अध्याय 8
पारस्परिक व्यवस्था और
प्रक्रिया
संपत्ति की कुर्की और जब्ती
111.
परिभाषाएँ - इस अध्याय में, जब तक कि संदर्भ से
अन्यथा अपेक्षित न हो, -
(a)
" अनुबंधित राज्य" का
तात्पर्य भारत के बाहर किसी देश या स्थान से है जिसके संबंध में केन्द्रीय सरकार
द्वारा उस देश की सरकार के साथ किसी संधि के माध्यम से या अन्यथा व्यवस्था की गई
है;
(b)
"पहचान" में यह साबित
करना शामिल है कि संपत्ति किसी अपराध के लिए प्राप्त की गई थी या उसका उपयोग अपराध
करने में किया गया था;
(c)
" अपराध की आय " का अर्थ
किसी भी व्यक्ति द्वारा आपराधिक गतिविधि (मुद्रा हस्तांतरण से जुड़े अपराध सहित)
या किसी ऐसी संपत्ति के मूल्य के परिणामस्वरूप प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से
प्राप्त की गई संपत्ति है;
(d)
"संपत्ति" से तात्पर्य हर
प्रकार की संपत्ति और आस्तियां से है, चाहे वे भौतिक हों या अमूर्त, चल हों या
अचल, मूर्त हों या अमूर्त और ऐसे कार्य और दस्तावेज जो किसी अपराध के कमीशन में
प्राप्त या उपयोग की गई ऐसी संपत्ति या आस्तियों में स्वामित्व या हित को प्रमाणित
करते हैं और इसमें अपराध की आय के माध्यम से प्राप्त संपत्ति भी शामिल है;
(e)
"ट्रेसिंग" का अर्थ है
संपत्ति की प्रकृति, स्रोत, स्वभाव, आंदोलन, शीर्षक या स्वामित्व का निर्धारण
करना।
112.
भारत के बाहर किसी देश या स्थान में अन्वेषण के लिए सक्षम प्राधिकारी को
अनुरोध पत्र ।--( 1
) यदि किसी अपराध के अन्वेषण के दौरान अन्वेषण अधिकारी या अन्वेषण अधिकारी से
वरिष्ठ पद के किसी अधिकारी द्वारा यह आवेदन किया जाता है कि भारत के बाहर किसी देश
या स्थान में साक्ष्य उपलब्ध हो सकता है, तो कोई दंड न्यायालय उस देश या स्थान में
ऐसे अनुरोध पर कार्यवाही करने में सक्षम न्यायालय या प्राधिकारी को अनुरोध पत्र
जारी कर सकता है कि वह मामले के तथ्यों और परिस्थितियों से परिचित माने जाने वाले
किसी व्यक्ति की मौखिक रूप से परीक्षा करे और ऐसी परीक्षा के दौरान उसके द्वारा
दिए गए कथन को अभिलिखित करे तथा ऐसे व्यक्ति या किसी अन्य व्यक्ति से मामले से
संबंधित कोई दस्तावेज या चीज, जो उसके कब्जे में हो, पेश करने की अपेक्षा करे और
इस प्रकार लिए गए या संगृहीत सभी साक्ष्य या उनकी प्रमाणित प्रतियां या इस प्रकार
संगृहीत चीज को ऐसा पत्र जारी करने वाले न्यायालय को भेजे।
(2) अनुरोध पत्र ऐसी रीति से प्रेषित किया जाएगा जैसा केन्द्रीय सरकार इस
संबंध में विनिर्दिष्ट करे।
(3) उपधारा ( 1 ) के अधीन अभिलिखित
प्रत्येक कथन या प्राप्त दस्तावेज या वस्तु इस संहिता के अधीन अन्वेषण के दौरान
संगृहीत साक्ष्य समझी जाएगी।
113.
