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अध्याय 9

  अध्याय 9

शांति बनाए रखने और अच्छे व्यवहार के लिए सुरक्षा

122.                    दोषसिद्धि पर शांति बनाए रखने के लिए प्रतिभूति ।--( 1 ) जब सेशन न्यायालय या प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट का न्यायालय किसी व्यक्ति को उपधारा ( 2 ) में विनिर्दिष्ट किसी अपराध के लिए या किसी ऐसे अपराध के दुष्प्रेरण के लिए दोषसिद्ध करता है और उसकी राय है कि शांति बनाए रखने के लिए ऐसे व्यक्ति से प्रतिभूति लेना आवश्यक है, तब न्यायालय ऐसे व्यक्ति पर दंडादेश पारित करते समय उसे तीन वर्ष से अनधिक ऐसी अवधि के लिए, जितनी वह ठीक समझे, शांति बनाए रखने के लिए बंधपत्र या जमानत बंधपत्र निष्पादित करने का आदेश दे सकता है।

(2)    उपधारा ( 1 ) में निर्दिष्ट अपराध हैं-

(a)              भारतीय न्याय संहिता, 2023 (2023 का 45) के अध्याय XI के तहत दंडनीय कोई अपराध , धारा 193 की उपधारा ( 1 ) या धारा 196 या धारा 197 के तहत दंडनीय अपराध के अलावा;

(b)              कोई भी अपराध जिसमें हमला करना, आपराधिक बल का प्रयोग करना या शरारत करना शामिल है;

(c)              आपराधिक धमकी का कोई भी अपराध;

(d)              कोई अन्य अपराध जिससे शांति भंग हुई हो, या भंग होने का इरादा था या ऐसा होने की संभावना ज्ञात थी।

(3)    यदि अपील पर या अन्यथा दोषसिद्धि रद्द कर दी जाती है, तो इस प्रकार निष्पादित बांड या जमानत बांड शून्य हो जाएगा।

(4)    इस धारा के अंतर्गत आदेश अपील न्यायालय द्वारा या पुनरीक्षण की अपनी शक्तियों का प्रयोग करते समय न्यायालय द्वारा भी किया जा सकता है।

126. अन्य मामलों में शांति बनाए रखने के लिए सुरक्षा । ( 1 ) जब किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट को इत्तिला मिलती है कि कोई व्यक्ति शांति भंग करने या लोक शांति भंग करने या कोई ऐसा सदोष कार्य करने जा रहा है, जिससे शांति भंग होने या लोक शांति भंग होने की संभावना हो सकती है और उसकी राय में कार्यवाही करने के लिए पर्याप्त आधार है, तो वह इसमें इसके पश्चात् उपबंधित रीति से ऐसे व्यक्ति से यह अपेक्षा कर सकेगा कि वह कारण बताए कि उसे एक वर्ष से अनधिक ऐसी अवधि के लिए, जितनी मजिस्ट्रेट ठीक समझे, शांति बनाए रखने के लिए बंधपत्र या जमानत बंधपत्र निष्पादित करने का आदेश क्यों न दिया जाए।

( 2 ) इस धारा के अधीन कार्यवाही किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट के समक्ष तब की जा सकेगी जब या तो वह स्थान, जहां शांतिभंग या अशांति की आशंका हो, उसकी स्थानीय अधिकारिता के भीतर हो या ऐसी अधिकारिता के भीतर कोई ऐसा व्यक्ति हो, जिसके द्वारा शांतिभंग करने या लोक प्रशांति भंग करने या ऐसी अधिकारिता के बाहर पूर्वोक्त कोई सदोष कार्य करने की संभावना हो।

विषयों का प्रसार करने वाले व्यक्तियों से सदाचार के लिए सुरक्षा ।-- ( 1 ) जब किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट को इत्तिला मिलती है कि उसकी स्थानीय अधिकारिता के भीतर कोई ऐसा व्यक्ति है, जो ऐसी अधिकारिता के भीतर या बाहर,-

(i)               मौखिक रूप से या लिखित रूप से या किसी अन्य तरीके से, जानबूझकर प्रसारित करता है या प्रसारित करने का प्रयास करता है या प्रसारित करने के लिए प्रेरित करता है,—

(a)    कोई भी विषय जिसका प्रकाशन भारतीय न्याय संहिता, 2023 (2023 का 45) की धारा 152 या धारा 196 या धारा 197 या धारा 299 के अंतर्गत दंडनीय है; या

