षाह्ास विषाणु या किसी ऐसे अन्य
प्राणघातक रोग या संक्रमण से ग्रस्त हो जाता है जो बालक को शारीरिक रूप से अयोग्य, या नियमित कार्य करने में मानसिक रूप से अयोग्य
करके अस्थायी या स्थायी रूप से ह्रास कर सकेगा; या
(ट) जो कोई, बालक की मानसिक
और शारीरिक अशक्तता का लाभ उठाते हुए बालक पर लैंगिक हमला करता है; या
(ठ) जो कोई उसी बालक पर एक से अधिक बार या बार-बार
लैंगिक हमला करता है; या
(ड) जो कोई बारह वर्ष से
कम आयु के किसी बालक पर लैंगिक हमला करता है; या
(ढ) जो कोई, बालक का रक्त या
दत्तक या विवाह या संरक्षकता द्वारा या पोषण देखभाल करने वाला नातेदार या बालक
के मात-पिता के साथ घरेलू संबंध रखते हुए या जो बालक के साथ साझी गृहस्थी में रहता
है, ऐसे बालक पर लैंगिक हमला करता है; या
(ण) जो कोई, बालक को सेवा
प्रदान करने वाली किसी संस्था का स्वामी या प्रबंध या कर्मचारिवृंद होते हुए बालक पर
लैंगिक हमला करता है; या
(त) जो कोई, किसी बालक के
न्यासी या प्राधिकारी के पद पर होते हुए बालक की किसी संस्था या गृह या
कहीं और, बालक पर लैंगिक हमला करता है; या
(थ) जो कोई, यह जानते हुए कि बालक गर्भ से है, बालक पर लैंगिक
हमला करता है; या
(द) जो कोई, बालक पर लैंगिक हमला करता है और बालक की हत्या
करने का प्रयत्न करता है; या (ध) जो कोई, '[हिंसा के दौरान या प्राकृतिक विपत्ति की
स्थिति या उस प्रकार की किन्हीं भी स्थितियों के दौरान] के दौरान बालक पर लैंगिक हमला करता है; या
(न) जो कोई, बालक पर लैंगिक हमला करता है और जो पूर्व में
इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध करने के लिए या तत्समय प्रवृत्त किसी
अन्य विधि के अधीन
दंडनीय कोई लैंगिक अपराध किए जाने के लिए दोषसिद्ध किया गया है; या
(प) जो कोई, बालक पर लैंगिक
हमला करता है और बालक को सार्वजनिक रूप से विवस्त्र करता है या नग्न करके
प्रदर्शन करता है; वह गुरुतर लैंगिक हमला करता है, यह कहा जाता है।
(फ) जो कोई इस आशय से कि
कोई बालक प्रवेशन लैंगिक
हमले के प्रयोजन के लिए शीघ्र लैंगिक परिपक्वता प्राप्त करे, किसी बालक को कोई मादक द्रव्य, हार्मोन या कोई रासायनिक पदार्थ लिएजाने के लिए
प्रेरित करता है, उत्प्रेरित करता है, फुसलाता है या प्रपीड़ित करता है या देता है या
देने के लिए किसी को
निदेश देता है या लिए जाने में सहायता करता है;]
10. गुरुतर
लैंगिक हमले के लिए दंड .- जो कोई गुरुतर लैंगिक हमला करेगा वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि पांच वर्ष से
5-7 कम की नहीं होगी
किन्तु जो सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।
ङ .- लैंगिक उत्पीड़न और उसके लिए दंड
11. लैंगिक उत्पीड़न .- (क) कोई
व्यक्ति, किसी बालक पर लैंगिक
उत्पीड़न करता है, यह कहा जाता है जब ऐसा व्यक्ति लैंगिक आशय से-
(i) कोई शब्द कहता है या ध्वनि या अंगविक्षेप करता है या कोई वस्तु या शरीर का भाग इस आशय के साथ प्रदर्शित करता है कि बालक द्वारा ऐसा
शब्द या ध्वनि सुनी
जाएगी या ऐसा अंगविक्षेप या वस्तु या शरीर का भाग
देखा जाएगा; या
(ii) किसी बालक को उसके शरीर या उसके शरीर का कोई भाग प्रदर्शित करवाता है जिससे उसको ऐसे व्यक्ति या अन्य व्यक्ति द्वारा देखा जा सके;
(iii) अश्लीय प्रयोजनो के लिए किसी प्ररूप या मीडिया में किसी बालक को कोई वस्तु दिखाता है; या (iv) बालक को या तो सीधे या इलेक्ट्रानिक, अंकीय या किसी अन्य साधनों के माध्यम से बार- बार या निरंतर पीछा करता है या देखता है या
संपर्क बनाता है; या
(v) बालक के शरीर के किसी भाग या लैंगिक कृत्य में बालक के अंतर्ग्रस्त होने का, इलेक्ट्रानिक, फिल्म या अंकीय या किसी अन्य पद्धति के माध्यम से वास्तविक या गढ़े गए चित्रण को मीडिया के किसी रूप मे उपयोग करने की धमकी देता है; या
(vi) अश्लील प्रयोजनों के लिए किसी बालक को प्रलोभन देता है या उसके लिए परितोषण देता है। स्पष्टीकरण .- कोई प्रश्न जिसमें "लैंगिक आशय" अंतर्वलित हैं, तथ्य का प्रश्न होगा।t
12. लैंगिक उत्पीड़न के लिए दण्ड .- जो कोई, किसी बालक पर लैंगिक उत्पीड़न करेगा वह दोनों
में से किसी भांति के
कारावास से जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी
दंडनीय होगा।
अध्याय 3 अश्लील साहित्य के प्रयोजनों के लिए बालक का उपयोग और उसके लिए दंड
13. अश्लील
प्रयोजनों के लिए बालक का उपयोग .- जो कोई, किसी बालक का, मीडिया के (जिसमें टेलीबिजन चैनलों या इंटरनेट या कोई
अन्य इलेक्ट्रानिक
प्ररूप या मुद्रित प्ररूप द्वारा प्रसारित कार्यक्रम या विज्ञापन चाहे ऐसे कार्यक्रम या
विज्ञापन का आशय व्यक्तिगत
उपयोग या वितरण के लिए हो या नहीं, सम्मिलित हैं)
किसी प्ररूप में ऐसे लैंगिक परितोषण के प्रयोजनों के लिए उपयोग करता है, जिसमें
निम्नलिखित सम्मिलित हैं-
(क) किसी बालक की
जननेंद्रियों का प्रतिदर्शन करना;
(ख) किसी बालक का उपयोग वास्तविक या नकली लैंगिक
कार्यों में (प्रवेशन के साथ या उसके बिना) करना;
(ग) किसी बालक का अशोभनीय
या अश्लीलतापूर्ण
प्रतिदर्शन करना, वह किसी बालक का अश्लील प्रयोजनों के लिए उपयोग करने के