भारत के बाहर किसी देश या स्थान से भारत में अन्वेषण के लिए किसी न्यायालय या
प्राधिकरण को अनुरोध पत्र।-- ( 1 ) भारत के बाहर किसी देश या स्थान के किसी न्यायालय या प्राधिकरण
से, जो उस देश या स्थान में अन्वेषणाधीन किसी अपराध के संबंध में किसी व्यक्ति की
परीक्षा करने या कोई दस्तावेज या चीज पेश करने के लिए ऐसा पत्र जारी करने में
सक्षम है, अनुरोध पत्र प्राप्त होने पर, यदि केन्द्रीय सरकार ठीक समझे, तो-
(i)
उसे मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट या
न्यायिक मजिस्ट्रेट को भेजेगा जिसे वह इस संबंध में नियुक्त करे, जो उसके बाद उस
व्यक्ति को अपने समक्ष बुलाएगा और उसका बयान दर्ज करेगा या दस्तावेज या चीज को पेश
करवाएगा; या
(ii)
पत्र को जांच के लिए किसी भी पुलिस
अधिकारी को भेजें, जो उसके बाद उसी तरीके से अपराध की जांच करेगा,
मानो अपराध भारत में किया गया
हो।
( 2 )
उपधारा ( 1 ) के अधीन लिया गया या
संगृहीत समस्त साक्ष्य, या उसकी अधिप्रमाणित प्रतियां या इस प्रकार संगृहीत वस्तु,
यथास्थिति, मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी द्वारा केन्द्रीय सरकार को न्यायालय या
अनुरोध पत्र जारी करने वाले प्राधिकारी को भेजने के लिए ऐसी रीति से अग्रेषित की
जाएंगी, जैसी केन्द्रीय सरकार ठीक समझे।
114.
व्यक्तियों का स्थानांतरण सुनिश्चित करने में सहायता ।--(
1 ) जहां भारत में कोई न्यायालय, किसी
आपराधिक मामले के संबंध में यह चाहता है कि उसके द्वारा जारी किया गया किसी
व्यक्ति को हाजिर होने या कोई दस्तावेज या अन्य चीज पेश करने के लिए गिरफ्तारी का
वारंट संविदाकारी राज्य में किसी स्थान पर निष्पादित किया जाए, वहां वह ऐसे वारंट
को ऐसे प्ररूप में दो प्रतियों में ऐसे न्यायालय, न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट को ऐसे
प्राधिकारी के माध्यम से भेजेगा, जिसे केन्द्रीय सरकार अधिसूचना द्वारा इस निमित्त
विनिर्दिष्ट करे और वह न्यायालय, न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट, यथास्थिति, उसे
निष्पादित कराएगा।
(2) यदि किसी अपराध के अन्वेषण या जांच के दौरान, अन्वेषण अधिकारी या उससे
वरिष्ठ पद के किसी अधिकारी द्वारा आवेदन किया जाता है कि किसी ऐसे व्यक्ति की, जो
संविदाकारी राज्य में किसी स्थान पर है, उपस्थिति ऐसी जांच या जांच के संबंध में
अपेक्षित है और न्यायालय का यह समाधान हो जाता है कि ऐसी उपस्थिति अपेक्षित है, तो
वह उक्त व्यक्ति के विरुद्ध दो प्रतियों में, ऐसे न्यायालय, न्यायाधीश या
मजिस्ट्रेट को, ऐसे प्ररूप में, जैसा केन्द्रीय सरकार अधिसूचना द्वारा इस निमित्त
विनिर्दिष्ट करे, समन या वारंट जारी करेगा, ताकि उसे तामील या निष्पादित कराया जा
सके।
(3) जहां भारत में किसी न्यायालय को, किसी आपराधिक मामले के संबंध में, किसी
व्यक्ति की गिरफ्तारी के लिए वारंट प्राप्त होता है, जिसमें उससे उस न्यायालय में
या किसी अन्य जांच एजेंसी के समक्ष उपस्थित होने या उपस्थित होने तथा कोई दस्तावेज
या अन्य चीज पेश करने की अपेक्षा की जाती है, जो किसी संविदाकारी राज्य के
न्यायालय, न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट द्वारा जारी किया गया हो, तो उसे इस प्रकार
निष्पादित किया जाएगा मानो वह भारत में किसी अन्य न्यायालय से उसकी स्थानीय सीमाओं
के भीतर निष्पादन के लिए प्राप्त वारंट हो।
(4) जहां उपधारा ( 3 ) के अधीन
संविदाकारी राज्य को स्थानांतरित किया गया कोई व्यक्ति भारत में कैदी है, वहां
भारत का न्यायालय या केन्द्रीय सरकार ऐसी शर्तें लगा सकेगी, जो न्यायालय या सरकार
ठीक समझे।
(5) जहां उपधारा ( 1 ) या उपधारा (
2 ) के अधीन भारत में स्थानांतरित
व्यक्ति किसी संविदाकारी राज्य में कैदी है, वहां भारत में न्यायालय यह सुनिश्चित
करेगा कि जिन शर्तों के अधीन कैदी को भारत में स्थानांतरित किया गया है उनका
अनुपालन किया जाए और ऐसे कैदी को ऐसी शर्तों के अधीन ऐसी अभिरक्षा में रखा जाएगा,
जैसा कि केंद्रीय सरकार लिखित रूप में निर्देश दे।
115.
