अध्याय 13
पुलिस को सूचना और उनकी जांच करने की शक्तियां
173.
संज्ञेय मामलों में सूचना ।-- ( 1 ) संज्ञेय अपराध के किए जाने से संबंधित प्रत्येक सूचना, चाहे वह
किसी भी क्षेत्र में किया गया हो, मौखिक रूप से या इलेक्ट्रानिक संचार द्वारा
पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को दी जा सकेगी और यदि दी जाए तो-
(i)
मौखिक रूप से दी गई सूचना को उसके
द्वारा या उसके निर्देशन में लिखित रूप में प्रस्तुत किया जाएगा तथा सूचना देने
वाले को पढ़कर सुनाया जाएगा; तथा प्रत्येक ऐसी सूचना, चाहे वह लिखित रूप में दी गई
हो या पूर्वोक्त रूप से लिखित रूप में दी गई हो, उसे देने वाले व्यक्ति द्वारा
हस्ताक्षरित की जाएगी;
(ii)
इलेक्ट्रॉनिक संचार द्वारा, इसे
देने वाले व्यक्ति द्वारा तीन दिनों के भीतर हस्ताक्षर किए जाने पर इसे रिकॉर्ड पर
ले लिया जाएगा,
और उसका सार ऐसे अधिकारी
द्वारा रखी जाने वाली पुस्तक में ऐसे प्ररूप में दर्ज किया जाएगा जैसा राज्य सरकार
नियमों द्वारा इस निमित्त विहित करे:
बशर्ते कि यदि सूचना उस महिला द्वारा दी जाती
है जिसके विरुद्ध भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 64, धारा 65, धारा 66, धारा
67, धारा 68, धारा 69, धारा 70, धारा 71, धारा 74, धारा 75, धारा 76, धारा 77,
धारा 78, धारा 79 या धारा 124 के अंतर्गत अपराध किए जाने या प्रयास किए जाने का
आरोप है, तो ऐसी सूचना महिला पुलिस अधिकारी या किसी महिला अधिकारी द्वारा दर्ज की
जाएगी:
आगे
यह भी प्रावधान है कि—
(a)
यदि वह व्यक्ति जिसके विरुद्ध
भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 64, धारा 65, धारा 66, धारा 67, धारा 68, धारा
69, धारा 70, धारा 71, धारा 74, धारा 75, धारा 76, धारा 77, धारा 78, धारा 79 या
धारा 124 के अंतर्गत कोई अपराध किया जाना या करने का प्रयास किया जाना कथित है,
अस्थायी या स्थायी रूप से मानसिक या शारीरिक रूप से अक्षम है, तो ऐसी सूचना पुलिस
अधिकारी द्वारा, ऐसे अपराध की रिपोर्ट करने के इच्छुक व्यक्ति के निवास पर या ऐसे
व्यक्ति की पसंद के सुविधाजनक स्थान पर, दुभाषिया या विशेष शिक्षक की उपस्थिति
में, जैसी भी स्थिति हो, दर्ज की जाएगी;
(b)
ऐसी सूचना की रिकॉर्डिंग की
वीडियोग्राफी की जाएगी ;
(c)
पुलिस अधिकारी व्यक्ति का कथन धारा
183 की उपधारा ( 6 ) के खंड ( क ) के अधीन
मजिस्ट्रेट द्वारा यथाशीघ्र दर्ज कराएगा।
(2) उपधारा ( 1 ) के अधीन अभिलिखित
सूचना की एक प्रति सूचनादाता या पीड़ित को तत्काल, निःशुल्क दी जाएगी।
(3) धारा 175 में अंतर्विष्ट उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, किसी
संज्ञेय अपराध के किए जाने से संबंधित सूचना प्राप्त होने पर, जो तीन वर्ष या उससे
अधिक किंतु सात वर्ष से कम दंडनीय है, पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी, अपराध की
प्रकृति और गंभीरता पर विचार करते हुए, पुलिस उपाधीक्षक से अन्यून पद के अधिकारी
की पूर्व अनुमति से ,—
(i)
चौदह दिन की अवधि के भीतर यह पता
लगाने के लिए प्रारंभिक जांच करना कि क्या मामले में कार्यवाही करने के लिए प्रथम दृष्टया मामला विद्यमान है; या
(ii)
प्रथम दृष्टया मामला सामने आने पर जांच आगे
बढ़ाई जाएगी ।
(4) कोई व्यक्ति, जो किसी पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी द्वारा उपधारा ( 1 ) में निर्दिष्ट सूचना को अभिलेखित करने
से इंकार किए जाने से व्यथित है, ऐसी सूचना का सार लिखित रूप में तथा डाक द्वारा
संबंधित पुलिस अधीक्षक को भेज सकेगा, जो यदि संतुष्ट हो जाए कि ऐसी सूचना से किसी
संज्ञेय अपराध का किया जाना प्रकट होता है तो वह या तो स्वयं मामले की जांच करेगा
या अपने अधीनस्थ किसी पुलिस अधिकारी द्वारा इस संहिता द्वारा उपबंधित रीति से जांच
कराए जाने का निर्देश देगा और ऐसे अधिकारी को उस अपराध के संबंध में पुलिस थाने के
भारसाधक अधिकारी की सभी शक्तियां प्राप्त होंगी, अन्यथा ऐसा व्यथित व्यक्ति मजिस्ट्रेट
को आवेदन कर सकेगा।
174.
असंज्ञेय मामलों के बारे में सूचना और ऐसे मामलों का अन्वेषण।-- ( 1 ) जब किसी पुलिस थाने के
भारसाधक अधिकारी को उस थाने की सीमाओं के भीतर किसी असंज्ञेय अपराध के घटित होने
की सूचना दी जाती है, तब वह सूचना का सार उस अधिकारी द्वारा रखी जाने वाली पुस्तक
में ऐसे प्ररूप में दर्ज करेगा या दर्ज कराएगा, जैसा राज्य सरकार नियमों द्वारा इस
निमित्त विहित करे, और,-
(i)
सूचनाकर्ता को मजिस्ट्रेट के पास
भेजना;
(ii) ऐसे सभी मामलों की दैनिक डायरी रिपोर्ट पाक्षिक रूप से मजिस्ट्रेट को
भेजेगा।
(2) कोई भी पुलिस अधिकारी किसी असंज्ञेय मामले की जांच ऐसे मजिस्ट्रेट के आदेश
के बिना नहीं करेगा, जिसे ऐसे मामले की सुनवाई करने या मामले को सुनवाई के लिए
सौंपने का अधिकार हो।
(3) ऐसा आदेश प्राप्त करने वाला कोई भी पुलिस अधिकारी जांच के संबंध में
उन्हीं शक्तियों का प्रयोग कर सकता है (बिना वारंट के गिरफ्तार करने की शक्ति को
छोड़कर) जैसा कि किसी पुलिस थाने का प्रभारी अधिकारी किसी संज्ञेय मामले में कर
सकता है।
(4) जहां कोई मामला दो या अधिक अपराधों से संबंधित है, जिनमें से कम से कम एक
संज्ञेय है, तो मामला संज्ञेय मामला माना जाएगा, भले ही अन्य अपराध असंज्ञेय हों।
मामले
की जांच करने की पुलिस अधिकारी की शक्ति । - ( 1 ) किसी पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी,
मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना, किसी ऐसे संज्ञेय मामले की जांच कर सकता है, जिसकी
जांच या विचारण करने की शक्ति ऐसे थाने की सीमाओं के भीतर स्थानीय क्षेत्र पर
अधिकारिता रखने वाले न्यायालय को अध्याय XIV के उपबंधों के अधीन होगी:
बशर्ते कि अपराध की प्रकृति और गंभीरता को
ध्यान में रखते हुए पुलिस अधीक्षक, पुलिस उपाधीक्षक को मामले की जांच करने के लिए
कह सकेगा।
(2) किसी भी ऐसे मामले में पुलिस अधिकारी की कार्यवाही किसी भी प्रक्रम पर इस
आधार पर प्रश्नगत नहीं की जाएगी कि मामला ऐसा था जिसका अन्वेषण करने के लिए ऐसे
अधिकारी को इस धारा के अधीन सशक्त नहीं किया गया था।
(3) धारा 210 के अधीन सशक्त कोई मजिस्ट्रेट, धारा 173 की उपधारा ( 4 ) के अधीन किए गए शपथपत्र द्वारा
समर्थित आवेदन पर विचार करने के पश्चात्, तथा ऐसी जांच करने के पश्चात्, जैसी वह
आवश्यक समझे, तथा पुलिस अधिकारी द्वारा इस संबंध में किए गए निवेदन को ध्यान में
रखते हुए, ऊपर वर्णित जांच का आदेश दे सकेगा।
(4) धारा 210 के अधीन सशक्त कोई मजिस्ट्रेट, किसी लोक सेवक के विरुद्ध उसके
पदीय कर्तव्यों के निर्वहन के दौरान उत्पन्न होने वाली शिकायत प्राप्त होने पर,
निम्नलिखित के अधीन रहते हुए, जांच का आदेश दे सकता है-
(a)
अपने से वरिष्ठ अधिकारी से घटना के
तथ्यों और परिस्थितियों से संबंधित रिपोर्ट प्राप्त करना; तथा
(b)
लोक सेवक द्वारा कथित घटना के कारण
बनी स्थिति के संबंध में दिए गए कथनों पर विचार करने के पश्चात।
176.