(b)    किसी न्यायाधीश द्वारा अपने आधिकारिक कर्तव्यों के निर्वहन में कार्य करने या कार्य करने का दावा करने से संबंधित कोई भी मामला जो भारतीय न्याय संहिता, 2023 के तहत आपराधिक धमकी या मानहानि के बराबर है;

(ii)             भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 294 में निर्दिष्ट किसी भी अश्लील सामग्री को बनाता, उत्पादित करता, प्रकाशित करता या बिक्री के लिए रखता है, आयात करता, निर्यात करता, पहुंचाता, बेचता, किराए पर देता, वितरित करता, सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करता या किसी अन्य तरीके से प्रचलन में लाता है ,

और मजिस्ट्रेट की यह राय है कि कार्यवाही के लिए पर्याप्त आधार है, वहां मजिस्ट्रेट ऐसे व्यक्ति से इसमें इसके पश्चात् उपबंधित रीति से यह अपेक्षा कर सकेगा कि वह कारण दर्शित करे कि उसे एक वर्ष से अनधिक ऐसी अवधि के लिए, जितनी मजिस्ट्रेट ठीक समझे, उसके अच्छे आचरण के लिए बंधपत्र या जमानत बंधपत्र निष्पादित करने का आदेश क्यों न दिया जाए।

( 2 ) प्रेस और पुस्तक पंजीकरण अधिनियम, 1867 (1867 का 25) में दिए गए नियमों के अनुसार पंजीकृत तथा संपादित, मुद्रित और प्रकाशित किसी प्रकाशन के संपादक, स्वामी, मुद्रक या प्रकाशक के विरुद्ध इस धारा के अधीन कोई कार्यवाही ऐसे प्रकाशन में अंतर्विष्ट किसी विषय के संदर्भ में राज्य सरकार या राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त सशक्त किसी अधिकारी के आदेश या प्राधिकार के अधीन ही की जाएगी, अन्यथा नहीं।

128.                    संदिग्ध व्यक्तियों से अच्छे आचरण के लिए प्रतिभूति - जब किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट को इत्तिला मिलती है कि उसकी स्थानीय अधिकारिता के भीतर कोई व्यक्ति अपनी उपस्थिति छिपाने के लिए पूर्वावधानियां बरत रहा है और यह मानने का कारण है कि वह कोई संज्ञेय अपराध करने की दृष्टि से ऐसा कर रहा है, तो मजिस्ट्रेट इसमें इसके पश्चात् उपबंधित रीति से ऐसे व्यक्ति से यह अपेक्षा कर सकेगा कि वह कारण दर्शित करे कि उसे एक वर्ष से अनधिक की ऐसी अवधि के लिए, जितनी मजिस्ट्रेट ठीक समझे, उसके अच्छे आचरण के लिए बंधपत्र या जमानत बंधपत्र निष्पादित करने का आदेश क्यों न दिया जाए।

129.                    अपराधियों से अच्छे आचरण के लिए सुरक्षा - जब किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट को यह सूचना प्राप्त होती है कि उसके स्थानीय अधिकार क्षेत्र में कोई ऐसा व्यक्ति है जो -

(a)              आदतन लुटेरा, घर तोड़ने वाला, चोर या जालसाज है; या

(b)              आदतन चोरी की गई संपत्ति को प्राप्त करने वाला व्यक्ति यह जानते हुए भी कि वह चोरी की गई है; या

(c)              आदतन चोरों को संरक्षण देता है या शरण देता है, या चोरी की संपत्ति को छिपाने या निपटाने में सहायता करता है; या

(d)              आदतन अपहरण, अपहरण, जबरन वसूली, धोखाधड़ी या शरारत का अपराध करता है, या करने का प्रयास करता है, या ऐसा करने के लिए उकसाता है, या भारतीय न्याय संहिता, 2023 के अध्याय X के तहत या उस संहिता की धारा 178, धारा 179, धारा 180 या धारा 181 के तहत दंडनीय कोई अपराध करता है; या

(e)              शांति भंग करने वाले अपराध आदतन करता है, करने का प्रयास करता है, या करने के लिए उकसाता है; या

(f)               आदतन ऐसा अपराध करता है, या करने का प्रयास करता है, या करने के लिए दुष्प्रेरित करता है- ( i ) निम्नलिखित अधिनियमों में से एक या अधिक के अधीन कोई अपराध करता है, अर्थात्:-

(a)  औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 (1940 का 23);

(b)  विदेशी अधिनियम, 1946 (1946 का 31);

