अध्याय 19
सत्र न्यायालय के समक्ष सुनवाई
244.
1. विचारण का संचालन लोक अभियोजक द्वारा किया जाएगा ।-- सेशन न्यायालय के समक्ष प्रत्येक विचारण में अभियोजन का संचालन लोक
अभियोजक द्वारा किया जाएगा।
245.
अभियोजन के लिए मामला आरंभ करना - जब अभियुक्त
धारा 232 के अधीन या किसी अन्य तत्समय प्रवृत्त विधि के अधीन मामले की प्रतिबद्धता
के अनुसरण में न्यायालय के समक्ष उपस्थित होता है या लाया जाता है, तब अभियोजक
अभियुक्त के विरुद्ध लगाए गए आरोप का वर्णन करके और यह बताते हुए अपना मामला आरंभ
करेगा कि वह अभियुक्त के अपराध को किस साक्ष्य के द्वारा साबित करना चाहता है।
246.
उन्मोचन .-- ( 1 ) अभियुक्त धारा 232 के अधीन मामले की प्रतिबद्धता की तारीख से साठ
दिन की अवधि के भीतर उन्मोचन के लिए आवेदन कर सकेगा।
( 2 )
यदि मामले के अभिलेख तथा उसके साथ प्रस्तुत दस्तावेजों पर विचार करने के पश्चात्,
तथा इस संबंध में अभियुक्त और अभियोजन पक्ष के निवेदनों को सुनने के पश्चात्
न्यायाधीश का विचार है कि अभियुक्त के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए पर्याप्त
आधार नहीं है, तो वह अभियुक्त को उन्मोचित कर देगा तथा ऐसा करने के उसके कारण भी
लेखबद्ध करेगा।
247.
आरोप विरचित करना .-- ( 1 ) यदि पूर्वोक्त विचार और सुनवाई के पश्चात् न्यायाधीश की यह राय है
कि यह उपधारणा करने का आधार है कि अभियुक्त ने ऐसा अपराध किया है जो--
(a)
सत्र न्यायालय द्वारा अनन्यतः
विचारणीय नहीं है, वहां वह अभियुक्त के विरुद्ध आरोप विरचित कर सकेगा और आदेश
द्वारा मामले को विचारण के लिए मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट या किसी अन्य प्रथम
श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट को अंतरित कर सकेगा और अभियुक्त को निर्देश दे सकेगा कि
वह मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट या प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष ऐसी
तारीख को उपस्थित हो, जिसे वह ठीक समझे और तदुपरांत ऐसा मजिस्ट्रेट पुलिस रिपोर्ट
पर संस्थित वारंट मामलों के विचारण की प्रक्रिया के अनुसार अपराध का विचारण करेगा;
(b)
न्यायालय द्वारा अनन्य रूप से
विचारणीय है, तो वह आरोप पर प्रथम सुनवाई की तारीख से साठ दिन की अवधि के भीतर
अभियुक्त के विरुद्ध लिखित रूप में आरोप विरचित करेगा।
( 2 )
जहां न्यायाधीश उपधारा ( 1 ) के खंड ( ख )
के अधीन कोई आरोप विरचित करता है , वहां आरोप को भौतिक रूप से या श्रव्य-दृश्य
इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से उपस्थित अभियुक्त को पढ़कर सुनाया जाएगा और समझाया जाएगा
तथा अभियुक्त से पूछा जाएगा कि क्या वह आरोपित अपराध के लिए दोषी होने की दलील
देता है या विचारण का दावा करता है।
248.
दोषी होने की दलील पर दोषसिद्धि - यदि अभियुक्त
दोषी होने की दलील देता है, तो न्यायाधीश दलील को रिकॉर्ड करेगा और अपने
विवेकानुसार, उसे दोषी ठहरा सकता है।
249.
अभियोजन साक्ष्य की तारीख .- यदि अभियुक्त
अभिवचन करने से इंकार करता है या अभिवचन नहीं करता है या दावा करता है कि उसका
विचारण किया जाए या उसे धारा 252 के अधीन दोषसिद्ध न किया जाए, तो न्यायाधीश
साक्षियों की परीक्षा के लिए तारीख नियत करेगा और अभियोजन के आवेदन पर किसी साक्षी
को उपस्थित होने के लिए या कोई दस्तावेज या अन्य चीज पेश करने के लिए विवश करने के
लिए कोई आदेशिका जारी कर सकेगा।
250.