अन्वेषण की प्रक्रिया ।--( 1 ) यदि किसी पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को, प्राप्त इत्तिला से
या अन्यथा, किसी अपराध के किए जाने का संदेह करने का कारण हो, जिसका अन्वेषण करने
के लिए वह धारा 175 के अधीन सशक्त है, तो वह तत्काल उसकी रिपोर्ट ऐसे मजिस्ट्रेट
को भेजेगा जो पुलिस रिपोर्ट पर ऐसे अपराध का संज्ञान लेने के लिए सशक्त है और वह
स्वयं जाएगा या अपने अधीनस्थ अधिकारियों में से किसी एक को, जो राज्य सरकार द्वारा
साधारण या विशेष आदेश द्वारा इस निमित्त विहित पद से नीचे का न हो, घटनास्थल पर
जाकर मामले के तथ्यों और परिस्थितियों की जांच करने और यदि आवश्यक हो तो अपराधी का
पता लगाने और उसे गिरफ्तार करने के लिए उपाय करने के लिए नियुक्त करेगा :
उसे
उपलब्ध कराया-
(a)
जब किसी व्यक्ति के विरुद्ध ऐसे
किसी अपराध के किए जाने की सूचना नाम से दी जाती है और मामला गंभीर प्रकृति का
नहीं है, तो पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को स्वयं जाकर जांच करने या अधीनस्थ
अधिकारी को मौके पर जांच करने के लिए प्रतिनियुक्त करने की आवश्यकता नहीं है;
(b)
यदि किसी पुलिस थाने के भारसाधक
अधिकारी को ऐसा प्रतीत होता है कि जांच शुरू करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं है,
तो वह मामले की जांच नहीं करेगा:
आगे यह भी प्रावधान है कि बलात्कार के अपराध के
संबंध में, पीड़िता का बयान पीड़िता के निवास पर या उसकी पसंद के स्थान पर तथा
जहां तक संभव हो, पीड़िता के माता-पिता या अभिभावक या निकट संबंधियों या इलाके के
सामाजिक कार्यकर्ता की उपस्थिति में महिला पुलिस अधिकारी द्वारा दर्ज किया जाएगा
और ऐसा बयान मोबाइल फोन सहित किसी भी ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से भी दर्ज
किया जा सकता है।
(2) उपधारा ( 1 ) के प्रथम परन्तुक के
खण्ड ( क ) और ( ख ) में वर्णित
प्रत्येक मामले में , पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी अपनी रिपोर्ट में उन कारणों
का कथन करेगा कि उसने उस उपधारा की अपेक्षाओं का पूर्णतया अनुपालन क्यों नहीं किया
और दैनिक डायरी रिपोर्ट मजिस्ट्रेट को पाक्षिक रूप से भेजेगा और उक्त परन्तुक के
खण्ड ( ख ) में उल्लिखित मामले में
अधिकारी सूचना देने वाले को, यदि कोई हो, तुरन्त ऐसी रीति से अधिसूचित करेगा, जैसा
कि राज्य सरकार द्वारा बनाए गए नियमों द्वारा विहित किया जाए।
(3) किसी ऐसे अपराध के किए जाने से संबंधित प्रत्येक सूचना की प्राप्ति पर, जो
सात वर्ष या उससे अधिक के लिए दंडनीय है, पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी, उस तारीख
से, जिसे राज्य सरकार द्वारा इस संबंध में पांच वर्ष की अवधि के भीतर अधिसूचित
किया जाए, अपराध में फोरेंसिक साक्ष्य एकत्र करने के लिए फोरेंसिक विशेषज्ञ को
अपराध स्थल पर भेजेगा और मोबाइल फोन या किसी अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण पर प्रक्रिया
की वीडियोग्राफी भी कराएगा:
परंतु जहां किसी ऐसे अपराध के संबंध में
फोरेंसिक सुविधा उपलब्ध नहीं है, वहां राज्य सरकार, जब तक उस मामले के संबंध में
सुविधा राज्य में विकसित या बना नहीं ली जाती है, किसी अन्य राज्य की ऐसी सुविधा
के उपयोग को अधिसूचित करेगी।
177.
रिपोर्ट कैसे प्रस्तुत की जाएगी - ( 1 ) धारा 176 के अधीन मजिस्ट्रेट को भेजी
गई प्रत्येक रिपोर्ट, यदि राज्य सरकार ऐसा निदेश दे, ऐसे वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के
माध्यम से प्रस्तुत की जाएगी जिसे राज्य सरकार साधारण या विशेष आदेश द्वारा उस
निमित्त नियुक्त करे।
( 2 )
ऐसा वरिष्ठ अधिकारी पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को ऐसे अनुदेश दे सकेगा, जो वह
ठीक समझे और ऐसे अनुदेशों को ऐसी रिपोर्ट पर अभिलिखित करने के पश्चात् उन्हें
अविलम्ब मजिस्ट्रेट को भेजेगा।
178.
अन्वेषण या प्रारंभिक जांच करने की शक्ति -
मजिस्ट्रेट, धारा 176 के अधीन रिपोर्ट प्राप्त होने पर, अन्वेषण का निर्देश दे
सकता है या यदि वह ठीक समझे तो तुरन्त कार्यवाही कर सकता है या अपने अधीनस्थ किसी
मजिस्ट्रेट को इस संहिता में उपबंधित रीति से प्रारंभिक जांच करने या अन्यथा मामले
का निपटारा करने के लिए प्रतिनियुक्त कर सकता है।
179.