(c)  कर्मचारी भविष्य निधि और प्रकीर्ण उपबंध अधिनियम, 1952 (1952 का 19);

(d)  आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 (1955 का 10);

(e)  नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 (1955 का 22);

(f)   सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 (1962 का 52);

(g)  खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 (2006 का 34); या

( ii ) जमाखोरी या मुनाफाखोरी या खाद्य या औषधियों में मिलावट या भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए किसी अन्य कानून के तहत दंडनीय कोई अपराध; या

(g)              वह इतना हताश और खतरनाक है कि बिना सुरक्षा के उसका खुला रहना समुदाय के लिए खतरनाक है,

वहां मजिस्ट्रेट, इसमें इसके पश्चात् उपबंधित रीति से, ऐसे व्यक्ति से यह अपेक्षा कर सकेगा कि वह कारण दर्शित करे कि उसे उसके अच्छे आचरण के लिए, तीन वर्ष से अनधिक की ऐसी अवधि के लिए, जैसी मजिस्ट्रेट ठीक समझे, जमानत बांड निष्पादित करने का आदेश क्यों न दिया जाए।

130.                    आदेश का किया जाना । - जब धारा 126, धारा 127, धारा 128 या धारा 129 के अधीन कार्य करने वाला मजिस्ट्रेट किसी व्यक्ति से ऐसी धारा के अधीन हेतुक दर्शित करने की अपेक्षा करना आवश्यक समझता है, तब वह प्राप्त सूचना का सार, निष्पादित किए जाने वाले बंधपत्र की रकम, वह अवधि जिसके लिए वह प्रवृत्त रहेगा और प्रतिभुओं की संख्या, प्रतिभुओं की पर्याप्तता और उपयुक्तता पर विचार करने के पश्चात् लिखित आदेश देगा।

131.                    न्यायालय में उपस्थित व्यक्ति के संबंध में प्रक्रिया - यदि वह व्यक्ति, जिसके संबंध में ऐसा आदेश दिया गया है, न्यायालय में उपस्थित है तो उसे आदेश पढ़कर सुनाया जाएगा या यदि वह ऐसा चाहे तो उसका सार उसे समझाया जाएगा।

132.                    उपस्थित न होने की दशा में समन या वारंट - यदि ऐसा व्यक्ति न्यायालय में उपस्थित नहीं है, तो मजिस्ट्रेट उससे उपस्थित होने की अपेक्षा करते हुए समन जारी करेगा, या जब ऐसा व्यक्ति अभिरक्षा में हो, तो उस अधिकारी को, जिसकी अभिरक्षा में वह व्यक्ति है, यह निर्देश देते हुए वारंट जारी करेगा कि वह उसे न्यायालय के समक्ष लाए:

परन्तु जब कभी किसी पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट पर या अन्य इत्तिला पर (जिस रिपोर्ट या इत्तिला का सार मजिस्ट्रेट द्वारा अभिलिखित किया जाएगा) ऐसे मजिस्ट्रेट को यह प्रतीत हो कि शांतिभंग होने की आशंका का कारण है और ऐसा शांतिभंग ऐसे व्यक्ति की तुरन्त गिरफ्तारी के सिवाय और किसी प्रकार से नहीं रोका जा सकता है तो मजिस्ट्रेट किसी भी समय उसकी गिरफ्तारी के लिए वारंट जारी कर सकता है।

133.                    आदेश की प्रति समन या वारंट के साथ होगी - धारा 132 के अधीन जारी किए गए प्रत्येक समन या वारंट के साथ धारा 130 के अधीन किए गए आदेश की एक प्रति होगी और ऐसी प्रति ऐसे समन या वारंट की तामील या निष्पादन करने वाले अधिकारी द्वारा उस व्यक्ति को दी जाएगी जिस पर उसकी तामील की गई है या जिसके अधीन उसे गिरफ्तार किया गया है।

134.                    उपस्थिति से अभिमुक्ति देने की शक्ति - यदि मजिस्ट्रेट को पर्याप्त कारण दिखाई दे तो वह किसी ऐसे व्यक्ति को वैयक्तिक उपस्थिति से अभिमुक्ति दे सकता है, जिससे यह कारण बताने की अपेक्षा की गई हो कि उसे शांति बनाए रखने या सदाचार के लिए बंधपत्र निष्पादित करने का आदेश क्यों न दिया जाए और वह उसे अधिवक्ता द्वारा उपस्थित होने की अनुज्ञा दे सकता है।