अपराध का दोषी होगा।
·स्पष्टीकरण .- इस धारा के प्रयोजनों के लिए "किसी बालक
का उपयोग" पद में अश्लील सामग्री को तैयार, उत्पादन, प्रस्थापन, पारेषण, प्रकाशन, सुकर और वितरण
करने के लिए मुद्रण, इलेक्ट्रानिक, कम्प्यूटर या
किसी अन्य तकनीक के किसी माध्यम से किसी बालक को अंतर्वलित करना सम्मिलित है।
14. अश्लील प्रयोजनों के लिए बालक के उपयोग के लिए दंड .-
(1) जो कोई अश्लील प्रयोजनों के लिए किसी बालक या बालकों का उपय्रोग करेगा, वह ऐसे कारावास से, जिसकी अवधि पाँच वर्ष से कम की नहीं होगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा तथा दूसरे
या पश्चात्वर्ती
दोषसिद्धि की दशा में, ऐसे कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष से कम की नहीं होगी, दंडित किया जाएगा
और जुर्माने का भी दायी होगा।
(2) जो कोई उपधारा (1) के अधीन अश्लील प्रयोजनों के लिए किसी बालक या बालकों का उपयोग करके, ऐसे अश्लील कृत्यों में प्रत्यक्ष रूप सेTocc. 14 भाग लेकर, धारा 3 या धारा 5
या धारा 7 या धारा 9 में निर्दिष्ट कोई अपराध करेगा, वह उक्त अपराधों के लिए उपधारा (1) में उपबंधित दंड के अतिरिक्त क्रमशः धारा 4, धारा 6, धारा 8 और धारा
10 के अधीन भी दंडित
किया जाएगा ।]
15. बालकों को सम्मिलित करने वाली अश्लील सामग्री के भंडारकरण के लिए .-
(1) कोई भी व्यक्ति, जो बालक संबंधी अश्लील साहित्य को साझा
या पारेषित करने के आशय से किसी बालक को सम्मिलित करने वाली अश्लील सामग्री का किसी
भी रूप में भंडारकरण करता है या रखता है, किंतु उसे मिटाने
या नष्ट करने या ऐसे अभिहित प्राधिकारी को, जो विहित किया
जाए, रिपोर्ट करने में
असफल होता है, वह पाँच हजार रुपए से अन्यून
के जुर्माने से और दूसरे या पश्चात्वर्ती अपराध की दशा में ऐसे जुमाने से, जो दस हजार रुपए से कम का नहीं होगा, दायी होगा।
(2) कोई भी व्यक्ति, जो बालक को सम्मिलित करने वाली अश्लील
सामग्री का रिपोटिंग के ऐसे प्रयोजन के सिवाय, जो विहित किया जाए, किसी भी समय, किसी भी रीति में
पारेषण या प्रदर्शन या प्रचार या वितरण करता है या न्यायाल में उसका साक्ष्य के रूप
में उपयोग करता है, वह किसी भी भांति के कारावास
से, जो तीन वर्ष तुक का हो सकेगा, या जुर्माने से या दोनों से दंडित किया जाएगा।
(3) कोई भी व्यक्ति, जो किसी बालक को सम्मिलित करने वाली अश्लील सामग्री का किसी भी रूप में
वाणिज्यिक प्रयोजन के लिए भंडारकरण करता है या रखता है, वह पहली दोषसिद्धि पर किसी भी भांति के
कारावास से, जो तीन वर्ष तक का हो सकेगा, या नुर्माने से या दोनों से दंडित किया जाएगा और दूसरी
और पश्चात्वर्ती दोषसिद्धि की दशा में किसी भी भांति के कारावास से, जो पाँच वर्ष कम नहीं होगा, किंतु जो सात वर्ष तक का हो सकेगा, से दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा।
अध्याय 4 किसी अपराध का दुष्प्रेरण और उसके करने का प्रयत्न
16. किसी अपराध का दुष्प्रेरण .- कोई व्यक्ति किसी अपराध के किए जाने का दुष्प्रेरण करता है, जो- पहला .- उस अपराध
को करने के लिए किसी व्यक्ति को उकसाता है; अथवा दूसरा .- उस
अपराध को करने के लिए किसी षड़यंत्र में एक या अधिक अन्य व्यक्ति या
व्यक्तियों के साथ सम्मिलित होता है, यदि उस षड़यंत्र
के अनुसरण में, और उस अपराध को करने के उद्देश्य से, कोई कार्य या अवैध लोप घटित हो जाए; अथवा तीसरा .- उस
अपराध के लिए किए जाने में किसी कार्य या अवैध लोप द्वारा साशय सहायता करता है।
· स्पष्टीकरण I .-
कोई व्यक्ति जो जानबूझकर दुर्व्यपदेशन
द्वारा या तात्विक तथ्य, जिसे प्रकट करने के लिए वह आबद्ध
है, जानबूझकर छिपाने द्वारा, स्वेच्छया किसी
अपराध का किया जाना कारित या उपाप्त करता है अथवा कारित या उपाप्त करने का प्रयत्न करता है, वह उस अपराध का किया जाना उकसाता है, यह कहा जाता है। ·
स्पष्टीकरण II .- जो कोई या तो किसी कार्य के किए जाने से
पूर्व या किए जाने के समय, उस कार्य के लिए जाने को
सुकर बनाने के लिए कोई कार्य करता है और तद्द्वारा उसके किए जाने को सुकर बनाता है उस
कार्य के किए जाने में सहायता करता है, यह कहा जाता है।
·स्पष्टीकरण III .- जो कोई किसी बालक को इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के प्रयोजन के लिए धमकी या
बल प्रयोग या प्रपीड़न के अन्य माध्यम से, अपहरण, कपट, प्रवंचना, शक्ति या स्थिति के दुरुपयोग, भेद्यता या संदायों को देने या प्राप्त करने या
अन्य व्यक्ति पर नियंत्रण रखने वाली किसी व्यक्ति की सहमति प्राप्त करने के लिए फायदों के माध्यम
से नियोजित करता है, आश्रयs देता है या उसे प्राप्त या परिवाहित करता है, उस कार्य के करने में सहायता है, यह कहा जाता है।
17. दुष्प्रेरण
के लिए दंड .- जो कोई इस अधिनियम के अधीन
किसी अपराध का दुष्प्रेरण करता है, यदि दुष्प्रेरित
कार्य दुष्प्रेरण के परिणाम- स्वरूप किया जाता है,[तो वह उस दंड से दंडित किया जाएगा जो उस
अपराध के लिए उपबंधित है। ·
स्पष्टीकरण .- कोई कार्य या अपराध दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप
किया गया कहा जाता है, जब वह उस उकसाहट के
