न्यायालयों की शक्ति
26. न्यायालय, जिनके द्वारा अपराध विचारणीय हैं- इस संहिता के अन्य उपबन्धों के अधीन रहते
हुए (क) भारतीय दण्ड संहिता ( 1860 का 45) के अधीन किसी अपराध का विचारण-
उच्च न्यायालय द्वारा किया जा सकता है, या सेशन न्यायालय द्वारा किया जा सकता है,
किसी अन्य ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है जिसके द्वारा उसका विचारणीय होना प्रथम अनुसूची में दर्शित किया गया है।
परन्तु भारतीय दंड संहिता की धारा अ6 और धारा 376क से धारा 376घ के अधीन किसी अपराध का विचारण यथासाध्य ऐसे न्यायालय द्वारा किया जाएगा, जिसमें महिला पीठासीन हो।
(ख) किसी अन्य विधि के अधीन-किसी अपराध का विचारण, जब उस विधि में इस निमित्त कोई न्यायालय उल्लिखित है, तब उस न्यायालय द्वारा किया जाएगा और जब कोई न्यायालय इस प्रकार उल्लिखित नहीं है, तब- उच्च न्यायालय द्वारा किया जा सकता है, या (i) किसी अन्य ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है.जिसके द्वारा उसका विचारणीय होना प्रथम आनुसूची में दर्शिति किया गया है।
(ख) किसी अन्य विधि के अन्तर्गत किसी अपराध का विचारण-
(i) जब उस विधि में इस निमित्त कोई न्यायालय उল्लिखित है, तब न्यायालय द्वारा, या ऐसे
न्यायालय की पंक्ति में वरिष्ठ किसी न्यायालय द्वारा किया जा सकता है, और
(ii) जब किसी न्यायालय का इस प्रकार उल्लेख नहीं किया जाता, तब ऐसे न्यायालय,
जिसके द्वारा उसका विचारणीय होना प्रथम अनुसुची में दर्शित किया गया है या ऐसे
न्यायालय मं पंक्ति में वरिष्ठ किसी न्यायालय द्वारा किया जा सकता है । " [उ० प्र०
अधिनियम संख्या 1 वर्ष 1984, धारा 6(दिनांक 1-5-1984 से प्रभावी)]।
27. किशेरों के मामलों में अधिकारिता-किसी ऐसे अपराध का विचारण, जो मृत्यु या आजीवन
कारावास से दण्डनौय नहीं है और जो ऐसे व्यक्ति द्वारा किया गया है, जिसकी आयु उस तारीख को, जब वह
यथालय के समक्ष हाजिर हो या लायां जाए, सोलह वर्ष से कम है, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय
द्वारा या किसी ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है जिसे बालक अधिनियम, 1950 1980 का 60) या ८a५
शोर अपराधियों के उपचार, प्रशिक्षण और पुनवसि के लिए उपबन्ध करने वाली तत्मय प्रवृत्त किसी अन्य
विधि के अधीन विशेष रूप से सशक्त किया गया है।
दण्डादेश, जो उच्च न्यायालय और सेशन न्यायाधीश दे सरकेंगे- (1) उच्च न्यायालय विधि
द्वारा प्राधिकृत कोई दण्डादेश दे सकता है। দ]
(2) सेशन न्योयाधीश या अपर सेशन न्यायाधीश विधि द्वारा प्राधिकृत कोई भी दण्डादेश दे सकता है,
किन्त उसके द्वारा दिए गए मूत्यु दण्डादेश केउच्च न्यायालय द्वारा पूष्ट किए जाने की आवश्यकता होगी।
(3) सहायेक सेशन न्यायाधीश मृत्यु या आजीवन कारावास या दस वर्ष से अधिक की अवधि के लिए
कारावास के दण्डादेश के सिबाय कोई ऐसा दण्डादेश दे सकता है जो विधि द्वारा प्राधिकृत है।
टिप्पणी
मामले के दीर्घकालिक लम्बन के कारण कम दण्ड न्यायोचित नहीं-कम दण्ड मामले के
दीर्घकालीन लम्बित रहने के आधार पर न्यायोचित नहीं हो सकता-स्टेट ऑफ मध्य प्रदेश बनाम घनश्याम
सिंह,
29. दण्डादेश, जो मजिस्ट्रेट दे सकेंगे- (1) मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट का न्यायालय मृत्यु या