साक्षियों को उपस्थित कराने की पुलिस अधिकारी की शक्ति - ( 1 ) इस अध्याय के अधीन
अन्वेषण करने वाला कोई पुलिस अधिकारी लिखित आदेश द्वारा अपने या किसी निकटवर्ती
थाने की सीमाओं के भीतर के किसी ऐसे व्यक्ति को अपने समक्ष उपस्थित कराने की
अपेक्षा कर सकेगा जो दी गई जानकारी से या अन्यथा मामले के तथ्यों और परिस्थितियों
से परिचित प्रतीत होता है; और ऐसा व्यक्ति अपेक्षानुसार उपस्थित होगा:
बशर्ते कि पंद्रह वर्ष से कम या साठ वर्ष से अधिक आयु के किसी पुरुष
व्यक्ति या किसी महिला या मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्ति या गंभीर
बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति को उस स्थान के अलावा किसी अन्य स्थान पर उपस्थित होने
की आवश्यकता नहीं होगी जहां ऐसा व्यक्ति निवास करता है:
आगे यह भी प्रावधान है कि यदि ऐसा व्यक्ति
पुलिस थाने में उपस्थित होने के लिए इच्छुक है तो उसे ऐसा करने की अनुमति दी जा
सकेगी।
( 2 )
राज्य सरकार, इस निमित्त बनाए गए नियमों द्वारा, प्रत्येक व्यक्ति के, जो उपधारा (
1 ) के अधीन उसके निवास स्थान से भिन्न
किसी स्थान पर उपस्थित होता है, युक्तियुक्त व्यय का पुलिस अधिकारी द्वारा भुगतान
किए जाने का उपबंध कर सकेगी।
पुलिस
द्वारा साक्षियों की परीक्षा ।-- ( 1 ) इस अध्याय के अधीन अन्वेषण करने वाला कोई पुलिस अधिकारी या राज्य
सरकार द्वारा साधारण या विशेष आदेश द्वारा इस निमित्त विहित पद से नीचे का कोई
पुलिस अधिकारी, ऐसे अधिकारी की अपेक्षा पर कार्य करते हुए, मामले के तथ्यों और
परिस्थितियों से परिचित समझे जाने वाले किसी व्यक्ति की मौखिक परीक्षा कर सकता है।
(2) ऐसा व्यक्ति ऐसे अधिकारी द्वारा उससे पूछे गए ऐसे मामले से संबंधित सभी
प्रश्नों का सही उत्तर देने के लिए बाध्य होगा, सिवाय उन प्रश्नों के जिनके उत्तर
देने से उस पर आपराधिक आरोप या दंड या जब्ती का खतरा हो सकता हो।
(3) पुलिस अधिकारी इस धारा के अधीन परीक्षा के दौरान उससे किए गए किसी कथन को
लेखबद्ध कर सकेगा; और यदि वह ऐसा करता है तो वह प्रत्येक ऐसे व्यक्ति के कथन का
पृथक् और सत्य अभिलेख बनाएगा जिसका कथन वह अभिलेखित करता है:
बशर्ते कि इस उपधारा के अधीन दिया गया कथन
श्रव्य-दृश्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से भी रिकार्ड किया जा सकेगा:
आगे यह भी प्रावधान है कि किसी महिला का बयान,
जिसके विरुद्ध भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 64, धारा 65, धारा 66, धारा 67,
धारा 68, धारा 69, धारा 70, धारा 71, धारा 74, धारा 75, धारा 76, धारा 77, धारा
78, धारा 79 या धारा 124 के अंतर्गत अपराध किए जाने या किए जाने का प्रयास किए
जाने का आरोप है, महिला पुलिस अधिकारी या किसी महिला अधिकारी द्वारा दर्ज किया
जाएगा ।
181.
पुलिस को दिए गए कथन और उनका उपयोग । ( 1 ) इस अध्याय के अधीन अन्वेषण के दौरान
किसी व्यक्ति द्वारा पुलिस अधिकारी को दिया गया कोई कथन, यदि लिखित में दे दिया
गया हो तो, उसे करने वाले व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षरित नहीं किया जाएगा; न ही ऐसा
कोई कथन या उसका कोई अभिलेख, चाहे पुलिस डायरी में हो या अन्यथा, या ऐसे कथन या
अभिलेख के किसी भाग का, इसमें इसके पश्चात् यथा उपबंधित के सिवाय, उस समय जब ऐसा
कथन किया गया था, अन्वेषणाधीन किसी अपराध के संबंध में किसी जांच या विचारण में
किसी प्रयोजन के लिए उपयोग किया जाएगा:
परन्तु जब किसी साक्षी को ऐसी जांच या परीक्षण
में अभियोजन पक्ष की ओर से बुलाया जाता है, जिसका कथन पूर्वोक्त रूप से लिखित रूप
में दर्ज किया गया है, तो उसके कथन के किसी भाग का, यदि वह सम्यक् रूप से साबित हो
जाता है, अभियुक्त द्वारा, और न्यायालय की अनुमति से, अभियोजन पक्ष द्वारा, भारतीय
दण्ड संहिता की धारा 148 में उपबन्धित रीति से ऐसे साक्षी का खंडन करने के लिए
उपयोग किया जा सकता है। साक्ष्य अधिनियम , 2023; और जब ऐसे कथन का कोई भाग इस
प्रकार उपयोग में लाया जाता है, तो उसका कोई भाग ऐसे साक्षी की पुनः परीक्षा में
भी उपयोग में लाया जा सकेगा, किन्तु केवल उसकी प्रतिपरीक्षा में निर्दिष्ट किसी
विषय को स्पष्ट करने के प्रयोजन के लिए।
( 2 )
इस धारा की कोई भी बात भारतीय संविधान के अनुच्छेद 26 के खंड ( क ) के उपबंधों के अंतर्गत आने वाले किसी
कथन पर लागू नहीं समझी जाएगी। साक्ष्य अधिनियम , 2023 की धारा 23 की उपधारा ( 2 ) के परन्तुक के उपबंधों पर प्रभाव
डालने के लिए ।
स्पष्टीकरण
-- उपधारा ( 1 )
में निर्दिष्ट कथन में कोई तथ्य या परिस्थिति बताने में चूक विरोधाभास की कोटि में
आ सकेगी, यदि वह उस संदर्भ को ध्यान में रखते हुए, जिसमें ऐसी चूक हुई है,
महत्वपूर्ण और अन्यथा सुसंगत प्रतीत होती है और क्या कोई चूक किसी विशिष्ट संदर्भ
में विरोधाभास की कोटि में आती है, यह तथ्य का प्रश्न होगा।
182.
कोई प्रलोभन न दिया जाना ।-- ( 1 ) कोई भी पुलिस अधिकारी या प्राधिकार वाला अन्य व्यक्ति भारतीय दंड
संहिता की धारा 22 में वर्णित कोई ऐसा प्रलोभन, धमकी या वचन न तो देगा, न देगा, न
देने या दिलाने का कारण बनेगा। साक्ष्य अधिनियम , 2023.
( 2 )
किन्तु कोई भी पुलिस अधिकारी या अन्य व्यक्ति किसी चेतावनी द्वारा या अन्यथा किसी
व्यक्ति को इस अध्याय के अधीन किसी अन्वेषण के दौरान कोई ऐसा कथन करने से नहीं
रोकेगा, जिसे वह अपनी स्वतंत्र इच्छा से करने को तैयार हो:
परन्तु
इस उपधारा की कोई बात धारा 183 की उपधारा ( 4
) के उपबन्धों पर प्रभाव नहीं डालेगी।
183.