अभियोजन पक्ष के लिए साक्ष्य .— ( 1
) इस प्रकार नियत तिथि को न्यायाधीश अभियोजन पक्ष के समर्थन में प्रस्तुत किए
गए समस्त साक्ष्य लेने के लिए आगे बढ़ेगा:
परंतु इस उपधारा के अधीन किसी साक्षी का साक्ष्य
श्रव्य-दृश्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से रिकार्ड किया जा सकेगा।
(2) किसी भी लोक सेवक का साक्ष्य ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से लिया जा
सकता है।
(3) न्यायाधीश अपने विवेकानुसार किसी गवाह की जिरह को तब तक स्थगित करने की
अनुमति दे सकता है जब तक कि किसी अन्य गवाह या गवाहों की जांच न हो जाए या किसी
गवाह को आगे की जिरह के लिए वापस बुला सकता है।
251.
बरी करना - यदि अभियोजन पक्ष के साक्ष्य लेने,
अभियुक्त की जांच करने तथा अभियोजन और बचाव पक्ष को सुनने के पश्चात न्यायाधीश का
विचार है कि इस बात का कोई साक्ष्य नहीं है कि अभियुक्त ने अपराध किया है, तो
न्यायाधीश बरी करने का आदेश दर्ज करेगा।
252.
बचाव शुरू करना .-- ( 1 ) जहां अभियुक्त को धारा 255 के अधीन दोषमुक्त नहीं किया जाता है,
वहां उससे अपना बचाव शुरू करने और उसके समर्थन में उसके पास जो भी साक्ष्य हो, उसे
प्रस्तुत करने के लिए कहा जाएगा।
(2)
यदि अभियुक्त कोई लिखित बयान देता
है तो न्यायाधीश उसे रिकार्ड में दर्ज कर लेगा।
(3)
यदि अभियुक्त किसी साक्षी को
उपस्थित होने या कोई दस्तावेज या वस्तु प्रस्तुत करने के लिए बाध्य करने के लिए
कोई आदेशिका जारी करने के लिए आवेदन करता है, तो न्यायाधीश ऐसा आदेशिका जारी
करेगा, जब तक कि वह, लेखबद्ध किए जाने वाले कारणों से, यह विचार न करे कि ऐसे
आवेदन को इस आधार पर अस्वीकार कर दिया जाना चाहिए कि वह कष्ट पहुंचाने या विलंब
करने या न्याय के उद्देश्यों को विफल करने के उद्देश्य से किया गया है।
253.
तर्क - जब बचाव पक्ष के साक्षियों (यदि कोई हो)
की परीक्षा पूरी हो जाती है, तो अभियोजक अपना मामला संक्षेप में प्रस्तुत करेगा और
अभियुक्त या उसका वकील उत्तर देने का हकदार होगा:
परन्तु जहां अभियुक्त या उसके अधिवक्ता द्वारा
कोई विधि प्रश्न उठाया जाता है, वहां अभियोजन पक्ष न्यायाधीश की अनुमति से ऐसे
विधि प्रश्न के संबंध में अपना निवेदन कर सकेगा।
254.
दोषमुक्ति या दोषसिद्धि का निर्णय.- ( 1 ) तर्कों और विधि के बिंदुओं (यदि कोई
हों) को सुनने के पश्चात् न्यायाधीश मामले में यथाशीघ्र, तर्कों के पूरा होने की
तारीख से तीस दिन की अवधि के भीतर निर्णय देगा, जिसे लिखित रूप में अभिलिखित किए
जाने वाले कारणों से पैंतालीस दिन की अवधि तक बढ़ाया जा सकेगा।
( 2 )
यदि अभियुक्त को दोषसिद्ध किया जाता है, तो न्यायाधीश, जब तक कि वह धारा 401 के
उपबंधों के अनुसार कार्यवाही न करे, दण्ड के प्रश्नों पर अभियुक्त की सुनवाई
करेगा, और फिर विधि के अनुसार उस पर दण्डादेश पारित करेगा।
255.
पूर्व दोषसिद्धि .— ऐसे मामले में जहां धारा 234 की उपधारा ( 7 ) के उपबंधों के अधीन पूर्व दोषसिद्धि का आरोप लगाया गया है और
अभियुक्त यह स्वीकार नहीं करता है कि आरोप में आरोपित अनुसार उसे पहले भी दोषसिद्ध
किया जा चुका है, न्यायाधीश उक्त अभियुक्त को धारा 252 या धारा 258 के अधीन
दोषसिद्ध करने के पश्चात् आरोपित पूर्व दोषसिद्धि के संबंध में साक्ष्य ले सकेगा
और उस पर निष्कर्ष अभिलिखित करेगा:
परन्तु ऐसा कोई आरोप न्यायाधीश द्वारा नहीं
पढ़ा जाएगा, न ही अभियुक्त को उस पर बहस करने के लिए कहा जाएगा, न ही अभियोजन पक्ष
द्वारा या उसके द्वारा प्रस्तुत किसी साक्ष्य में पूर्व दोषसिद्धि का उल्लेख किया
जाएगा, जब तक कि अभियुक्त को धारा 252 या धारा 258 के अधीन दोषसिद्ध न कर दिया गया
हो।
256.