परिणामस्वरूप या उस षड़यंत्र के अनुसरण में या उस सहायता से किया जाता है, जिससे दुष्प्रेरण
गठित होता है।
18. किसी अपराध
को कारित करने के प्रयास के लिए दंड .- जो कोई इस अधिनियम के अधीन दंडनीय किसी
अपराध को करने का प्रयत्न करेगा या किसी अपराध को करवाएगा और ऐसे प्रयत्न में अपराध करने हेतु
कोई कार्य करेगा वह अपराध के लिए उपबंधित किसी भांति के ऐसे कारावास से, यथास्थिति, जिसकी अवधि आजीवन कारावास के आधे तक की या उस
अपराध के लिए उपबंधित कारावास से जिसकी अवधि दीर्घतम अवधि के आधे तक की हो
सकेगी या जुर्माने से या दोनों से दंडनीय होगा
अध्याय 5 मामलों की रिपोर्ट करने के लिए प्रक्रिया
19. अपराधों की
रिपोर्ट करना .- (1) दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में किसी बात के होते हुए
भी कोई व्यक्ति (जिसके अंतर्गत बालक भी हैं) जिसको यह आशंका है कि इस अधिनियम के अधीन
कोई अपराध किए जाने की संभावना है या यह जानकारी रखता है कि ऐसा कोई अपराध किया गया
है, वह निम्नलिखित को ऐसी जानकारी उपलब्ध
कराएगा,- (क) विशेष किशोर
पुलिस यूनिट; या 5JPU (ख) स्थानीय
पुलिस।
(2) उपधारा (1) के अधीन दी गई प्रत्येक रिपोर्ट में .- 1 (क) एक
प्रविष्टि संख्या अंकित होगी और लेखबद्ध की जाएगी; (ग) पुलिस यूनिट
द्वारा रखी जाने वाली पुस्तिका में प्रबिष्ट की जाएगी।
(3) जहां उपधारा (1) के अधीन रिपोर्ट
बालक द्वारा दी गई है, उसे उपधारा (2) के अधीन सरल भाषा में
अभिलिखित किया जाएगा जिससे बालक अभिलिखित की जा रही अंतर्वस्तुओं को समझ सके।
(4) यदि बालक द्वारा नहीं
समझी जाने वाली भाषा में अंतर्वस्तु अभिलिखित की जा रही हैं या बालक यदि वह उसको
समझने में असफल रहता है कोई अनुवादक या कोई दुभाषिया जो ऐसी अर्हताएं, अनुभव रखता हो और
ऐसी फीस के संदाय पर जो विहित की जाए जब कभी आवश्यक समझा जाए उपलब्ध कराया
जाएगा।
(5) जहां विशेष किशोर पुलिस
यूनिट या स्थानीय पुलिस का यह समाधान हो जाता है कि उस बालक को, जिसके विरुद्ध कोई अपराध किया गया है, देखरेख और
संरक्षण की आवश्यकता है तब रिपोर्ट के चौबीस घंटे के भीतर कारणों को लेखबद्ध करने के पश्चात् उसको
बथाविहित ऐसी देखरेख और संरक्षण में (जिसके अंतर्गत बालक को संरक्षण
गृह या निकटतम
अस्पताल में भर्ती किया जाना भी हैं) रखने की तुरन्त व्यवस्था करेगी
(6) विशेष किशोर पुलिस यूनिट
या स्थानीय पुलिस अनावश्यक विलंब के बिना किन्तु चौबीस घटे की अबधि के भीतर
मामले को बालक कल्याण समिति और विशेष न्यायालय या जहां कोई विशेष न्यायालय
पदाभिहित नहीं किया गया है वहां सेशन. ८ न्यायालय को रिपोर्ट करेगी, जिसके अंतर्गत बालक की देखभाल और
संरक्षण के लिए आवश्यकता और इस संबंध में किए गए उपाय भी हैं।
(7) उपधारा (1) के प्रयोजन के
लिए सद्भावपूर्वक दी गई जानकारी के लिए किसी व्यक्ति द्वारा सिविल या दांडिक कोई
दायित्व उपगत नहीं होगा।
20. मामले को रिपोर्ट करने के लिए मीडिया, स्टूडियों और फोटो चित्रण सुविधाओं की बाध्यता - मीडिया या होटल
या लॉज या अस्पताल या क्लब या स्टूडियो या फोटो चित्रण संबंधी सुविधाओं का कोई कार्मिक, चाहे जिस नाम से ज्ञात हो, उनमें नियोजित व्यक्तियों की संख्या को दृष्टि में
लाए बिना किसी ऐसी सामग्री
या वस्तु की किसी माध्यम से जो किसी बालक के लैंगिक शोषण संबंधी(जिसके
अंतर्गत अश्लील साहित्य, लिंग संबंधी या बालक या बालिका
के अश्लील प्रदर्शन करना भी है) यथास्थिति, विशेष किशोर
पुलिस यूनिट या स्थानीय पुलिस को ऐसी जानकारी उपलब्ध कराएगा।
21. मामले की रिपोर्ट करने या अभिलिखित करने में विफल रहने के लिए दंड .- (1) कोई व्यक्ति जो धारा 19 की उपधारा (1) या धारा 20 के अधीन किसी अपराध
के किए जाने की रिपोर्ट करने में विफल रहेगा या जो धारा 19 की उपधारा (2) के अधीन ऐसे अपरांध
को अभिलिखित करने में विफल रहेगा, वह किसी भी भांति
के कारावास से, जो छह मास तक का हो सकेगा या जुर्माने से या दोनों से, दंडित किया जाएगा।
(2) किसी कृंपनी या किसी संस्था (चाहे जिस नाम से ज्ञात हो) का
भारसाधक कोई व्यक्ति जो अपने नियंत्रणाधीन किसी अधीनस्थ के संबंध में धारा
19 की उपधारा (1) के
अधीन किसी अपराध के किए जाने की रिपोर्ट करने में विफल रहेगा, वह ऐसी अवधि के कारावास से, जो एक वर्ष तक का हो सकेगा और
जुर्माने से दंडित किया जाएगा।
(3) उपधारा (1) के उपबंध इस अधिनियम के अधीन किसी बालक
को लागू नहीं होंगे।
22. मिथ्या परिवाद या मिथ्या सूचना के लिए दंड .- (1) कोई व्यक्ति
जो धारा 3, धारा 5, धारा 7 और धारा 9 के अधीन किए गए किसी अपराध के संबंध में
किसी व्यक्ति के विरुद्ध उसको अवमानित करने, उद्यापित करने या
धमकाने या उसकी मानहानि करने के एकमात्र आशय से मिथ्या परिवाद करेगा या
मिथ्या सूचना उपलब्ध कराएगा, वह ऐसे कारावास से, जो छह मास तक का हो सकेगा या
जुर्माने से या दानों से, दंडित किया जाएगा।
(2) जहां किसी बालक द्वारा कोई मिथ्या परिवाद किया गया है या
मिथ्या सूचना उपलब्ध कराई गई है, वहां ऐसे बालक पर
कोई दंड अधिरोपित नहीं किया जाएगा।
(3) जो कोई बालक नहीं होते हुए, किसी बालक के विरुद्ध कोई मिथ्या परिवाद करेगा या मिथ्या