संस्वीकृति और कथनों का अभिलेखन ।--( 1 ) उस जिले का कोई मजिस्ट्रेट, जिसमें
किसी अपराध के किए जाने की इत्तिला रजिस्टर की गई है, चाहे उसे मामले में
अधिकारिता प्राप्त हो या न हो, इस अध्याय के अधीन या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य
विधि के अधीन अन्वेषण के दौरान या उसके पश्चात् किसी भी समय, किन्तु जांच या
विचारण के प्रारंभ होने के पूर्व, अपने समक्ष की गई किसी संस्वीकृति या कथन को
अभिलेखित कर सकेगा:
परंतु इस उपधारा के अधीन की गई कोई संस्वीकृति
या कथन किसी अपराध के अभियुक्त व्यक्ति के अधिवक्ता की उपस्थिति में श्रव्य-दृश्य
इलेक्ट्रॉनिक साधन द्वारा भी रिकार्ड किया जा सकेगा:
आगे यह भी प्रावधान है कि किसी पुलिस अधिकारी
द्वारा कोई संस्वीकृति अभिलिखित नहीं की जाएगी, जिसे किसी तत्समय प्रवृत्त विधि के
अधीन मजिस्ट्रेट की कोई शक्ति प्रदान की गई हो।
(2) मजिस्ट्रेट किसी ऐसी संस्वीकृति को अभिलिखित करने से पूर्व उसे करने वाले
व्यक्ति को यह स्पष्ट करेगा कि वह संस्वीकृति करने के लिए आबद्ध नहीं है और यदि वह
ऐसा करता है तो उसे उसके विरुद्ध साक्ष्य के रूप में उपयोग किया जा सकता है; और
मजिस्ट्रेट ऐसी कोई संस्वीकृति तब तक अभिलिखित नहीं करेगा जब तक कि उसे करने वाले
व्यक्ति से प्रश्न करने पर उसके पास यह विश्वास करने का कारण न हो कि वह
संस्वीकृति स्वेच्छा से की जा रही है।
(3) यदि स्वीकारोक्ति दर्ज किए जाने से पहले किसी भी समय मजिस्ट्रेट के समक्ष
उपस्थित होने वाला व्यक्ति यह कहता है कि वह स्वीकारोक्ति करने के लिए तैयार नहीं
है, तो मजिस्ट्रेट ऐसे व्यक्ति को पुलिस हिरासत में रखने का प्राधिकार नहीं देगा।
(4) ऐसी कोई भी संस्वीकृति अभियुक्त व्यक्ति की परीक्षा रिकॉर्ड करने के लिए
धारा 316 में उपबंधित रीति से रिकॉर्ड की जाएगी और संस्वीकृति करने वाले व्यक्ति
द्वारा उस पर हस्ताक्षर किए जाएंगे; और मजिस्ट्रेट ऐसे अभिलेख के नीचे निम्नलिखित
प्रभाव का ज्ञापन बनाएगा:-
"मैंने (नाम)
को समझाया है कि वह स्वीकारोक्ति करने के लिए बाध्य नहीं है और यदि वह ऐसा करता
है, तो उसके द्वारा किया गया कोई भी स्वीकारोक्ति उसके खिलाफ सबूत के रूप में
इस्तेमाल किया जा सकता है और मेरा मानना है कि यह स्वीकारोक्ति स्वेच्छा से की गई
थी। इसे मेरी उपस्थिति और सुनवाई में लिया गया था, और इसे बनाने वाले व्यक्ति को
पढ़ा गया था और उसके द्वारा इसे सही माना गया था, और इसमें उसके द्वारा दिए गए
बयान का पूरा और सच्चा विवरण है।
(हस्ताक्षर)
एबी मजिस्ट्रेट।”
(5) उपधारा ( 1 ) के अधीन किया गया
कोई कथन (स्वीकृति से भिन्न) साक्ष्य के अभिलेखन के लिए इसमें इसके पश्चात्
उपबंधित ऐसी रीति से अभिलेखित किया जाएगा जो मजिस्ट्रेट की राय में मामले की
परिस्थितियों के लिए सर्वोत्तम रूप से उपयुक्त हो; और मजिस्ट्रेट को उस व्यक्ति को
शपथ दिलाने की शक्ति होगी जिसका कथन इस प्रकार अभिलेखित किया गया है।
(6) ( क ) भारतीय न्याय संहिता,
2023 की धारा 64, धारा 65, धारा 66, धारा 67, धारा 68, धारा 69, धारा 70, धारा 71,
धारा 74, धारा 75, धारा 76, धारा 77, धारा 78, धारा 79 या धारा 124 के अधीन दंडनीय
मामलों में, मजिस्ट्रेट उस व्यक्ति का कथन, जिसके विरुद्ध ऐसा अपराध किया गया है,
उपधारा ( 5 ) में विनिर्दिष्ट तरीके
से, जैसे ही अपराध का किया जाना पुलिस के ध्यान में लाया जाता है, रिकॉर्ड करेगा:
परन्तु ऐसा कथन, जहां तक संभव हो, महिला
मजिस्ट्रेट द्वारा और उसकी अनुपस्थिति में महिला की उपस्थिति में पुरुष मजिस्ट्रेट
द्वारा अभिलिखित किया जाएगा:
परंतु यह और कि दस वर्ष या उससे अधिक के
कारावास अथवा आजीवन कारावास अथवा मृत्यु दण्ड से दण्डनीय अपराधों से संबंधित
मामलों में मजिस्ट्रेट पुलिस अधिकारी द्वारा उसके समक्ष लाए गए साक्षी का कथन
अभिलिखित करेगा:
यह भी प्रावधान है कि यदि बयान देने वाला
व्यक्ति अस्थायी या स्थायी रूप से, मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग है, तो
मजिस्ट्रेट बयान दर्ज करने में दुभाषिया या विशेष शिक्षक की सहायता लेगा:
यह भी प्रावधान है कि यदि बयान देने वाला
व्यक्ति अस्थायी या स्थायी रूप से, मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग है, तो उस
व्यक्ति द्वारा दिया गया बयान, दुभाषिया या विशेष शिक्षक की सहायता से,
ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से, अधिमानतः मोबाइल फोन द्वारा रिकॉर्ड किया
जाएगा;
( ख )
किसी व्यक्ति का खंड ( क ) के अधीन दर्ज किया गया कथन , जो अस्थायी या स्थायी
रूप से, मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग है, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 में
निर्दिष्ट मुख्य परीक्षा के बदले में दिया
गया कथन माना जाएगा। साक्ष्य अधिनियम , 2023 के तहत ऐसा प्रावधान किया गया है कि
बयान देने वाले व्यक्ति से उस बयान के आधार पर जिरह की जा सकेगी, तथा परीक्षण के
समय उसे रिकार्ड करने की आवश्यकता नहीं होगी।
( 7 )
इस धारा के अधीन संस्वीकृति या कथन अभिलिखित करने वाला मजिस्ट्रेट उसे उस
मजिस्ट्रेट के पास भेजेगा जिसके द्वारा मामले की जांच या विचारण किया जाना है।
बलात्कार
की पीड़िता की चिकित्सीय जांच ।-- ( 1 ) जहां, उस प्रक्रम के दौरान जब
बलात्कार करने या बलात्कार करने के प्रयास के अपराध की जांच की जा रही हो, वहां
पीड़िता के व्यक्ति की चिकित्सीय जांच कराने का प्रस्ताव है,
ऐसी महिला जिसके साथ बलात्कार
का आरोप लगाया गया है या बलात्कार करने का प्रयास किया गया है, की चिकित्सा
विशेषज्ञ द्वारा जांच की जाएगी, ऐसी परीक्षा सरकार या स्थानीय प्राधिकरण द्वारा
चलाए जा रहे अस्पताल में नियोजित पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी द्वारा की जाएगी और
ऐसे व्यवसायी की अनुपस्थिति में, किसी अन्य पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी द्वारा, ऐसी
महिला की सहमति से या उसकी ओर से ऐसी सहमति देने के लिए सक्षम व्यक्ति की सहमति से
और ऐसी महिला को ऐसे अपराध के किए जाने से संबंधित जानकारी प्राप्त होने के समय से
चौबीस घंटे के भीतर ऐसे पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी के पास भेजा जाएगा।