आजीवन कारावास या सात वर्ष से अधिक की अवधि के लिए कारावास के दण्डादेश के सिवाय कोई ऐसा
दण्डादेश दे सकता है जो विधि द्वारा प्राधिकृत है। ৭M,
(2) प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट का न्यायालय तीन वर्ष से अनधिक अवधि के लिए कारावास का या [दस r2
हजार रुपये। से अनधिक जुमाने का, या दोनों का, दण्डादेेश दे सकता है।
(3) द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट का न्यायालय एक वर्ष से अनधिक अवधि के लिए कारावास का या भपाँच /0
हजार रुपये) से अनधिक जुमाने का, या दोनों का, दण्डादेश दे सकता है ।
(4) मुख्य मुहानगर मजिस्ट्रेट के न्यायालय को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रिट के न्यायालय की शक्तियाँ और
महानगर मजिस्ट्रेट के न्यायालय को प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट की शक्तियाँ होंगी।
29-क. दण्ड, जिसे कार्यपालक मजिस्ट्रेट पारित कर सकेगा- कार्यपालक मजिस्ट्रेट ऐसी
अवधि के कारावास का, जो तीन वर्ष से अधिक न हो या जुरमाने का, जो पाँच हजार रुपये से अधिक न
हो, दण्ड या दोनों पारित कर सकेगा। '" [पंजाब अधिनियम संख्या 22 वर्ष 1983 (27-6-1993 से
प्रभावी)
30. जुर्माना देने में व्यतिकम होने पर कारावास का दण्डादेश-(1) किसी मजिस्ट्रेट का
न्यायालय जुर्माना देने में व्यतिक्रम होने पर इतनी अवधि का कारावास अधिनिर्णीत कर सकता है जो विधि
द्वारा प्राधिकृत है-
परन्तु वह अवधि-
(क) धारा 29 के अधीन मजिस्ट्रेट की शक्ति से अधिक नहीं होगी,
1. दण्ड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम, 200s (2005 का 25) की धारा 5 द्वारा ""पाँच हजार रुपये" के स्थान पर
(23-6-200 से) प्रतिस्थापित ।
2. उक्त द्वारा " एक हजार रुपये" के स्थान पर (23-6-2005 से) प्रतिस्थापित।
(ख) जहाँ कारावास मुख्य दण्डादेश के भाग के रूप में अधिनिर्णीत किया गया है, वहाँ वह उस
कारावास की अवधके चौथाई से अधिक न होगी जिसको मजिस्ट्रेट उस अपराध के लिए, न
कি जर्माना देने में व्यतिक्रम होने पर दण्ड के तौर पर देने के लिए सक्षम है।
(2) इस धारा के अधीन अधिनिर्णीत कारावास उस मजिस्ट्रेट द्वारा धारा 29 के अधीन अधिनिर्णीत की
जसकने वाली अधिकतम अवधि के कारावास के मुख्य दण्डादेश के अतिरिक्त हो सकता है ।
(31. एक ही विचारण में कई अपराधों के लिए दोषसिद्ध होने के मामलों में दण्डादेश - (1)
जब एक विचारण में कोईव्यक्ति दो या अधिक अपराधों के लिए दोषसिद्ध किया जाता है तब, भारतीय दण्ड
संहिता (1850 का 45) को धारा 71 के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, न्यायालय उसे उन अपरारधों के लिए
ित विभि्न दण्डों में से उन दण्डों के लिए, जिन्हें देने के लिए ऐसा न्यायालय सक्षम है, दण्डादेश दे
सकता है, जब ऐसे दण्ड कारावास के रूप में हों तब, यदि न्यायालय ने यह निदेश न दिया हो कि ऐसे दण्ड
साथ-साथ भोगे जाएंगे, तो वे ऐसे क्रम से एक के बाद एक प्रारम्भ होंगे जिसका न्यायालय निदेश दे।
(2) दण्डादेशों के क्रमव्ती होने की दशा में केवल इस कारण से कि कई अपराधों के लिए संकलित
दण्ड उस दण्ड से अधिक है जो वह न्यायालय एक अपराध के लिए दोषसिद्धि पर देने के लिए सक्षम है.