135.                    सूचना की सत्यता के बारे में जांच .--( 1 ) जब धारा 130 के अधीन कोई आदेश न्यायालय में उपस्थित किसी व्यक्ति को धारा 131 के अधीन पढ़कर सुना दिया गया हो या समझा दिया गया हो, या जब कोई व्यक्ति धारा 132 के अधीन जारी किए गए समन या वारंट के अनुपालन में या उसके निष्पादन में मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिर होता है या लाया जाता है, तब मजिस्ट्रेट उस सूचना की सत्यता की जांच करने के लिए, जिसके आधार पर कार्रवाई की गई है, आगे बढ़ेगा और ऐसा अतिरिक्त साक्ष्य लेगा, जो आवश्यक प्रतीत हो।

(2)    ऐसी जांच, यथासम्भव, समन मामलों में परीक्षण करने और साक्ष्य अभिलिखित करने के लिए इसमें इसके पश्चात् विहित रीति से की जाएगी।

(3)    उपधारा ( 1 ) के अधीन जांच के प्रारंभ के पश्चात् और पूरी होने के पूर्व, यदि मजिस्ट्रेट यह समझता है कि शांति भंग या लोक शांति में विघ्न या किसी अपराध के किए जाने के निवारण के लिए या लोक सुरक्षा के लिए तुरन्त उपाय आवश्यक हैं, तो वह कारणों को लेखबद्ध करके उस व्यक्ति को, जिसके संबंध में धारा 130 के अधीन आदेश किया गया है, जांच की समाप्ति तक शांति बनाए रखने या सदाचार बनाए रखने के लिए बंधपत्र या जमानत बंधपत्र निष्पादित करने का निर्देश दे सकता है और उसे ऐसे बंधपत्र या जमानत बंधपत्र के निष्पादित होने तक या निष्पादन न किए जाने की स्थिति में, जांच समाप्त होने तक अभिरक्षा में निरुद्ध रख सकता है:

उसे उपलब्ध कराया-

(a)              किसी भी व्यक्ति को, जिसके विरुद्ध धारा 127, धारा 128 या धारा 129 के अंतर्गत कार्यवाही नहीं की जा रही है, अच्छे आचरण बनाए रखने के लिए बांड या जमानत बांड निष्पादित करने का निर्देश नहीं दिया जाएगा;

(b)              ऐसे बंधपत्र की शर्तें, चाहे उसकी रकम के संबंध में हों या प्रतिभुओं के प्रावधान के संबंध में या उनकी संख्या के संबंध में या उनके दायित्व की धनीय सीमा के संबंध में, धारा 130 के अधीन आदेश में विनिर्दिष्ट शर्तों से अधिक कठिन नहीं होंगी।

(4)    इस धारा के प्रयोजनों के लिए यह तथ्य कि कोई व्यक्ति आदतन अपराधी है या इतना हताश और खतरनाक है कि बिना सुरक्षा के उसका खुला रहना समुदाय के लिए खतरनाक है, सामान्य ख्याति के साक्ष्य या अन्यथा द्वारा साबित किया जा सकता है।

(5)    जहां जांच के अधीन मामले में दो या अधिक व्यक्ति एक साथ सहयोजित किए गए हों, वहां उनके साथ एक ही या पृथक जांच में जैसा मजिस्ट्रेट न्यायसंगत समझे, निपटा जा सकेगा।

(6)    इस धारा के अधीन जांच उसके प्रारम्भ की तारीख से छह मास की अवधि के भीतर पूरी की जाएगी और यदि ऐसी जांच इस प्रकार पूरी नहीं की जाती है तो इस अध्याय के अधीन कार्यवाही उक्त अवधि की समाप्ति पर समाप्त हो जाएगी जब तक कि मजिस्ट्रेट विशेष कारणों से, जो लेखबद्ध किए जाएंगे, अन्यथा निदेश न दे:

परंतु जहां किसी व्यक्ति को ऐसी जांच लंबित रहने तक निरुद्ध रखा गया है, वहां उस व्यक्ति के विरुद्ध कार्यवाही, जब तक कि उसे पहले ही समाप्त न कर दिया गया हो, ऐसी निरुद्धि की छह माह की अवधि की समाप्ति पर समाप्त हो जाएगी।

(7)    जहां उपधारा ( 6 ) के अधीन कार्यवाही जारी रखने का कोई निदेश दिया जाता है, वहां सत्र न्यायाधीश व्यथित पक्षकार द्वारा उसको किए गए आवेदन पर ऐसे निदेश को रद्द कर सकता है यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि वह किसी विशेष कारण पर आधारित नहीं था या प्रतिकूल था।