(2) पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी, जिसके पास ऐसी महिला भेजी जाती है, बिना देरी
के, उसके शरीर की जांच करेगा और निम्नलिखित विवरण देते हुए अपनी परीक्षा की
रिपोर्ट तैयार करेगा, अर्थात: - ( i )
महिला का नाम और पता और उस व्यक्ति का नाम जिसके द्वारा उसे लाया गया था;
(ii)
महिला की आयु;
(iii) डीएनए प्रोफाइलिंग के लिए महिला के व्यक्ति से ली गई सामग्री का विवरण;
(iv) महिला के शरीर पर चोट के निशान, यदि कोई हों;
(v)
महिला की सामान्य मानसिक स्थिति; और
(vi) अन्य सामग्री विवरण उचित विस्तार में।
(3) रिपोर्ट में प्रत्येक निष्कर्ष के कारणों का स्पष्ट उल्लेख किया जाएगा।
(4) रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से यह दर्ज किया जाएगा कि ऐसी जांच के लिए महिला
या उसकी ओर से सहमति देने वाले व्यक्ति की सहमति प्राप्त कर ली गई है।
(5) रिपोर्ट में परीक्षा के प्रारंभ और समाप्ति का सही समय भी अंकित किया
जाएगा।
(6) पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी सात दिन की अवधि के भीतर रिपोर्ट को जांच
अधिकारी को भेजेगा जो उसे धारा 193 में निर्दिष्ट मजिस्ट्रेट को उस धारा की उपधारा
( 6 ) के खंड ( क ) में निर्दिष्ट दस्तावेजों के भाग के रूप में भेजेगा।
(7) इस धारा की किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि महिला की या उसकी ओर
से ऐसी सहमति देने में सक्षम किसी व्यक्ति की सहमति के बिना कोई परीक्षा वैध है।
स्पष्टीकरण-
इस धारा के प्रयोजनों के लिए, "परीक्षा" और
"पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी" के वही अर्थ होंगे जो धारा 51 में क्रमशः
उनके लिए निर्दिष्ट हैं ।
185.
पुलिस अधिकारी द्वारा तलाशी ।--( 1 ) जब कभी किसी पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी या अन्वेषण करने वाले
पुलिस अधिकारी के पास यह विश्वास करने के लिए युक्तियुक्त आधार हों कि किसी अपराध
के अन्वेषण के प्रयोजनों के लिए आवश्यक कोई बात, जिसका अन्वेषण करने के लिए वह
प्राधिकृत है, उस पुलिस थाने की सीमाओं के भीतर किसी स्थान में मिल सकती है जिसका
वह भारसाधक है या जिससे वह संबद्ध है, और उसकी राय में ऐसी बात बिना असम्यक्
विलम्ब के अन्यथा प्राप्त नहीं की जा सकती, तो ऐसा अधिकारी अपने विश्वास के आधारों
को केस डायरी में लेखबद्ध करने के पश्चात् और जहां तक संभव हो, उस बात को ऐसे लेख
में विनिर्दिष्ट करने के पश्चात्, जिसके लिए तलाशी की जानी है, ऐसे थाने की सीमाओं
के भीतर किसी स्थान में ऐसी बात के लिए तलाशी ले सकता है या तलाशी करा सकता है।
(2)
उपधारा ( 1 ) के अधीन कार्यवाही करने वाला पुलिस अधिकारी, यदि साध्य हो, स्वयं
तलाशी लेगा:
बशर्ते कि इस धारा के अधीन की गई तलाशी
ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक साधनों, अधिमानतः मोबाइल फोन द्वारा रिकॉर्ड की जाएगी।
(3) यदि वह स्वयं तलाशी लेने में असमर्थ है, और उस समय तलाशी लेने के लिए
सक्षम कोई अन्य व्यक्ति उपस्थित नहीं है, तो वह ऐसा करने के अपने कारणों को
लेखबद्ध करने के पश्चात् अपने अधीनस्थ किसी अधिकारी से तलाशी लेने की अपेक्षा कर
सकेगा, और वह ऐसे अधीनस्थ अधिकारी को लिखित आदेश देगा, जिसमें तलाशी लेने का
स्थान, और जहां तक संभव हो, वह चीज जिसके लिए तलाशी ली जानी है, विनिर्दिष्ट किया
जाएगा, और ऐसा अधीनस्थ अधिकारी तत्पश्चात् ऐसी चीज के लिए ऐसे स्थान में तलाशी ले
सकेगा।
(4) तलाशी-वारंट के संबंध में इस संहिता के उपबंध तथा धारा 103 में निहित
तलाशी के संबंध में साधारण उपबंध, जहां तक हो सके, इस धारा के अधीन की गई तलाशी को
लागू होंगे।
(5) उपधारा ( 1 ) या उपधारा ( 3 ) के अधीन बनाए गए किसी अभिलेख की
प्रतियां तुरन्त, किन्तु अड़तालीस घंटे के भीतर, अपराध का संज्ञान लेने के लिए
सशक्त निकटतम मजिस्ट्रेट को भेजी जाएंगी और जिस स्थान की तलाशी ली गई है उसके
स्वामी या अधिभोगी को, आवेदन किए जाने पर, मजिस्ट्रेट द्वारा उसकी एक प्रति
निःशुल्क उपलब्ध कराई जाएगी।
186.
पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी कब किसी अन्य अधिकारी से तलाशी वारंट जारी करने की
अपेक्षा कर सकेगा - ( 1 ) किसी पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी या उपनिरीक्षक की पंक्ति से
नीचे का न होने वाला कोई पुलिस अधिकारी, जो अन्वेषण कर रहा है, किसी अन्य पुलिस
थाने के भारसाधक अधिकारी से, चाहे वह उसी जिले में हो या किसी भिन्न जिले में,
किसी स्थान में, किसी ऐसी दशा में, जिसमें पूर्व अधिकारी ऐसी तलाशी करा सकता था,
अपने थाने की सीमाओं के भीतर तलाशी कराने की अपेक्षा कर सकेगा।
(2) ऐसा अधिकारी, ऐसी अपेक्षा किए जाने पर, धारा 185 के उपबंधों के अनुसार
कार्यवाही करेगा और पाई गई वस्तु को, यदि कोई हो, उस अधिकारी के पास भेजेगा जिसके
अनुरोध पर तलाशी ली गई थी।
(3) जब कभी यह विश्वास करने का कारण हो कि किसी अन्य पुलिस थाने के भारसाधक
अधिकारी को उपधारा ( 1 ) के अधीन तलाशी
कराने की अपेक्षा करने के कारण हुए विलम्ब के परिणामस्वरूप अपराध के किए जाने का
साक्ष्य छिप सकता है या नष्ट हो सकता है, तब किसी पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी
या इस अध्याय के अधीन कोई अन्वेषण करने वाले पुलिस अधिकारी के लिए यह विधिपूर्ण
होगा कि वह किसी अन्य पुलिस थाने की सीमाओं में किसी स्थान की धारा 185 के उपबंधों
के अनुसार उसी प्रकार तलाशी ले या तलाशी कराए, मानो ऐसा स्थान उसके अपने पुलिस
थाने की सीमाओं में हो।
(4)
उपधारा ( 3 ) के अधीन तलाशी लेने वाला कोई अधिकारी, उस पुलिस थाने के भारसाधक
अधिकारी को, जिसकी सीमाओं के भीतर ऐसा स्थान स्थित है, तलाशी की सूचना तुरन्त
भेजेगा और ऐसी सूचना के साथ धारा 103 के अधीन तैयार की गई सूची (यदि कोई हो) की एक
प्रति भी भेजेगा और अपराध का संज्ञान करने के लिए सशक्त निकटतम मजिस्ट्रेट को धारा
185 की उपधारा ( 1 ) और उपधारा ( 3 ) में निर्दिष्ट अभिलेखों की प्रतियां
भी भेजेगा।
(5) 4 )
के अधीन मजिस्ट्रेट को भेजे गए किसी अभिलेख की एक प्रति निःशुल्क उपलब्ध कराई
जाएगी।
187.