्यायालय के लिए यह आवश्यक नहीं होगा कि अपराधी को उच्चतर न्यायालय के समक्ष विचारण के लिए
भेजे, परन्तु
(क) किसी भी दशा में ऐसा व्यक्ति चौदह वर्ष से अधिक की अवधि के कारावास के लिए
दष्ड़ादिष्ट नहीं किया जाएगा,
(ख) संकलित दण्ड उस दण्ड की मात्रा के द्रुगने से अधिक न होगा ज़िसे एक अपराध के लिए देने
के लिए वह न्यायालय सक्षम है।,
(3) किसी सिद्धदोष व्यक्ति द्वारा अपील के प्रयोजन के लिए उन क्रमवर्ती दण्डादेशों का योग, जो इस
धारा के अधीन उसके विरुद्ध दिए गए हैं, एक दण्डादेश समझा जाएगा।
टिप्पणी
अनेक अपराधों के लिए दोषसिद्ध के मामले में दण्ड-अभियुक्त 14 वर्ष से अधिक लम्बी
अवधि के कारावास से दण्डित नहीं किया जा सकता था। 20 वर्ष के कठोर कारावास का दण्ड जो अभियुक्त
पर लगाया गया था वह निरस्त किये जाने योग्य था। चतर सिंह बनाम मध्य प्रदेश राज्य, ए० आई० आर०
2007 एस० सी० 319.
32 शक्तियाँ प्रदान करने का ढंग-(1) इस संहिता के अधीन शक्तियाँ प्रदान करने में, यथास्थिति,
उच्च न्यायालय या राज्य सरकार व्यक्तियों को विशेषतया नाम से या उसके पद के अाधार पर अथवा
पदधारियों के वर्गों को साधारणतया उनके पदीय आभिधानों से, आदेश द्वारा, सशक्त कर सकती है।
(2) ऐसा प्रत्येक आदेश उस तारीख से प्रभावी होगा जिस तारीख को वह ऐसे सशक्त किए गए व्यक्ति को ८-
संसूचित किया जाता है।
33. नियक्त अधिकारियों की शक्तिरयाँ-सरकार की सेवा में पद धारण करने वाला ऐसा व्यक्ति,
जिसमें उच्च न्यायालय या राज्य सरकार द्वारा, इस संहिता के अरधीन कोई शक्तियाँ किसी समग्र स्थानीय क्षेत्र के
लिए निहित की गई हैं जब कभी उसी प्रकार के समान या उच्चतर पद पर उसी राज्य सरकार के अधीन वैसे
ही स्थानीय क्षेत्र के अन्दर नियुक्त किया जाता है, तब वह, जब तक, यथास्थिति, उच्च न्यायालय या राज्य
सरकार अन्मथा निदेश न दे या न दे चुकी हो, उस स्थानीय क्षेत्र में, जिसमें वह ऐसे नियुक्त किया गया है,
उन्हीं शक्तियों का प्रयोंग करेगा।
34. शक्तिर्यों को वापस लेना-(1)यथास्थिति, उच्च न्यायालय या राज्य सरकार उन सब शकतियों
को या उनमें से किसी को वापस ले सकती है जो उसने या उसके अधीनस्थ किसी अधिकारी ने किसी व्यक्ति
को इस संहिता के अधीन प्रदत्त की है।
() मख्य न्यायिक मजिस्ट्रिट यो जिला मजिस्ट्रेट द्वारा प्रदत्त किन्हीं शक्तियों को उस मजिस्ट्रेट द्वारा
वापस लिया जा सकता है जिसके द्वारा वे शक्तियां प्रदान की गई थीं।
यायाधीशों और मजिस्ट्रेटों की शक्तियों का उनके पद-उत्तरवर्तियों द्वारा प्रयोग किया जा
सकना-(1) इस संहिता के अन्य उपबन्धों के अधीन रहते हुए, किसी न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट की
शक्तियों और कर्त्यों
का प्रयोग या पालन उसके पद-उत्तरवती द्वारा किया जा सकता है।
() जब इस बारे में कोई शंका है किे किसी अपर या सहायक सेशन न्यायाधीश का पद-उत्तरवती कौन
है तब सेशन न्यायाधीश लिखित आदेश द्वारा यह अव्धारित करेगा कि कौन सा न्यायाधीश इस संहिता के, या
दमके अधीन किन्हीं कार्यवाहियों या आदेशों के प्रयोजनों के लिए ऐसे अपर या सहायक सेशन न्यायाधीश का
पद-उत्तरवती समझा जाएगा।
(3) जब इस बारे में कोई शंका है कि किसी मजिस्ट्रेट का पद -उत्तरवर्ती कौन है तब यथास्थिति, मुख्य
न्यायिक मजिस्ट्रेट या जिला मजिस्ट्रेट लिखित आदेश द्वारा यह अवधारित करेगा कि कौन सा मजिस्ट्रेट इस
संहिता के, या इसके अधीन किन्हीं कार्यवाहियों या आदेशों के प्रयोजनों के लिए ऐसे मजिस्ट्रट का पद-
उत्तरवती समझा जाएगा।