संपत्ति की कुर्की या जब्ती के आदेशों के संबंध में सहायता ।--( 1 ) जहां भारत में किसी
न्यायालय के पास यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि किसी व्यक्ति द्वारा प्राप्त
कोई संपत्ति ऐसे व्यक्ति द्वारा किसी अपराध के किए जाने से प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः
प्राप्त की गई है, वहां वह ऐसी संपत्ति की कुर्की या जब्ती का आदेश दे सकता है,
जैसा वह धारा 116 से 122 (दोनों धाराएं सम्मिलित) के उपबंधों के अधीन ठीक समझे।
(2) जहां न्यायालय ने उपधारा ( 1 )
के अधीन किसी संपत्ति की कुर्की या जब्ती के लिए आदेश दिया है, और ऐसी संपत्ति के
किसी संविदाकारी राज्य में होने का संदेह है, वहां न्यायालय ऐसे आदेश के निष्पादन
के लिए संविदाकारी राज्य के न्यायालय या प्राधिकारी को अनुरोध पत्र जारी कर सकेगा।
(3) जहां केन्द्रीय सरकार को किसी संविदाकारी राज्य के न्यायालय या प्राधिकारी
से भारत में किसी संपत्ति की कुर्की या जब्ती का अनुरोध करने वाला अनुरोध पत्र
प्राप्त होता है, जो उस संविदाकारी राज्य में किए गए अपराध से किसी व्यक्ति द्वारा
प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्राप्त या प्राप्त की गई हो, वहां केन्द्रीय
सरकार ऐसे अनुरोध पत्र को, जैसा वह ठीक समझे, धारा 116 से 122 (दोनों धाराएं
सम्मिलित) या, जैसा भी मामला हो, किसी अन्य तत्समय प्रवृत्त विधि के उपबंधों के
अनुसार निष्पादन के लिए न्यायालय को अग्रेषित कर सकेगी।
116.
विधिविरुद्ध रूप से अर्जित संपत्ति की पहचान करना ।-- ( 1 ) न्यायालय, धारा 115 की उपधारा ( 1 ) के अधीन, या उपधारा ( 3 ) के अधीन अनुरोध पत्र प्राप्त होने पर,
पुलिस उपनिरीक्षक से नीचे की पंक्ति के किसी पुलिस अधिकारी को, ऐसी संपत्ति का पता
लगाने और उसकी पहचान करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाने का निर्देश देगा।
(2) उपधारा ( 1 ) में निर्दिष्ट
कदमों में किसी व्यक्ति, स्थान, संपत्ति, आस्तियों, दस्तावेजों, किसी बैंक या
सार्वजनिक वित्तीय संस्थाओं में खाता पुस्तकों या किसी अन्य प्रासंगिक मामलों के
संबंध में कोई जांच, अन्वेषण या सर्वेक्षण शामिल हो सकता है।
(3) उपधारा ( 2 ) में निर्दिष्ट
कोई जांच, अन्वेषण या सर्वेक्षण उपधारा ( 1
) में उल्लिखित अधिकारी द्वारा उक्त न्यायालय द्वारा इस संबंध में जारी किए गए
निदेशों के अनुसार किया जाएगा।
117.
संपत्ति का अभिग्रहण या कुर्की ।--( 1 ) जहां धारा 116 के अधीन जांच या
अन्वेषण करने वाले किसी अधिकारी के पास यह विश्वास करने का कारण है कि कोई
संपत्ति, जिसके संबंध में ऐसी जांच या अन्वेषण किया जा रहा है, छिपाई जाने, अंतरित
किए जाने या उससे किसी प्रकार से व्यवहार किए जाने की संभावना है, जिसके परिणामस्वरूप
ऐसी संपत्ति का व्ययन हो जाएगा, वहां वह ऐसी संपत्ति को अभिगृहीत करने के लिए आदेश
दे सकेगा और जहां ऐसी संपत्ति को अभिगृहीत करना साध्य न हो, वहां वह कुर्की का
आदेश दे सकेगा जिसमें यह निदेश दिया जाएगा कि ऐसी संपत्ति को, ऐसा आदेश देने वाले
अधिकारी की पूर्व अनुज्ञा के बिना, अंतरित नहीं किया जाएगा या उससे अन्यथा व्यवहार
नहीं किया जाएगा और ऐसे आदेश की एक प्रति संबंधित व्यक्ति को तामील की जाएगी।
( 2 )
उपधारा ( 1 ) के अधीन किया गया कोई
आदेश तब तक प्रभावी नहीं होगा जब तक कि उक्त आदेश, उसके किए जाने के तीस दिन की
अवधि के भीतर उक्त न्यायालय के आदेश द्वारा पुष्टि नहीं कर दिया जाता है।
अध्याय
के अधीन अभिगृहीत या समपहृत संपत्तियों का प्रबंध ।-- ( 1 ) न्यायालय उस क्षेत्र के जिला
मजिस्ट्रेट को, जहां संपत्ति स्थित है, या किसी अन्य अधिकारी को, जिसे जिला
मजिस्ट्रेट द्वारा नामनिर्देशित किया जाए, ऐसी संपत्ति के प्रशासक के कृत्यों का
पालन करने के लिए नियुक्त कर सकेगा।
(2) उपधारा ( 1 ) के अधीन नियुक्त
प्रशासक उस संपत्ति को प्राप्त करेगा और उसका प्रबंध करेगा जिसके संबंध में धारा
117 की उपधारा ( 1 ) या धारा 120 के अधीन आदेश किया गया है, ऐसी रीति से और
ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विनिर्दिष्ट की जाएं।
(3) प्रशासक, केन्द्रीय सरकार द्वारा जब्त की गई संपत्ति के निपटान के लिए ऐसे
उपाय भी करेगा जैसा केन्द्रीय सरकार निर्देश दे।
119.