सूचना उसको मिथ्या
जानते हुए उपलब्ध कराएगा जिसके द्वारा जिसके द्वारा ऐसा बालक इस अधिनियम के अधीन किन्हीं
अपराधों के लिए उत्पीड़ित हो, वह एसे कारावास से, जो एक वर्ष तक का हो सकेगा या जुर्माने से या
दोनों से दंडित किया जाएगा।
23. मीडिया के लिए प्रक्रिया .- (1) कोई व्यक्ति किसी भी प्रकार के मीडिया या स्टूडियों या फोटो चित्रण संबंधी
सुविधाओं से, कोई पूर्ण या अधिप्रमाणित
सूचना रखे बिना, किसी बालक के संबंध में कोई
ऐसी रिपोर्ट नहीं करेगा या उस पर कोई टीका-टिप्पणी नहीं करेगा जिससे उसका ख्याति का हनन या उसकी
निजता का अतिलंघन होना प्रभावित होता हो।
(2) किसी मीडिया में कोई रिपोर्ट, बालक की पहचान को, जिसके अंतर्गत
उसका नाम,
पता, फोटोचित्र, परिवार के ब्यौरे, विद्यालय, पड़ोस या कोई अन्य
विशिष्टियां भी हैं, जिनसे बालक की पहचान का प्रकटन
होता हो, प्रकट नहीं करेगी : • परन्तु ऐसे
कारणों से जो अभिलिखित किए जाएंगे, अधिनियम के अधीन
मामले का विचारण करने के लिए सक्षम विशेष न्यायालय ऐसे प्रकटन के लिए अनुज्ञात कर
सकेगा यदि उसकी राय में ऐसा प्रकटन, बालक के हित में
है।
(3) मीडिया या स्टूडियो
या फोटो चित्रण संबंधी सुविधाओं का कोई प्रकाशक या स्वामी संयुक्त रूप से और पृथक् रूप
से अपने कर्मचारी के कार्य और लोपों के लिए दायित्वाधीन होगा।
(4) कोई व्यक्ति जो उपधारा (1) या उपधारा (2) के उपबंधों का
उल्लंघन करेगा, किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास से कम की नहीं होगी किन्तु
जो एक वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से या दोनों से, दडित किए जाने के लिए दायी होगा।
अध्याय 6 बालक के कथनों को अभिलिखित करने के लिए प्रक्रिया
24. बालकों के
कथन को अभिलिखित किया जाना .- (1) बालक के कथन को, बालक के निवास पर या ऐसे
स्थान पर जहां वह साधारणतया निवास करता है या उसकी पंसद के स्थान पर और जहां यथासाध्य, उप-निरीक्षक की पंक्ति से अन्यून किसी महिला पुलिस
अधिकारी द्वारा अभिलिखित किया जाएगा।
(2) बालक के कथन को अभिलिखित किए जाते समय पुलिस
अधिकारी बर्दी में नहीं होगा।
(3) अन्वेषण करने वाला
पुलिस अधिकारी, बालक की परीक्षा करते समय यह सुनिश्चित करेगा कि बालक किसी भी
समय पर अभियुक्त के किसी भी प्रकार के सम्पर्क में न आए।
(4) किसी बालक को किसी भी
कारण से रात्रि में किसी पुलिस स्टेशन में निरूद्ध नहीं किया जाएगा।
(5) पुलिस अधिकारी यह
सुनिश्चित करेंगे कि बालक की पहचान पब्लिक मीडिया से तब तक संरक्षित की है
जब तक कि बालक के हित में विशेष न्यायालयु द्वारा अन्यथा निदेशित न किया गया
हो। 25. मजिस्ट्रेट द्वारा बालक के कथन का अभिलेखन .- (1) यदि बालक का कथन, दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) (जिसे इसमें इसके
पश्चात् संहिता कहा गया है) की धारा 164 के अधीन अभिलिखित किया जाता है तो उसमें अंतर्विष्ट
किसी बात के होते हुए भी, ऐसे केथन को अभिलिखित
करने वाला मजिस्ट्रेट, बालक द्वारा बोले गए अनुसार कथन को अभिलिखित करेगा : • परंतु संहिता की धारा
164 की उपधारा (1) के प्रथम परंतुक में अंतर्विष्ट उपबंध, जहां तक वह अभियुक्त के अधिवक्ता की उपस्थिति अनुज्ञात करता है, इस मामले में लागू नहीं होगा।
(2) मजिस्ट्रेट, उस संहिता की
धारा 173 के अधीन पुलिस द्वारा अंतिम रिपोर्ट फाइल किए जाने पर, बालक और उसके
माता-पिता या उसके प्रतिनिधि को संहिता की धारा 207 के अधीन विनिर्दिष्ट दस्तावेज की एक
प्रति, प्रदान करेगा।
26. अभिलिखित किए जाने वाले कथन के संबंध में अतिरिक्त उपबंध .- (1) यथास्थिति, मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी, बालक के माता-पिता या ऐसे किसी अन्य
व्यक्ति, जिसमें बालक का भरोसा या विश्वास है, उपस्थिति में बालक द्वारा बोले गए अनुसार कथन
अभिलिखित करेगा।
(2) जहां आवश्यक है, वहां, यथास्थिति, मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी, बालक का कथन अभिलिखित करते समय किसी अनुवादक या किसी दुभाषिए की, जो ऐसी अर्हताएं, अनुभव रखता हो और ऐसी फीस के
संदाय पर जो विहित की जाए, की सहायता ले सकेगा।
(3) यथास्थिति, मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी किसी बालक का कथन
अभिलिखित करने के लिएमानसिक या शारीरिक निःशक्तता वाले बालक के मामले में किसी विशेष शिक्षक या बालक से संपर्क की रीति से सुपरिचित किसी व्यक्ति या उस
क्षेत्र में किसी विशेषज्ञ की, जो ऐसी अर्हताएं, अनुभव रखता हो और ऐसी फीस के संदाय पर जो बिहित की जाए, की सहायता ले सकेगा।
(4) जहां संभव है, वहां, यथास्थिति, मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी यह सुनिश्चित करेगा कि बालक का कथन श्रव्य-दृश्य इलेक्ट्रानिक माध्यमों से
भी अभिलिखित किया
जाए।
27. बालक की
चिकित्सीय परीक्षा .- (1) उस बालक की चिकित्सीय परीक्षा, जिसकी संबंध में इस अधिनियम के
अधीन कोई अपराध किया गया है, इस बात के होते हुए भी कि इस अधिनियम के अधीन अपराध के लिए कोई प्रथम सूचना रिपोर्ट या परिवाद रजिस्ट्रीकृत नहीं किया गया है, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 164क के अनुसार की जाएगी।