136.                    सुरक्षा देने का आदेश - यदि ऐसी जांच पर यह साबित हो जाता है कि शांति बनाए रखने या अच्छे आचरण को बनाए रखने के लिए, जैसा भी मामला हो, यह आवश्यक है कि जिस व्यक्ति के संबंध में जांच की गई है उसे बांड या जमानत बांड निष्पादित करना चाहिए, मजिस्ट्रेट तदनुसार आदेश देगा: बशर्ते कि -

(a)              किसी भी व्यक्ति को धारा 130 के अधीन किए गए आदेश में विनिर्दिष्ट प्रकृति से भिन्न या उससे अधिक राशि या उससे अधिक अवधि के लिए प्रतिभूति देने का आदेश नहीं दिया जाएगा;

(b)              प्रत्येक बांड या जमानत बांड की राशि मामले की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए तय की जाएगी और अत्यधिक नहीं होगी;

(c)              जब वह व्यक्ति जिसके संबंध में जांच की जा रही है, बालक है, तो बंधपत्र केवल उसके जमानतदारों द्वारा ही निष्पादित किया जाएगा।

137.                    मजिस्ट्रेट अभिलेख पर इस आशय की प्रविष्टि करेगा और यदि ऐसा व्यक्ति केवल जांच के प्रयोजनों के लिए अभिरक्षा में है, तो उसे छोड़ देगा या यदि ऐसा व्यक्ति अभिरक्षा में नहीं है, तो उसे उन्मोचित कर देगा।

138.                    वह अवधि जिसके लिए प्रतिभूति अपेक्षित है , प्रारंभ - ( 1 ) यदि कोई व्यक्ति, जिसके संबंध में धारा 125 या धारा 136 के अधीन प्रतिभूति की अपेक्षा करने वाला आदेश किया जाता है, ऐसे आदेश किए जाने के समय कारावास से दण्डादिष्ट है या कारावास का दण्ड भोग रहा है, तो वह अवधि जिसके लिए ऐसी प्रतिभूति अपेक्षित है, ऐसे दण्डादेश की समाप्ति पर प्रारंभ होगी।

( 2 ) अन्य मामलों में ऐसी अवधि ऐसे आदेश की तारीख से प्रारंभ होगी जब तक कि मजिस्ट्रेट पर्याप्त कारण से बाद की तारीख नियत न कर दे।

139.                    बांड की अंतर्वस्तु - किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा निष्पादित किया जाने वाला बांड या जमानत बांड उसे, यथास्थिति, शांति बनाए रखने या अच्छे आचरण का पालन करने के लिए आबद्ध करेगा और बाद के मामले में कारावास से दंडनीय किसी अपराध का किया जाना या करने का प्रयास किया जाना या उसका दुष्प्रेरण किया जाना, चाहे वह कहीं भी किया गया हो, बांड या जमानत बांड का उल्लंघन माना जाएगा।

140.                    जमानतों को अस्वीकार करने की शक्ति ।— ( 1 ) मजिस्ट्रेट प्रस्तुत किए गए किसी जमानती को स्वीकार करने से इंकार कर सकता है, या इस अध्याय के अधीन उसके या उसके पूर्ववर्ती द्वारा पहले स्वीकार किए गए किसी जमानती को इस आधार पर अस्वीकार कर सकता है कि ऐसा जमानती जमानत बांड के प्रयोजनों के लिए अनुपयुक्त व्यक्ति है:

परन्तु किसी ऐसे प्रतिभू को स्वीकार करने से इंकार करने या अस्वीकार करने के पूर्व वह या तो स्वयं शपथ पर प्रतिभू की उपयुक्तता की जांच करेगा या अपने अधीनस्थ मजिस्ट्रेट से ऐसी जांच कराएगा और उस पर रिपोर्ट तैयार कराएगा।

(2)    ऐसा मजिस्ट्रेट जांच करने से पहले, जमानतदार को और उस व्यक्ति को, जिसने जमानत पेश की है, उचित सूचना देगा और जांच करते समय, अपने समक्ष प्रस्तुत साक्ष्य का सार अभिलिखित करेगा।