संपत्ति के समपहरण की सूचना ।--( 1 ) यदि धारा 116 के अधीन जांच, अन्वेषण या सर्वेक्षण के परिणामस्वरूप
न्यायालय को यह विश्वास करने का कारण है कि ऐसी सभी या कोई संपत्ति अपराध की आय
है, तो वह ऐसे व्यक्ति पर (जिसे इसमें इसके पश्चात् प्रभावित व्यक्ति कहा गया है)
नोटिस तामील कर सकेगा, जिसमें उससे नोटिस में विनिर्दिष्ट तीस दिन की अवधि के भीतर
आय, उपार्जन या आस्तियों का स्रोत बताने के लिए कहा जाएगा, जिनसे या जिनके माध्यम
से उसने ऐसी संपत्ति अर्जित की है, वह साक्ष्य जिस पर वह निर्भर करता है तथा अन्य
सुसंगत जानकारी और विशिष्टियां बताने के लिए कहा जाएगा, तथा कारण बताने के लिए कहा
जाएगा कि ऐसी सभी या कोई संपत्ति, जैसी भी स्थिति हो, अपराध की आय क्यों न घोषित
कर दी जाए और केन्द्रीय सरकार को समपहृत क्यों न कर दी जाए।
( 2 ) जहां उपधारा ( 1 ) के अधीन किसी व्यक्ति को दी गई सूचना में यह निर्दिष्ट किया गया
है कि कोई संपत्ति किसी अन्य व्यक्ति द्वारा उस व्यक्ति की ओर से धारित है, वहां
सूचना की एक प्रति ऐसे अन्य व्यक्ति को भी तामील की जाएगी।
120.
कुछ मामलों में संपत्ति का समपहरण ।--( 1 ) न्यायालय, धारा 119 के अधीन जारी किए
गए कारण बताओ नोटिस के स्पष्टीकरण पर, यदि कोई हो, और अपने समक्ष उपलब्ध सामग्री
पर विचार करने के पश्चात् तथा प्रभावित व्यक्ति को (और ऐसे मामले में जहां
प्रभावित व्यक्ति नोटिस में विनिर्दिष्ट कोई संपत्ति किसी अन्य व्यक्ति के माध्यम
से धारण करता है, ऐसे अन्य व्यक्ति को भी) सुनवाई का उचित अवसर देने के पश्चात्,
आदेश द्वारा यह निष्कर्ष अभिलिखित कर सकेगा कि क्या प्रश्नगत सभी संपत्तियां या
उनमें से कोई संपत्ति अपराध की आय है:
बशर्ते कि यदि प्रभावित व्यक्ति (और ऐसे मामले
में जहां प्रभावित व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के माध्यम से नोटिस में निर्दिष्ट
किसी संपत्ति को धारण करता है, तो ऐसा अन्य व्यक्ति भी) कारण बताओ नोटिस में
निर्दिष्ट तीस दिनों की अवधि के भीतर न्यायालय के समक्ष उपस्थित नहीं होता है या
उसके समक्ष अपना मामला प्रस्तुत नहीं करता है, तो न्यायालय इस उप-धारा के तहत
एकपक्षीय निष्कर्ष रिकॉर्ड करने के लिए आगे बढ़ सकता है । उसके समक्ष उपलब्ध साक्ष्य के आधार पर।
(2) जहां न्यायालय का यह समाधान हो जाता है कि कारण बताओ नोटिस में निर्दिष्ट
कुछ संपत्तियां अपराध की आय हैं, किन्तु ऐसी संपत्तियों की विशिष्ट रूप से पहचान
करना संभव नहीं है, वहां न्यायालय के लिए यह विधिपूर्ण होगा कि वह उन संपत्तियों
को विनिर्दिष्ट करे जो उसके सर्वोत्तम निर्णय के अनुसार अपराध की आय हैं और उपधारा
( 1 ) के अधीन तदनुसार निष्कर्ष
अभिलिखित करे।
(3) जहां न्यायालय इस धारा के अधीन यह निष्कर्ष अभिलिखित करता है कि कोई