(2) यदि पीड़ित कोई
बालिका है तो चिकित्सीय परीक्षा किसी
महिला डॉक्टर द्वारा की जाएगी।
(3) चिकित्सीय
परीक्षा बालक के माता-पिता या किसी ऐसे अन्य
व्यक्ति की उपस्थिति में की जाएगी जिसमें बालक
भरोसा या विश्वास रखता हो।
(4) जहां उपधारा
(3) में निर्दिष्ट बालक के माता- पिता या अन्य
व्यक्ति बालक की चिकित्सय परीक्षा के दौरान किसी
कारण से उपस्थित नहीं हो सकता है तो चिकित्सीय
परीक्षा, चिकित्सा संस्था के प्रमुख द्वारा नामनिर्दिष्ट किसी महिला की उपस्थिति में की जाएगी।
अध्याय
7 विशेष न्यायालय
28. विशेष न्यायालयों को अभिहित किया जाना .- (1) त्वरित
विचारण उपलब्ध कराने के प्रयोजनों के लिए
राज्य सरकार, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायामूर्ति के परामर्श से, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा.
प्रत्येक जिला के लिए इस अधिनियम के अधीन
अपराधों का विचारण करने के लिए किसी सेशन
न्यायालय को एक विशेष न्यायालय होने के
लिए, अभिहित करेगी : · परन्तु यदि कोई सेशन न्यायालय, बालक अधिकार संरक्षण
आयोग अधिनियम, 2005 (2006 का 4) या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन उन्हीं प्रयोजनों के लिए अभिहित बालक न्यायालय के रूप में अधिसूचित किया गया है, तब ऐसा न्यायालय इस
धारा के अधीन विशेष न्यायालय समझा जाएगा।
(2) इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का विचारण करते समय कोई विशेष न्यायालय किसी ऐसे अपराध का [उपधारा (1) में निर्दिष्ट किसी अपराध से भिन्न]
विचारण भी करेगा जिसके साथ अभियुक्त को दंड
प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) के अधीन उसी विचारण में आरोपित किया जा सकेगा।
(3) इस अधिनियम के अधीन गठित विशेष न्यायालय को, सूचना प्रौद्योगिकी
अधिनियम, 2000 (2000 का 21) में किसी बात के होते हुए भी, उस अधिनियम की धारा 67ख के अधीन अपराधों का, जहां तक वे किसी कृत्य या व्यवहार या रीति में बालक को चित्रित करने वाली लैंगिक प्रकटन सामग्री के प्रकाशन या पारेषण से
संबंधित है, या बालकों का ऑनलाईन दुरुपयोग सुकर बनाते हैं, विचारण की अधिकारिता होगी।
29. कतिपय अपराधों के बारे में उपधारणा .- जहां किसी व्यक्ति को इस अधिनियम की धारा 3, धारा 5, धारा 7 और धारा 9 के अधीन किसी अपराध को करने या दुष्प्रेरण करने का प्रयत्न करने के लिए अभियोजित किया गया है वहां विशेष न्यायालय तब तक यह उपधारणा करेगा कि ऐसे व्यक्ति ने, बथास्थिति, वह अपराध किया है, दुष्रेषण किया है
या उसको करने का प्रयत्न किया है जब तक कि इसके
विरुद्ध साबित नहीं कर दिया जाता।
30. आपराधिक मानसिक दशा की उपधारणा .- (1) इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के लिए किसी अभियोजन में, जो अभियक्त की ओर से आपराधिक मानसिक स्थिति की अपेक्षा करता है, विशेष न्यायालय ऐसी
मानसिक दशा की विद्यमानता की
उपधारणा करेगा, किन्तु अभियुक्त के लिए यह तथ्य साबित करने के लिए प्रतिरक्षा होगी कि उस अभियोजन में किसी अपराध के रूप में आरोपिंत कृत्य के संबंध में उसकी ऐसी मानसिक दशा नहीं था।
(2) इस धारा के प्रयोजनों
के लिए किसी तथ्य का साबित किया जाना केवल तभी कहा जाएगां जब न्यायालय इसकी
विद्यमानता के बारे में युक्तियुक्त संदेह से परे विश्वास करता है और केवल तब नहीं जब इसकी
विद्यमानता संभाव्यता की प्रबलता द्वारा स्थापित होती है। ·
स्पष्टीकरण .- इस धारा में "आपराधिक मानसिक
स्थिति" के अंतर्गत आशय, हेतुक, किसी तथ्य का
ज्ञान और किसी तथ्य में विश्वास या विश्वास किए जाने का कारण भी है।
31. विशेष
न्यायालय के समक्ष कार्यवाहियों को दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 का लागू होना .- इस अधिनियम में अन्यथा उपबंधित के सिवाय दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) के उपबंध (जमानत और
बंधपत्र विषयक उपबंधों सहित) किसी विशेष न्यायालय के समक्ष कार्यवाहियों को लागू होंगे और
उक्त उपबंधों के प्रयोजनों के लिए विशेषू न्यायालय को सेशन न्यायालय समझा जाएगा तथा विशेष
न्यायालय के समक्ष अभियोजन का संचालन करने वाले व्यक्ति को, लोक अभियोजक समझा जाएगा। सरकार, राजपत्र में
अधिसूचना द्वारा, इस अधिनियम के
उपबंधों के अधीन मामलों का संचालन करने के लिए प्रत्येक विशेष न्यायालय के लिए एक विशेष लोक
अभियोजक की, नियुक्ति करेगी।
(2) उपधारा (1) के अधीन किसी विशेष लोक अभियोजक के रूप
में नियुक्त किए जाने के लिए कोई व्यक्ति केवल तभी पात्र होगा यदि उसने सात वर्ष से अन्यून
अवधि के लिए अधिवक्ता के रूप में विधि व्यवसाय किया हो।
(3) इस धारा के अधीन
विशेष लोक अभियोजक के रूप में प्रत्येक व्यक्ति, दंड प्रक्रिया
संहिता, 1973 (1974 का 2)
की धारा 2 के खंड (प) के अर्थांतर्गत एक लोक अभियोजक समझा जाएगा और इस संहिता के
उपबंध तद्नुसार प्रभावी होंगे।
32. विशेष लोक
अभियोजक .- (1) राज्य सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन मामलों का संचालन करने के