जब अन्वेषण चौबीस घंटे में पूरा नहीं किया जा सकता , तब
प्रक्रिया।--( 1 ) जब कभी कोई व्यक्ति
गिरफ्तार किया जाता है और अभिरक्षा में निरुद्ध रखा जाता है, और यह प्रतीत होता है
कि अन्वेषण धारा 58 द्वारा नियत चौबीस घंटे की अवधि के भीतर पूरा नहीं किया जा
सकता, और यह विश्वास करने के आधार हैं कि अभियोग या इत्तिला ठोस आधार पर दी गई है,
तो पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी या अन्वेषण करने वाला पुलिस अधिकारी, यदि वह
उपनिरीक्षक की पंक्ति से नीचे का नहीं है, मामले से संबंधित डायरी में इसमें इसके
पश्चात् विनिर्दिष्ट प्रविष्टियों की एक प्रति निकटतम मजिस्ट्रेट को तत्काल
भेजेगा, और साथ ही अभियुक्त को ऐसे मजिस्ट्रेट के पास भेजेगा।
(2) वह मजिस्ट्रेट, जिसके पास अभियुक्त व्यक्ति इस धारा के अधीन भेजा जाता है,
इस बात पर ध्यान दिए बिना कि उसे मामले का विचारण करने की अधिकारिता है या नहीं,
यह विचार करने के पश्चात कि क्या ऐसे व्यक्ति को जमानत पर रिहा नहीं किया गया है
या उसकी जमानत रद्द कर दी गई है, समय-समय पर अभियुक्त को ऐसी अभिरक्षा में, जिसे
वह मजिस्ट्रेट ठीक समझे, उपधारा (3) में उपबंधित, यथास्थिति, साठ दिन या नब्बे दिन
की प्रारंभिक चालीस दिन या साठ दिन की निरोध अवधि में से किसी भी समय, संपूर्ण रूप
से या भागों में पन्द्रह दिन से अधिक अवधि के लिए निरुद्ध करने को प्राधिकृत कर
सकेगा , और यदि उसे मामले का विचारण
करने या उसे विचारण के लिए सौंपने की अधिकारिता नहीं है, और वह आगे निरुद्ध करना
अनावश्यक समझता है, तो वह अभियुक्त को ऐसे अधिकारिता वाले मजिस्ट्रेट के पास भेजने
का आदेश दे सकेगा।
(3) मजिस्ट्रेट अभियुक्त व्यक्ति को पंद्रह दिन की अवधि से अधिक के लिए हिरासत
में रखने को अधिकृत कर सकता है, यदि उसका समाधान हो जाता है कि ऐसा करने के लिए
पर्याप्त आधार मौजूद हैं, किन्तु कोई भी मजिस्ट्रेट अभियुक्त व्यक्ति को इस उपधारा
के अधीन हिरासत में रखने को अधिकृत नहीं करेगा, जो कि निम्नलिखित से अधिक कुल अवधि
के लिए हो-
(i)
नब्बे दिन, जहां जांच मृत्युदंड,
आजीवन कारावास या दस वर्ष या उससे अधिक अवधि के कारावास से दंडनीय अपराध से
संबंधित हो;
(ii)
साठ दिन की अवधि के पश्चात्, जहां
अन्वेषण किसी अन्य अपराध से संबंधित है, अभियुक्त व्यक्ति जमानत पर रिहा कर दिया
जाएगा, यदि वह जमानत देने के लिए तैयार है और जमानत दे देता है, और इस उपधारा के
अधीन जमानत पर रिहा किया गया प्रत्येक व्यक्ति उस अध्याय के प्रयोजनों के लिए
अध्याय 35 के उपबंधों के अधीन रिहा किया गया समझा जाएगा।
(4) कोई भी मजिस्ट्रेट इस धारा के अंतर्गत अभियुक्त को पुलिस की अभिरक्षा में
निरुद्ध करने को प्राधिकृत नहीं करेगा, जब तक कि अभियुक्त को उसके समक्ष प्रथम बार
व्यक्तिगत रूप से पेश नहीं किया जाता है, तथा तत्पश्चात् प्रत्येक बार तब तक ऐसा
करेगा जब तक अभियुक्त पुलिस की अभिरक्षा में रहता है, किन्तु मजिस्ट्रेट अभियुक्त
को व्यक्तिगत रूप से या ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से पेश करने पर न्यायिक
अभिरक्षा में निरुद्ध करने की अवधि को आगे बढ़ा सकता है।
(5) कोई भी द्वितीय श्रेणी मजिस्ट्रेट, जिसे उच्च न्यायालय द्वारा इस संबंध
में विशेष रूप से सशक्त नहीं किया गया है, पुलिस की अभिरक्षा में निरुद्ध करने का
प्राधिकार नहीं देगा।
स्पष्टीकरण
1.--शंकाओं से बचने के लिए यह घोषित किया जाता है कि
उपधारा ( 3 ) में विनिर्दिष्ट अवधि की
समाप्ति पर भी अभियुक्त को तब तक हिरासत में रखा जाएगा जब तक वह जमानत प्रस्तुत
नहीं करता है।
स्पष्टीकरण
II.- यदि कोई प्रश्न उठता है कि क्या अभियुक्त व्यक्ति
को उपधारा ( 4 ) के अधीन अपेक्षित रूप
से मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया था, तो अभियुक्त व्यक्ति का पेश होना,
निरुद्धि को प्राधिकृत करने वाले आदेश पर उसके हस्ताक्षर द्वारा या, यथास्थिति,
श्रव्य-दृश्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से अभियुक्त व्यक्ति को पेश करने के संबंध में
मजिस्ट्रेट द्वारा प्रमाणित आदेश द्वारा साबित किया जा सकेगा:
बशर्ते कि अठारह वर्ष से कम आयु की महिला के
मामले में, हिरासत को रिमांड होम या मान्यता प्राप्त सामाजिक संस्था की अभिरक्षा
में रखने के लिए अधिकृत किया जाएगा:
आगे यह भी प्रावधान है कि किसी भी व्यक्ति को
पुलिस थाने में पुलिस हिरासत में या न्यायिक हिरासत में कारागार में या केन्द्रीय
सरकार या राज्य सरकार द्वारा कारागार घोषित स्थान के अलावा अन्य किसी स्थान पर
निरुद्ध नहीं किया जाएगा।
(6) उपधारा ( 1 ) से उपधारा ( 5 ) में किसी बात के होते हुए भी, पुलिस
थाने का भारसाधक अधिकारी या अन्वेषण करने वाला पुलिस अधिकारी, यदि वह उपनिरीक्षक
से निम्न श्रेणी का नहीं है, जहां मजिस्ट्रेट उपलब्ध नहीं है, निकटतम कार्यपालक
मजिस्ट्रेट को, जिसे मजिस्ट्रेट की शक्तियां प्रदान की गई हैं, मामले से संबंधित
डायरी में इसमें इसके पश्चात निर्दिष्ट प्रविष्टि की एक प्रति भेज सकेगा और साथ ही
अभियुक्त को ऐसे कार्यपालक मजिस्ट्रेट के पास भेजेगा और तब ऐसा कार्यपालक
मजिस्ट्रेट, लिखित रूप में दर्ज किए जाने वाले कारणों से, अभियुक्त व्यक्ति को ऐसी
हिरासत में, जिसे वह ठीक समझे, कुल मिलाकर सात दिन से अधिक की अवधि के लिए
प्राधिकृत कर सकेगा और इस प्रकार प्राधिकृत हिरासत की अवधि की समाप्ति पर अभियुक्त
व्यक्ति को जमानत पर छोड़ दिया जाएगा, सिवाय इसके कि जहां अभियुक्त व्यक्ति को और
अधिक हिरासत में रखने का आदेश ऐसा आदेश देने के लिए सक्षम मजिस्ट्रेट द्वारा किया