(3)    यदि मजिस्ट्रेट, उसके समक्ष या उपधारा ( 1 ) के अधीन नियुक्त मजिस्ट्रेट के समक्ष इस प्रकार प्रस्तुत किए गए साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात्, तथा ऐसे मजिस्ट्रेट की रिपोर्ट (यदि कोई हो) पर विचार करने के पश्चात्, संतुष्ट हो जाता है कि जमानतदार जमानत बांड के प्रयोजनों के लिए अनुपयुक्त व्यक्ति है, तो वह, यथास्थिति, ऐसे जमानतदार को स्वीकार करने से इंकार करने या अस्वीकार करने का आदेश देगा तथा ऐसा करने के अपने कारणों को अभिलिखित करेगा:

परन्तु किसी ऐसे प्रतिभू को, जिसे पहले स्वीकार कर लिया गया हो, अस्वीकार करने का आदेश देने से पूर्व मजिस्ट्रेट, जैसा वह ठीक समझे, समन या वारंट जारी करेगा और उस व्यक्ति को, जिसके लिए प्रतिभू आबद्ध है, अपने समक्ष उपस्थित कराएगा या अपने समक्ष पेश कराएगा।

141. प्रतिभूति न देने पर कारावास ।--( 1 ) ( ) यदि कोई व्यक्ति, जिसे धारा 125 या धारा 136 के अधीन प्रतिभूति देने का आदेश दिया गया है, उस तारीख को या उसके पूर्व ऐसी प्रतिभूति नहीं देता है, जिस तारीख को वह अवधि जिसके लिए ऐसी प्रतिभूति दी जानी है, प्रारंभ होती है, तो उसे, इसके पश्चात् उल्लिखित मामले के सिवाय, कारागार में भेज दिया जाएगा, या यदि वह पहले से ही कारागार में है, तो उसे तब तक कारागार में निरुद्ध रखा जाएगा, जब तक कि ऐसी अवधि समाप्त न हो जाए या जब तक कि ऐसी अवधि के भीतर वह उस न्यायालय या मजिस्ट्रेट को, जिसने उसकी अपेक्षा करने वाला आदेश दिया था, प्रतिभूति न दे दे;

( ) यदि कोई व्यक्ति धारा 136 के अधीन मजिस्ट्रेट के आदेश के अनुसरण में शांति बनाए रखने के लिए बंधपत्र या जमानत बंधपत्र निष्पादित करने के पश्चात्, ऐसे मजिस्ट्रेट या उसके कार्यालय- उत्तराधिकारी के समाधानप्रद रूप में यह साबित कर दिया जाता है कि उसने बंधपत्र या जमानत बंधपत्र का भंग किया है, तो ऐसा मजिस्ट्रेट या कार्यालय-उत्तराधिकारी ऐसे सबूत के आधारों को अभिलिखित करने के पश्चात् आदेश दे सकेगा कि उस व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाए और बंधपत्र या जमानत बंधपत्र की अवधि समाप्त होने तक कारागार में निरुद्ध रखा जाए और ऐसा आदेश किसी अन्य दण्ड या जब्ती पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना होगा, जिसके लिए उक्त व्यक्ति विधि के अनुसार उत्तरदायी हो सकता है।

(2)    जब किसी मजिस्ट्रेट ने ऐसे व्यक्ति को एक वर्ष से अधिक की अवधि के लिए प्रतिभूति देने का आदेश दिया है, तब यदि ऐसा व्यक्ति पूर्वोक्त प्रतिभूति नहीं देता है, तो ऐसा मजिस्ट्रेट उसे सेशन न्यायाधीश के आदेश लंबित रहने तक कारागार में निरुद्ध रखने का निर्देश देते हुए वारंट जारी करेगा और कार्यवाही सुविधानुसार शीघ्र ऐसे न्यायालय के समक्ष रखी जाएगी।

(3)    ऐसा न्यायालय, ऐसी कार्यवाहियों की परीक्षा करने के पश्चात् तथा मजिस्ट्रेट से कोई अतिरिक्त जानकारी या साक्ष्य, जो वह आवश्यक समझे, की मांग करने के पश्चात् तथा संबंधित व्यक्ति को सुनवाई का उचित अवसर देने के पश्चात्, मामले पर ऐसा आदेश पारित कर सकेगा, जैसा वह ठीक समझे:

बशर्ते कि प्रतिभूति देने में असफल रहने पर किसी व्यक्ति को कारावास की अवधि (यदि कोई हो) तीन वर्ष से अधिक नहीं होगी।