लिए प्रत्येक विशेष न्यायालय के लिए एक विशेष लोक अभियोजक की, नियुक्ति करेगी।
(2) उपधारा (1) के अधीन
किसी विशेष लोक अभियोजक के रूप में नियुक्त किए जाने के लिए कोई व्यक्ति केवल
तभी पात्र होगा यदि उसने सात वर्ष से अन्यून अवधि के लिए अधिवक्ता के रूप
में विधि व्यवसाय
किया हो।
(3) इस धारा के अधीन विशेष लोक अभियोजक के रूप में
प्रत्येक व्यक्ति, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2)
की धारा 2 के खंड (प) के अर्थांतर्गत एक लोक अभियोजक समझा जाएगा और इस संहिता के
उपबंध तद्नुसार प्रभावी होंगे।
अध्याय 8 विशेष न्यायालयों की प्रक्रिया और शक्तियां तथा साक्ष्य का अभिलेखन
33.विशेष न्यायालयों की प्रक्रिया और शक्तियां .- (1) कोई विशेष न्यायालय अभियुक्त को विचारण के लिए सुपूर्द किए बिना किसी अपराध का संज्ञान ऐसे अपराध का गठन करने वाले तथ्यों का परिवाद प्राप्त होने पर या ऐसे
तथ्यों की पुलिस रिपोर्ट पर, ले सकेगा।, परिवाद
(2) यथास्थिति, विशेष लोक अभियोजक या अभियुक्त के लिए
उपसंजात होने वाला काउंसेल बालक की मुख्य
परीक्षा, प्रतिपरीक्षा, या पुनः परीक्षा अभिलिखित करते समय बालक से पूछे जाने वाले प्रश्नों को, विशेष न्यायालय को संसूचित करेगा जो क्रम से
उन प्रश्नों को बालक के समक्ष रखेगा।
(3) विशेष न्यायालय, यदि वह आवश्यक समझे, विचारण के दौरान
बालक के लिए बार-बार विराम अनुज्ञात कर
सकेगा।
(4) विशेष
न्यायालय, बालक के परिवार के किसी सदस्य, संरक्षक, मित्र या नातेदार की, जिसमें बालक का भरोसा और विश्वास है, न्यायालय में उपस्थित अनुज्ञात करके बालक के लिए
मित्रतापूर्ण वातावरण सृजित
करेगा।
(5) विशेष न्यायालय यह
सुनिश्चित करेगा कि बालक को न्यायालय
में साक्ष्य देने के लिए बार- बार नहीं बुलाया
जाए।
(6) विशेष
न्यायालय विचारण के दौरान आक्रामक या बालक के
चरित्र हनन संबंधी प्रश्न पूछने के लिए अनुज्ञात नहीं करेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि सभी समय बालक की गरिमा बनाए रखी जाए।
(7) विशेष
न्यायालय यह सुनिश्चित करेगा कि अन्वेषण या
विचारण के दौरान किसी भी समय बालक की पहचान
प्रकट नहीं की जाए :
• परंतु ऐसे कारणों से जो
अभिलिखित किए जाएं, विशेष न्यायालय
ऐसे प्रकटन की अनुज्ञा दे सकेगा, यदि उसकी राय में
ऐसा प्रकटन बालक के हित में है। ·
स्पष्टीकरण .- इस उपधारा के
प्रयोजनों के लिए, बालक की पहचान में बालक के कुटुंब, विद्यालय, नातेदार, पड़ोसी की पहचान या कोई अन्य सूचना जिसके द्वारा बालक की पहचान का पता चल सके सम्मिलित होंगे।
(8) समुचित मामलों में विशेष न्यायालय दंड के अतिरिक्त,
बालक को कारित किसी
शारीरिक या मानसिक आघात के
लिए या ऐसे बालक के तुरन्त पुनर्वास के लिए
उसको ऐसे प्रतिकर के संदाय का निदेश दे सकेगा
जो विहित किया जाए।
(9) इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन रहते हुए विशेष न्यायालय को इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के विचारण के प्रयोजन के लिए सेशन न्यायालय की सभी शक्तियां होंगी और ऐसे अपराध का विचारण ऐसे करेगा, मानो वह सेशन न्यायालय हो, और यथाशक्य सेशन न्यायालय के समक्ष विचारण के
लिए दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में विनिर्दिष्ट प्रक्रिया का अनुसरण करेगा।
34. बालक द्वारा अपराध किए जाने और विशेष न्यायालय द्वारा आयु का अवधरण करने के मामले में प्रक्रिया .- (1) जहां इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध, किसी बालक द्वारा किया
जाता है, वहां ऐसे बालक पर
'किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015(2016 का 2)] के उपबंधों के अधीन
कार्रवाई की जाएगी।
(2) यदि विशेष न्यायालय के समक्ष किसी कार्यवाही में इस संबंध में कोई प्रश्न उठता है
कि कोई व्यक्ति बालक
है या नहीं तो ऐसे प्रश्न का अवधारण विशेष
न्यायालय द्वारा ऐसे व्यक्ति की आयु के बारे में
स्वयं का समाधान करने के पश्चात् किया जाएगा और वह
ऐसे अवधारण के लिए उसके कारणों को
लेखबद्ध करेगा।
(3) विशेष न्यायालय द्वारा किया गया कोई आदेश केवल पश्चात्वर्ती सबूत के कारण अविधिमान्य नहीं समझा जाएगा कि उपधारा (2) के अधीन उसके द्वारा यथा
अवधारित किसी व्यक्ति की आयु उस व्यक्ति की
सही आयु नहीं थी।
35. बालक के साक्ष्य को अभिलिखित और मामले का निपटारा करने के लिए अवधि .- (1) बालक की साक्ष्य को विशेष न्यायालय द्वारा अपराध का संज्ञान लिए जाने के तीस दिन के भीतर अभिलिखित किया जाएगा.और विलंब के लिए कारण, यदि कोई हों, विशेष न्यायालय द्वारा अभिलिखित किए
जाएंगे।
(2) विशेष न्यायालय, यथासंभव, अपराध का संज्ञान लिए जाने
की तारीख से एक वर्ष की अवधि के भीतर विचारण
को पूरा करेगा।
36. साक्ष्य देते समय बालक का अभियुक्त को न दिखना .- (1) विशेष न्यायालय यह सुनिश्चित करेगा कि बालक किसी भी प्रकार से साक्ष्य को अभिलिखित करते समय अभियुक्त के सामने अभिदर्शित नहीं किया गया है, जब कि उसी समय यह सुनिश्चित
करेगा कि अभियुक्त उस बालक का कथन सुनने और
अपने अधिवक्ता के सम्पर्क में है।
(2) उपधारा (1) के प्रयोजनों के लिए