गया हो; और जहां ऐसे अतिरिक्त निरोध के लिए आदेश किया जाता है, वहां वह अवधि,
जिसके दौरान अभियुक्त व्यक्ति इस उपधारा के अधीन कार्यपालक मजिस्ट्रेट द्वारा किए
गए आदेशों के अधीन अभिरक्षा में निरुद्ध था, उपधारा ( 3 ) में विनिर्दिष्ट अवधि की गणना करते समय ध्यान में रखी जाएगी:
परन्तु पूर्वोक्त अवधि की समाप्ति के पूर्व,
कार्यपालक मजिस्ट्रेट मामले के अभिलेखों को, मामले से संबंधित डायरी की
प्रविष्टियों की एक प्रति सहित, निकटतम न्यायिक मजिस्ट्रेट को भेजेगा, जो उसे,
यथास्थिति, पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी या अन्वेषण करने वाले पुलिस अधिकारी
द्वारा भेजी गई थी।
(7) इस धारा के अधीन पुलिस की अभिरक्षा में निरुद्धि प्राधिकृत करने वाला
मजिस्ट्रेट ऐसा करने के अपने कारण अभिलिखित करेगा।
(8) मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के अलावा कोई अन्य मजिस्ट्रेट ऐसा आदेश देने के
अपने कारणों सहित अपने आदेश की एक प्रति मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को भेजेगा।
(9) यदि मजिस्ट्रेट द्वारा समन-मामले के रूप में विचारणीय किसी मामले में,
अभियुक्त की गिरफ्तारी की तारीख से छह महीने की अवधि के भीतर जांच पूरी नहीं होती
है, तो मजिस्ट्रेट अपराध में आगे की जांच रोकने का आदेश देगा, जब तक कि जांच करने
वाला अधिकारी मजिस्ट्रेट को यह समाधान न कर दे कि विशेष कारणों से और न्याय के हित
में छह महीने की अवधि से आगे जांच जारी रखना आवश्यक है।
(10)जहां किसी अपराध में आगे अन्वेषण रोकने के लिए कोई आदेश उपधारा ( 9 ) के अधीन किया गया है, वहां सत्र
न्यायाधीश, यदि उसे, उसको किए गए आवेदन पर या अन्यथा, यह समाधान हो जाता है कि
अपराध में आगे अन्वेषण किया जाना चाहिए, उपधारा ( 9 ) के अधीन किए गए आदेश को निरस्त कर सकेगा और जमानत तथा अन्य विषयों
के संबंध में ऐसे निदेशों के अधीन रहते हुए, जिन्हें वह विनिर्दिष्ट करे, अपराध
में आगे अन्वेषण किए जाने का निर्देश दे सकेगा।
188.
अधिकारी द्वारा अन्वेषण की रिपोर्ट - जब किसी
अधीनस्थ पुलिस अधिकारी ने इस अध्याय के अधीन कोई अन्वेषण किया है, तब वह ऐसे
अन्वेषण के परिणाम की रिपोर्ट पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को देगा।
189.
साक्ष्य के अभाव में अभियुक्त की रिहाई - यदि इस
अध्याय के अधीन अन्वेषण करने पर पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को यह प्रतीत होता
है कि अभियुक्त को मजिस्ट्रेट के पास भेजने को उचित ठहराने के लिए पर्याप्त
साक्ष्य या उचित संदेह नहीं है तो यदि ऐसा व्यक्ति अभिरक्षा में है तो ऐसा अधिकारी
उसे, जैसा वह अधिकारी निर्देश दे, बंधपत्र या जमानत बंधपत्र निष्पादित करने पर
रिहा कर देगा कि वह, यदि और जब ऐसा अपेक्षित हो, ऐसे मजिस्ट्रेट के समक्ष उपस्थित
हो जो पुलिस रिपोर्ट पर अपराध का संज्ञान करने और अभियुक्त का विचारण करने या उसे
विचारण के लिए सुपुर्द करने के लिए सशक्त है।
190.
जब साक्ष्य पर्याप्त हो तो मामलों का मजिस्ट्रेट के पास भेजा जाना ।--( 1 ) यदि इस अध्याय के
अधीन अन्वेषण करने पर पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को यह प्रतीत होता है कि
पूर्वोक्त पर्याप्त साक्ष्य या युक्तियुक्त आधार है, तो ऐसा अधिकारी अभिरक्षा में
रखे गए अभियुक्त को ऐसे मजिस्ट्रेट के पास भेजेगा जो पुलिस रिपोर्ट पर अपराध का
संज्ञान लेने और अभियुक्त का विचारण करने या उसे विचारण के लिए सौंपने के लिए
सशक्त है, या यदि अपराध जमानतीय है और अभियुक्त प्रतिभूति देने में समर्थ है, तो
उससे नियत दिन को ऐसे मजिस्ट्रेट के समक्ष उसकी उपस्थिति के लिए और जब तक अन्यथा
निर्देश न दिया जाए, ऐसे मजिस्ट्रेट के समक्ष दिन-प्रतिदिन उसकी उपस्थिति के लिए
प्रतिभूति लेगा:
परन्तु यदि अभियुक्त हिरासत में नहीं है तो
पुलिस अधिकारी मजिस्ट्रेट के समक्ष उसकी उपस्थिति के लिए ऐसे व्यक्ति से प्रतिभूति
लेगा और जिस मजिस्ट्रेट को ऐसी रिपोर्ट भेजी जाती है वह उसे इस आधार पर स्वीकार
करने से इंकार नहीं करेगा कि अभियुक्त हिरासत में नहीं है।
(2) जब पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी किसी अभियुक्त व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के
पास भेजता है या इस धारा के अधीन ऐसे मजिस्ट्रेट के समक्ष उसके हाजिर होने के लिए
प्रतिभूति लेता है, तब वह ऐसे मजिस्ट्रेट के पास कोई हथियार या अन्य वस्तु भेजेगा,
जिसे उसके समक्ष पेश करना आवश्यक हो, और शिकायतकर्ता से (यदि कोई हो) तथा ऐसे
अधिकारी को मामले के तथ्यों और परिस्थितियों से परिचित प्रतीत होने वाले उतने
व्यक्तियों से, जितने वह आवश्यक समझे, यह अपेक्षा करेगा कि वे मजिस्ट्रेट के समक्ष
उसके द्वारा निर्देशित रूप में हाजिर होने के लिए बंधपत्र निष्पादित करें और
अभियुक्त के विरुद्ध आरोप के विषय में (जैसा भी मामला हो) अभियोजन चलाएं या
साक्ष्य दें।
(3) यदि बांड में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय का उल्लेख किया गया
है, तो ऐसे न्यायालय में कोई भी न्यायालय सम्मिलित माना जाएगा, जिसे ऐसा
मजिस्ट्रेट जांच या विचारण के लिए मामले को संदर्भित कर सकता है, बशर्ते कि ऐसे
संदर्भ की उचित सूचना ऐसे शिकायतकर्ता या व्यक्तियों को दी गई हो।
(4) वह अधिकारी, जिसकी उपस्थिति में बांड निष्पादित किया जाता है, उसकी एक
प्रति उसे निष्पादित करने वाले व्यक्तियों में से किसी एक को सौंपेगा, और फिर उसकी
मूल प्रति मजिस्ट्रेट को उसकी रिपोर्ट के साथ भेजेगा।
191.