संपत्ति अपराध की आय है, वहां ऐसी संपत्ति सभी भारों से मुक्त होकर केन्द्रीय
सरकार को जब्त कर ली जाएगी।
(4) जहां किसी कंपनी में कोई शेयर इस धारा के अधीन केन्द्रीय सरकार को जब्त कर
लिया जाता है, वहां कंपनी, कंपनी अधिनियम, 2013 (2013 का 18) या कंपनी के संगम
अनुच्छेदों में किसी बात के होते हुए भी, केन्द्रीय सरकार को ऐसे शेयरों के
हस्तान्तरितकर्ता के रूप में तुरन्त पंजीकृत करेगी।
121.
जब्ती के बदले जुर्माना .--( 1 ) जहां न्यायालय यह
घोषणा करता है कि कोई संपत्ति धारा 120 के अधीन केन्द्रीय सरकार को जब्त कर ली गई
है और यह ऐसा मामला है जहां ऐसी संपत्ति के केवल एक भाग का स्रोत न्यायालय के
समाधानप्रद रूप में साबित नहीं किया गया है, वहां वह प्रभावित व्यक्ति को जब्ती के
बदले ऐसे भाग के बाजार मूल्य के बराबर
जुर्माना देने का विकल्प देते हुए आदेश देगा।
(2) उपधारा ( 1 ) के अधीन जुर्माना
अधिरोपित करने का आदेश देने से पहले, प्रभावित व्यक्ति को सुनवाई का उचित अवसर
दिया जाएगा।
(3) जहां प्रभावित व्यक्ति उपधारा ( 1 )
के अधीन देय जुर्माने का भुगतान उस निमित्त अनुज्ञात समय के भीतर कर देता है, वहां
न्यायालय आदेश द्वारा धारा 120 के अधीन जब्ती की घोषणा को रद्द कर सकेगा और तदुपरि
ऐसी संपत्ति मुक्त हो जाएगी।
122.
शून्य और अकृत होना ।--जहां धारा 117 की उपधारा ( 1 )
के अधीन आदेश किए जाने या धारा 119 के अधीन सूचना जारी किए जाने के पश्चात् उक्त
आदेश या सूचना में निर्दिष्ट कोई संपत्ति किसी भी प्रकार से अंतरित की जाती है,
वहां ऐसे अंतरणों को इस अध्याय के अधीन कार्यवाहियों के प्रयोजनों के लिए अनदेखा
कर दिया जाएगा और यदि ऐसी संपत्ति बाद में धारा 120 के अधीन केंद्रीय सरकार को
समपहृत कर ली जाती है, तो ऐसी संपत्ति का अंतरण शून्य और अकृत समझा जाएगा ।
123.
अनुरोध पत्र के संबंध में प्रक्रिया । इस अध्याय
के अधीन केन्द्रीय सरकार द्वारा किसी संविदाकारी राज्य से प्राप्त प्रत्येक अनुरोध
पत्र, समन या वारंट तथा उस संविदाकारी राज्य को प्रेषित किया जाने वाला प्रत्येक
अनुरोध पत्र, समन या वारंट, यथास्थिति, ऐसे प्ररूप में और ऐसी रीति से, जैसा
केन्द्रीय सरकार अधिसूचना द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे, संविदाकारी राज्य को
प्रेषित किया जाएगा या भारत में संबंधित न्यायालय को भेजा जाएगा।
124.
इस अध्याय का लागू होना ।-- केन्द्रीय सरकार,
राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, निदेश दे सकेगी कि किसी संविदाकारी राज्य के संबंध
में, जिसके साथ पारस्परिक व्यवस्थाएं की गई हैं, इस अध्याय का लागू होना ऐसी
शर्तों, अपवादों या अर्हताओं के अधीन होगा, जो उक्त अधिसूचना में विनिर्दिष्ट हैं।