विशेष न्यायालय, बालक का कथन वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से या एकल दृश्य दर्पण या पर्दा या ऐसी ही अन्य युक्ति का उपयोग करके अभिलिखित कर सकेगा।
37. विचारण का बंद कमरे में संचालन .- विशेष न्यायालय,
मामलों का विचारण बंद
कमरे में और बालक के
माता-पिता या किसी ऐसे अन्य व्यक्ति की उपस्थिति में करेगा, जिसमें बालक का विश्वास या भरोसा है :
• परंतु जहां विशेष न्यायालय की यह राय है कि बालक की परीक्षा न्यायालय से भिन्न किसी अन्य स्थान पर किए जाने की आवश्यकता है, वहाँ वह दंड प्रक्रिया
संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 284 के उपबंधों के अनुसरण
में कमीशन निकालने के लिए
कार्यवाही करेगा।
38. बालक का साक्ष्य अभिलिखित करते समय किसी दुभाषिया या विशेषज्ञ की सहायता लेना .- (1) जब कभी आवश्यक हो, न्यायालय बालक का साक्ष्य अभिलिखित करते समय किसी ऐसे अनुवादक या दुभाषिए, जो ऐसी अर्हताएं, अनुभव रखता हो और ऐसी फीस के संदाय पर, जो विहित की जाए, की सहायता ले सकेगा।
(2) यदि बालक मानसिक या शरीरिक रूप से निःशक्त है तो विशेष न्यायालय बालक का साक्ष्य अभिलिखित करने के लिए उस क्षेत्र में किसी
विशेष शिक्षक या बालक
से संपर्क की रीति से सुपरिचितकिसी व्यक्ति या उस क्षेत्र में कोई विशेषज्ञ, जो ऐसी अर्हताएं, अनुभव रखता हो और ऐसी फीस के संदाय पर जो
विहित की जाए, की सहायता ले सकेगा।
अध्याय 9 प्रकीर्ण
39. विशेषज्ञ आदि की सहायता लेने के लिए बालक के लिए मार्गनिर्देश .-- राज्य सरकार, ऐसे नियमों के अधीन रहते हुए जो इस निमित्त बनाए जाएं गैर-सरकारी संगठनों, वृत्तिकों और विशेषज्ञों या ऐसे
व्यक्तियों जिनके पास मनोविज्ञान,
सामाजिक कार्य, चिकित्सीय स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य और बाल विकास में
ज्ञान है, बालक को सहायता करने के लिए पूर्व विचारण और विचारण प्रक्रम पर सहयोजित करने के लिए मार्गनिर्देश तैयार करेगी।
40. विधिक काउन्सेल की सहायता लेने के लिए बालक का अधिकार .- दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 301 के परंतुक के अधीन रहते हुए बालक का कुटुंब या संरक्षक इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के लिए अपनी पसंद के विधिक काउंसेल की सहायता लेने के लिए हकदार होंगे: • परंतु यदि बालक का कुटुंब या संरक्षक विधिक का काउंसेल का व्यय वहन करने में असमर्थ है तो विधिक सेवा प्राधिकरण उसको वकील उपलब्ध कराएगा।
41. कतिपय मामलों में धारा 3 से धारा 13 तक के उपबंधों का लागू न होना .- धारा 3 से धारा 13 (जिसमें दोनों सम्मिलित हैं) तक के उपबंध बालक की चिकित्सीय परीक्षा या चिकित्सीय उपचार की दशा में तब लागू नहीं होंगे जब ऐसी
चिकित्सीय परीक्षा या
चिकित्सीय उपचार उसके माता-पिता या संरक्षक की सहमति
से किए जा रहे हों। '
42. आनुकल्पिक
दण्ड .- जहां किसी कार्य या लोप से इस अधिनियम के अधीन और भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 166क, धारा 354क, धारा 354ख, धारा 354ग, धारा 354घ, धारा 370, धारा 370क, धारा 375,
धारा 376,
4[धारा 376क, धारा 376कख, धारा 376ख, धारा 376ग, धारा 376घ, धारा 376घक, धारा 376घख], '[धारा 376ङ, धारा 509 के अधीन या सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (2000 का 21) की धारा 67ख के अधीन] भी दंडनीय कोई अपराध गठित होता है वहां, तत्समय प्रवृत्त किसी विधि में
अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, ऐसे अपराध का दोषी पाया गया अपराधी उस दंड का भागी होगा, जो इस अधिनियम के अधीन या भारतीय दंड संहिता के अधीन मान्रा में गुठु्तर
है।
42क. अधिनियम का किसी अन्य विधि के अल्पीकरण में न होना .- इस अधिनियम के उपबंध तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के उपबंधों के अतिरिक्त होंगे न कि उनके अल्पीकरण में और किसी असंगति की दशा में इस अधिनियम के उपबंधों का उस असंगति की सीमा तक ऐसी किसी विधि के उपबंधों पर अध्यारोही प्रभाव होगा॥
43. अधिनियम के बारे में लोक जागरूकता .- केन्द्रीय सरकार और प्रत्येक राज्य सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए सभी उपाय करेगी कि-
(क) साधारण जनता, बालकों के साथ ही उनके माता-पिता और
संरक्षकों को इस अधिनियम के उपबंधों के प्रति
जागरुक बनाने के लिए इस अधिनियम के
उपबंधों का मीडिया, जिसके अंतर्गत टेलीविजन,
रेडियो और प्रिंट मीडिया
भी सम्मिलित है, के माध्यम से नियमित अंतरालों पर व्यापक प्रचार किया जाता है; (
ख) केन्द्रीय सरकार और
राज्य सरकारों के अधिकारियों और
अन्य संबद्ध व्यक्तियों (जिसके अन्तर्गत पुलिस
अधिकारी भी हैं) को अधिनियम के उपबंधों के
कार्यान्वयन से संबंधित विषयों पर आवधिक प्रशिक्षण
प्रदान किया जाता है।
44. अधिनियम के क्रियान्वयन की मानीटरी .- (1) यथास्थिति, बालक अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम, 2005 (2006 का 4) की धारा 3 के अधीन गठित बालक
अधिकार संरक्षण के लिए राष्ट्रीय आयोग या धारा 17 के अधीन गठित बालक अधिंकार संरक्षण