(4)    यदि एक ही कार्यवाही के दौरान दो या अधिक व्यक्तियों से प्रतिभूति की अपेक्षा की गई है, जिनमें से किसी एक के संबंध में कार्यवाही उपधारा ( 2 ) के अधीन सेशन न्यायाधीश को निर्दिष्ट की गई है तो ऐसे निर्देश के अंतर्गत ऐसे व्यक्तियों में से किसी अन्य का मामला भी होगा, जिसे प्रतिभूति देने का आदेश दिया गया है और उपधारा ( 2 ) और ( 3 ) के उपबंध, उस दशा में, ऐसे अन्य व्यक्ति के मामले पर भी लागू होंगे, सिवाय इसके कि वह अवधि (यदि कोई हो) जिसके लिए उसे कारावास दिया जा सकेगा, उस अवधि से अधिक नहीं होगी, जिसके लिए उसे प्रतिभूति देने का आदेश दिया गया था।

(5)    सेशन न्यायाधीश अपने विवेकानुसार उपधारा ( 2 ) या उपधारा ( 4 ) के अधीन अपने समक्ष रखी गई किसी कार्यवाही को अपर सेशन न्यायाधीश को अंतरित कर सकेगा और ऐसे अंतरण पर ऐसा अपर सेशन न्यायाधीश ऐसी कार्यवाहियों के संबंध में इस धारा के अधीन सेशन न्यायाधीश की शक्तियों का प्रयोग कर सकेगा।

(6)    यदि प्रतिभूति जेल के भारसाधक अधिकारी को सौंपी जाती है, तो वह मामले को तुरन्त उस न्यायालय या मजिस्ट्रेट को भेजेगा जिसने आदेश दिया था, और ऐसे न्यायालय या मजिस्ट्रेट के आदेश की प्रतीक्षा करेगा।

(7)    शांति बनाए रखने के लिए सुरक्षा प्रदान करने में विफलता के लिए कारावास सरल होगा।

(8)    जहां कार्यवाही धारा 127 के अधीन की गई है, वहां सदाचार के लिए प्रतिभूति न देने पर कारावास सादा होगा, और जहां कार्यवाही धारा 128 या धारा 129 के अधीन की गई है, वहां कठोर या सादा होगा, जैसा कि न्यायालय या मजिस्ट्रेट प्रत्येक मामले में निर्देश दे।

142. प्रतिभूति देने में असफल रहने के कारण कारावासित व्यक्तियों को छोड़ने की शक्ति ( 1 ) जब कभी जिला मजिस्ट्रेट, धारा 136 के अधीन कार्यपालक मजिस्ट्रेट द्वारा पारित आदेश के मामले में, या किसी अन्य मामले में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की यह राय हो कि इस अध्याय के अधीन प्रतिभूति देने में असफल रहने के कारण कारावासित किसी व्यक्ति को समुदाय या किसी अन्य व्यक्ति को संकट पहुंचाए बिना छोड़ा जा सकता है, तो वह ऐसे व्यक्ति को उन्मोचित किए जाने का आदेश दे सकता है।

(2)    जब कभी किसी व्यक्ति को इस अध्याय के अधीन प्रतिभूति देने में असफल रहने के कारण कारावासित किया गया हो, तब उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय, या जहां आदेश किसी अन्य न्यायालय द्वारा किया गया हो, वहां जिला मजिस्ट्रेट, धारा 136 के अधीन कार्यपालक मजिस्ट्रेट द्वारा पारित आदेश की दशा में, या किसी अन्य मामले में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, प्रतिभूति की रकम या प्रतिभुओं की संख्या या वह समय, जिसके लिए प्रतिभूति अपेक्षित की गई हो, कम करने वाला आदेश दे सकता है।

(3)    उपधारा ( 1 ) के अधीन आदेश ऐसे व्यक्ति को बिना किसी शर्त के या ऐसी किसी शर्त पर, जिसे ऐसा व्यक्ति स्वीकार करता है, उन्मोचित करने का निर्देश दे सकेगा:

परन्तु यह कि लगाई गई कोई शर्त तब प्रभावी नहीं रहेगी जब वह अवधि समाप्त हो जाए जिसके लिए ऐसे व्यक्ति को प्रतिभूति देने का आदेश दिया गया था।

(4)    राज्य सरकार नियमों द्वारा ऐसी शर्तें निर्धारित कर सकेगी जिन पर सशर्त उन्मोचन किया जा सकेगा।

(5)    यदि कोई शर्त, जिस पर किसी व्यक्ति को उन्मोचित किया गया है, जिला मजिस्ट्रेट की राय में, धारा 136 के अधीन किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट द्वारा पारित आदेश के मामले में, या किसी अन्य मामले में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा, जिसके द्वारा उन्मोचन का आदेश दिया गया था, या उसके उत्तराधिकारी की राय में, पूरी नहीं हुई है, तो वह उसे रद्द कर सकेगा।