धारा 222 की उपधारा ( 2 ) के अधीन
संस्थित मामलों में प्रक्रिया .- ( 1 ) धारा 222 की उपधारा ( 2 ) के अधीन किसी अपराध का संज्ञान लेने
वाला सेशन न्यायालय, मजिस्ट्रेट के न्यायालय के समक्ष पुलिस रिपोर्ट के अलावा अन्य
आधार पर संस्थित वारंट मामलों के विचारण के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया के
अनुसार मामले का विचारण करेगा:
परन्तु जिस व्यक्ति के विरुद्ध अपराध किया जाना
अभिकथित है, उसकी, जब तक कि सेशन न्यायालय, लेखबद्ध किए जाने वाले कारणों से,
अन्यथा निदेश न दे, अभियोजन पक्ष के साक्षी के रूप में परीक्षा की जाएगी।
(2) बंद कमरे में किया जाएगा, यदि कोई पक्षकार ऐसा चाहे या न्यायालय ऐसा करना ठीक समझे।
(3) यदि किसी ऐसे मामले में न्यायालय सभी या किसी अभियुक्त को उन्मोचित या
दोषमुक्त कर देता है और उसकी यह राय है कि उनके या उनमें से किसी के विरुद्ध आरोप
लगाने के लिए कोई उचित कारण नहीं था, तो वह उन्मोचित या दोषमुक्त करने के अपने
आदेश द्वारा उस व्यक्ति को, जिसके विरुद्ध अपराध किया जाना अभिकथित है
(राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल या किसी संघ राज्य क्षेत्र
के प्रशासक को छोड़कर) यह कारण बताने के लिए निर्देश दे सकता है कि वह ऐसे
अभियुक्त को या ऐसे अभियुक्तों में से प्रत्येक को या किसी को, जब एक से अधिक
अभियुक्त हों, प्रतिकर क्यों न दे।
(4) न्यायालय ऐसे किसी कारण को अभिलिखित करेगा और उस पर विचार करेगा, जो इस
प्रकार निर्देशित व्यक्ति द्वारा दर्शाया जाए, और यदि उसका समाधान हो जाता है कि
अभियोग लगाने के लिए कोई उचित कारण नहीं था, तो वह, अभिलिखित किए जाने वाले कारणों
के आधार पर, आदेश दे सकेगा कि पांच हजार रुपए से अनधिक ऐसी रकम का प्रतिकर, जैसा
वह अवधारित करे, ऐसे व्यक्ति द्वारा अभियुक्त को या उनमें से प्रत्येक को या उनमें
से किसी को दिया जाए।
(5) उपधारा ( 4 ) के अधीन
अधिनिर्णीत प्रतिकर इस प्रकार वसूल किया जाएगा मानो वह मजिस्ट्रेट द्वारा अधिरोपित
जुर्माना हो।
(6) कोई भी व्यक्ति जिसे उपधारा ( 4 )
के अधीन प्रतिकर देने का निर्देश दिया गया है, ऐसे आदेश के कारण इस धारा के अधीन
की गई शिकायत के संबंध में किसी सिविल या आपराधिक दायित्व से छूट नहीं दी जाएगी:
परन्तु इस धारा के अधीन किसी अभियुक्त व्यक्ति
को दी गई कोई रकम उसी मामले से संबंधित किसी पश्चातवर्ती सिविल वाद में ऐसे
व्यक्ति को प्रतिकर अधिनिर्णीत करने में ध्यान में ली जाएगी।
(7) वह व्यक्ति जिसे उपधारा ( 4 )
के अधीन प्रतिकर देने का आदेश दिया गया है, उस आदेश के विरुद्ध, जहां तक वह
प्रतिकर के भुगतान से संबंधित है, उच्च न्यायालय में अपील कर सकेगा।
(8)
जब किसी अभियुक्त व्यक्ति को
प्रतिकर के भुगतान का आदेश दिया जाता है, तो अपील प्रस्तुत करने के लिए दी गई अवधि
बीत जाने से पहले या यदि अपील प्रस्तुत की जाती है, तो अपील पर निर्णय होने से
पहले प्रतिकर का भुगतान नहीं किया जाएगा।