के लिंए राज्य आयोग, उस अधिनियम के अधीन
उन्हें समनुदेशित कृत्यों के निष्पादन के अतिरिक्त इस अधिनियम के उपबंधों के क्रियान्वयन
की मानीटरी ऐंसी रीति में, जो विहित की जाए, करेंगे।
(2) उपधारा (1) में
निर्दिष्ट, यथास्थिति, राष्ट्रीय आयोग या राज्य आयोग को इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध
से संबंधित किसी मामले की जांच करते समय वहीं शक्तियां होंगी जो उन्हें बालक अधिकार
संरक्षण आयोग अधिनियम, 2005 (2006 का 4) के अधीन निहित की गई हैं।
(3) उपधारा (1) में
निर्दिष्ट, यथास्थिति, राष्ट्रीय आयोग या राज्य आयोग इस धारा के अधीन अपने कार्यकलापों में, बालक अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम, 2005 (2006 का 4) की धारा 16 में निर्दिष्ट
रिपोर्ट को शामिल करेंगे।
45. नियम बनाने की शक्ति .- (1) केन्द्रीय सरकार इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए
राजपत्र में अधिसूचना द्वारा नियम बना सकेगी।
(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल
प्रभाव डाले बिना ऐसे नियम निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिए उपबंध कर सकेगें, अर्थात :-
'[(क) धारा 15 की उपधारा (1) के अधीन किसी बालक को सम्मिलित
करने वाली किसी भी रूप में अश्लील सामग्री को मिटाने या नष्ट करने या अभिहित
प्राधिकारी को रिपोर्ट करने की रीति;
(कक) धारा 15 की उपधारा
(2) के अधीन किसी बालक को सम्मिलित करने वाली किसी भी रूप में अश्लील सामग्री
के बारे में रिपोर्ट करने की रीति;] '[
(कख)] धारा 19 की उपधारा (4), धारा 26 की उपधारा (2)
और उपधारा (3) और धारा 38 के अधीन किसी अनुवादक या दुभाषिए या किसी विशेष शिक्षक या बालक से संपर्क करने की रीति
से सुपरिचित किसी
व्यक्ति या उस क्षेत्र के किसी विशेषज्ञ की
अर्हताएं और अनुभव तथा संदेय फीस;
(ख) धारा 19 की उपधारा (5) के अधीन बालक की देखभाल और संरक्षण तथा आपात चिकित्सा उपचार;
(ग) धारा 33 की उपधारा (8) के अधीन प्रतिकर का संदाय;
(घ) धारा 44 की उपधारा (1) के अधीन अधिनियम के उपबंधों की आवधिक मानीटरी की रीति: (3) इस धारा के अधीन बनाया गया प्रत्येक नियम बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र संसद् के
प्रत्येक सदन के समक्ष जब
सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिए रखा जाएगा। यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या दो से अधिक आनुक्रमिक सत्रों में
पूरी हो सकेगी। यदि उस
सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक
बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् वह ऐसे परिवर्तित
रूप में ही प्रभावी
होगा। यदि उक्त अबसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात् वह निष्प्रभाव हो
जाएगा किन्तु नियम के
ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।
46. कठिनाइयों को दूर करने की शक्ति .- (1) यदि इस अधिनियम
के उपबंधों को प्रभावी करने में कोई कठिनाई
उत्पन्न होती है तो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में प्रकाशित आदेश द्वारा, ऐसे उपबंध कर सकेगी, जो उसे कठिनाइयां दूर करने के लिए आवश्यक या समीचीन प्रतीत हों और जो इस अधिनियम के उपबंधों से असंगत न हों। • परंतु कोई आदेश इस धारा के अधीन इस अधिनियम के प्रारंभ से दो वर्ष की अवधि की समाप्ति के पश्चात् नहीं किया जाएगा।
(2) इस धारा के अधीन किया गया प्रत्येक आदेश किए जाने के पश्चात्, यथाशीघ्र, संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा
जाएगा।
अनुसूची
[धारा 2(ग) देखें] निम्नलिखित के अधीन गठित सशस्त्र बल और सुरक्षा बल
(क) वायु सेना अधिनियम, 1950
(1950 का 45)
(ख) सेना अधिनियम, 1950 (1950 का 46);
(ग) असम राइफल्स
अधिनियम, 2006 (2006 का 47);
(घ) बंबई होमगार्ड अधिनियम, 1947 (1947 का 3) ;
(ड) सीमा सुरक्षा बल अधिनियम, 1968 (1968 का 47) ;
(च) केन्द्रीय
औद्योगिक सुरक्षा बल अधिनियम, 1968 (1968 का 50);
(छ) केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल अधिनियम, 1949
(1949 का 66);
(ज) तटरक्षक
अधिनियम, 1978 (1978 का 30);
(झ) दिल्ली विशेष
पुलिस स्थापन अधिनियम, 1946 (1946 का 25);
(ञ) भारत-तिब्बत
सीमा पुलिस बल अधिनियम, 1992 (1992 का 35);
(ट) नौ-सेना अधिनियम, 1957
(1957 का 62);
(ठ) राष्ट्रीय
अन्वेषण अभिकरण अधिनियम, 2008 (2008 का 34);
(ड) राष्ट्रीय सुरक्षा गारद अधिनियम, 1986
(1986 का 47) ;
(ढ) रेल संरक्षण बल अधिनियम, 1957 (1957 का 23);
(ण) सशस्त्र सीमा
बल अधिनियम, 2007 (2007 का 53);
(त) विशेष संरक्षा ग्रुप अधिनियम, 1988 (1988 का 34);
(थ) प्रादेशिक सेना अधिनियम, 1948 (1948 का 56);
(द) राज्य की सिविल बलों की सहायता करने के लिए और आंतरिक अशांति के दौरान दलों को नियोजित करने के लिए या अन्यथा जिनके अंतर्गत सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम, 1958 (1958 का 28) की धारा 2 के खंड (क) में यथा परिभाषित सशस्त्र बल भी
हैं, राज्य विधियों के अधीन गठित राज्य पुलिस बल (जिसके अंतर्गत सशस्त्र कांस्टेबुलरी भी हैं)।