(6)    जब उपधारा ( 5 ) के अधीन उन्मोचन का सशर्त आदेश रद्द कर दिया गया हो, तो ऐसे व्यक्ति को किसी पुलिस अधिकारी द्वारा वारंट के बिना गिरफ्तार किया जा सकेगा और तब उसे धारा 136 के अधीन कार्यपालक मजिस्ट्रेट द्वारा पारित आदेश की दशा में जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष या किसी अन्य मामले में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाएगा।

(7)    जब तक ऐसा व्यक्ति मूल आदेश के निबंधनों के अनुसार उस अवधि के शेष भाग के लिए प्रतिभूति नहीं देता है जिसके लिए उसे प्रथम बार सुपुर्द किया गया था या निरुद्ध किए जाने का आदेश दिया गया था (ऐसा भाग उन्मोचन की शर्तों के भंग की तारीख और उस तारीख के बीच की अवधि के बराबर अवधि समझा जाएगा जिसको ऐसी सशर्त उन्मोचन के सिवाय वह छोड़े जाने का हकदार होता), धारा 136 के अधीन कार्यपालक मजिस्ट्रेट द्वारा पारित आदेश की दशा में जिला मजिस्ट्रेट या किसी अन्य मामले में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ऐसे व्यक्ति को ऐसे शेष भाग की सजा काटने के लिए कारागार भेज सकता है।

(8)    उपधारा ( 7 ) के अधीन कारागार में प्रतिप्रेषित व्यक्ति, धारा 141 के उपबंधों के अधीन रहते हुए , उस न्यायालय या मजिस्ट्रेट को, जिसने ऐसा आदेश दिया था, या उसके उत्तराधिकारी को, पूर्वोक्त शेष भाग के लिए मूल आदेश के निबंधनों के अनुसार प्रतिभूति देने पर किसी भी समय छोड़ा जा सकेगा।

(9)    उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय किसी भी समय, पर्याप्त कारणों को लेखबद्ध करके, इस अध्याय के अधीन अपने द्वारा पारित किसी आदेश द्वारा निष्पादित शांति बनाए रखने या सदाचार के लिए किसी बंधपत्र को रद्द कर सकेगा और जिला मजिस्ट्रेट, धारा 136 के अधीन किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट द्वारा पारित आदेश की दशा में, या किसी अन्य मामले में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ऐसा रद्दकरण कर सकेगा, जहां ऐसा बंधपत्र उसके आदेश से या उसके जिले में किसी अन्य न्यायालय के आदेश से निष्पादित किया गया हो।

(10)किसी अन्य व्यक्ति के शान्तिपूर्ण आचरण या सदाचार के लिए कोई प्रतिभू, जिसे इस अध्याय के अधीन बंधपत्र निष्पादित करने का आदेश दिया गया है, किसी भी समय ऐसा आदेश देने वाले न्यायालय से बंधपत्र को रद्द करने के लिए आवेदन कर सकेगा और ऐसा आवेदन किए जाने पर न्यायालय, जैसा वह ठीक समझे, समन या वारंट जारी करेगा, जिसमें उस व्यक्ति को, जिसके लिए ऐसा प्रतिभू आबद्ध है, अपने समक्ष उपस्थित होने या लाए जाने की अपेक्षा करेगा।

143. बंधपत्र की शेष अवधि के लिए प्रतिभूति ।--( 1 ) जब कोई व्यक्ति, जिसके उपस्थित होने के लिए धारा 140 की उपधारा ( 3 ) के परन्तुक के अधीन या धारा 142 की उपधारा ( 10 ) के अधीन समन या वारंट जारी किया गया है, मजिस्ट्रेट या न्यायालय के समक्ष उपस्थित होता है या लाया जाता है, तब मजिस्ट्रेट या न्यायालय ऐसे व्यक्ति द्वारा निष्पादित बंधपत्र या जमानत बंधपत्र को रद्द कर देगा और ऐसे व्यक्ति को आदेश देगा कि वह ऐसे बंधपत्र की शेष अवधि के लिए मूल प्रतिभूति के समान ही नई प्रतिभूति दे।

( 2 ) ऐसा प्रत्येक आदेश धारा 139 से धारा 142 तक (दोनों धाराएं सम्मिलित) के प्रयोजनों के लिए, यथास्थिति, धारा 125 या धारा 136 के अधीन किया गया आदेश समझा जाएगा।
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