शिकायतकर्ता और गवाहों को पुलिस अधिकारी के साथ जाने की आवश्यकता नहीं
होगी और उन्हें रोका नहीं जाएगा । किसी भी शिकायतकर्ता या गवाह को किसी न्यायालय में जाते समय किसी
पुलिस अधिकारी के साथ जाने की आवश्यकता नहीं होगी, या उसे अनावश्यक अवरोध या
असुविधा का सामना नहीं करना पड़ेगा, या अपनी उपस्थिति के लिए अपने स्वयं के बांड
के अलावा कोई अन्य सुरक्षा देने की आवश्यकता नहीं होगी:
परंतु यदि कोई शिकायतकर्ता या साक्षी धारा 190
में निर्दिष्ट अनुसार उपस्थित होने या बंधपत्र निष्पादित करने से इनकार करता है,
तो पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी उसे मजिस्ट्रेट के पास अभिरक्षा में भेज सकेगा,
जो उसे तब तक अभिरक्षा में रोके रख सकेगा, जब तक वह ऐसा बंधपत्र निष्पादित नहीं कर
देता, या मामले की सुनवाई पूरी नहीं हो जाती।
192.
अन्वेषण में कार्यवाहियों की डायरी .-- ( 1 ) इस अध्याय के अधीन अन्वेषण करने वाला
प्रत्येक पुलिस अधिकारी अन्वेषण में अपनी कार्यवाही को प्रतिदिन डायरी में दर्ज
करेगा, जिसमें वह समय लिखा होगा जब इत्तिला उसके पास पहुंची, वह समय जब उसने अपना
अन्वेषण आरंभ किया और समाप्त किया, वह स्थान या स्थान जहां वह गया, तथा उसके
अन्वेषण से ज्ञात परिस्थितियों का विवरण लिखा होगा।
(2) धारा 180 के अंतर्गत जांच के दौरान दर्ज किए गए गवाहों के बयान केस डायरी
में सम्मिलित किए जाएंगे।
(3) उपधारा ( 1 ) में निर्दिष्ट
डायरी एक खण्ड होगी और सम्यक् रूप से पृष्ठांकित होगी।
(4) कोई भी दंड न्यायालय ऐसे मामले की पुलिस डायरी मंगवा सकता है, जिसकी जांच
या परीक्षण उस न्यायालय में चल रहा हो, और ऐसी डायरियों का उपयोग मामले में
साक्ष्य के रूप में नहीं, बल्कि ऐसी जांच या परीक्षण में सहायता के लिए कर सकता
है।
(5) न तो अभियुक्त और न ही उसके प्रतिनिधि ऐसी डायरियों को मांगने के हकदार
होंगे, न ही वह या वे उन्हें केवल इसलिए देखने के हकदार होंगे क्योंकि उन्हें
न्यायालय द्वारा संदर्भित किया गया है; लेकिन, यदि उनका उपयोग उस पुलिस अधिकारी
द्वारा किया जाता है जिसने उन्हें अपनी याददाश्त ताज़ा करने के लिए किया है, या
यदि न्यायालय उनका उपयोग ऐसे पुलिस अधिकारी का खंडन करने के उद्देश्य से करता है,
तो भारतीय दंड संहिता की धारा 148 या धारा 164 के प्रावधान, जैसा भी हो, लागू
होंगे। साक्ष्य अधिनियम , 2023, लागू होगा।
अन्वेषण
पूरा होने पर पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट .-- ( 1 ) इस अध्याय के अधीन प्रत्येक अन्वेषण
अनावश्यक विलम्ब के बिना पूरा किया जाएगा।
(2) भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 64, 65, 66, 67, 68, 70, 71 या लैंगिक
अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 की धारा 4, 6, 8 या धारा 10 के
अंतर्गत अपराध के संबंध में जांच पुलिस थाने के प्रभारी अधिकारी द्वारा सूचना दर्ज
किए जाने की तारीख से दो महीने के भीतर पूरी की जाएगी।
(3) ( i ) जैसे ही जांच पूरी हो
जाती है, पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी, पुलिस रिपोर्ट पर अपराध का संज्ञान लेने
के लिए सशक्त मजिस्ट्रेट को, इलेक्ट्रॉनिक संचार के माध्यम से भी, एक रिपोर्ट
भेजेगा, जैसा कि राज्य सरकार नियमों द्वारा प्रदान कर सकती है, जिसमें कहा गया हो
-
(a)
पक्षों के नाम;
(b)
सूचना की प्रकृति;
(c)
उन व्यक्तियों के नाम जो मामले की
परिस्थितियों से परिचित प्रतीत होते हैं;
(d)
क्या कोई अपराध किया गया प्रतीत
होता है और यदि हां, तो किसके द्वारा;
(e)
क्या अभियुक्त को गिरफ्तार कर लिया
गया है;
(f)
क्या अभियुक्त को बांड या जमानत
बांड पर रिहा किया गया है;
(g)
क्या अभियुक्त को धारा 190 के
अंतर्गत हिरासत में भेजा गया है;
(h)
क्या महिला की चिकित्सा जांच की
रिपोर्ट संलग्न की गई है जहां जांच भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 64, 65, 66,
67, 68, 70 या धारा 71 के तहत अपराध से संबंधित है;
(i)
इलेक्ट्रॉनिक उपकरण के मामले में
हिरासत का क्रम;
(ii)
पुलिस अधिकारी नब्बे दिन की अवधि के
भीतर जांच की प्रगति की सूचना मुखबिर या पीड़ित को इलेक्ट्रॉनिक संचार सहित किसी
भी माध्यम से देगा;
(iii)
अधिकारी अपने द्वारा की गई कार्रवाई
की सूचना, ऐसी रीति से, जैसी राज्य सरकार नियमों द्वारा उपबंधित करे, उस व्यक्ति
को, यदि कोई हो, देगा जिसने अपराध के किए जाने से संबंधित इत्तिला सबसे पहले दी
थी।
(4) जहां धारा 177 के अधीन पुलिस का कोई वरिष्ठ अधिकारी नियुक्त किया गया है,
वहां रिपोर्ट, किसी मामले में जिसमें राज्य सरकार साधारण या विशेष आदेश द्वारा ऐसा
निदेश दे, उस अधिकारी के माध्यम से प्रस्तुत की जाएगी और वह मजिस्ट्रेट के आदेश
लंबित रहने तक पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को आगे जांच करने का निदेश दे सकेगा।
(5)
जब कभी इस धारा के अधीन भेजी गई रिपोर्ट
से यह प्रतीत होता है कि अभियुक्त को उसके बंधपत्र या जमानत बंधपत्र पर छोड़ दिया
गया है, तो मजिस्ट्रेट ऐसे बंधपत्र या जमानत बंधपत्र के उन्मोचन के लिए या अन्यथा
ऐसा आदेश देगा जैसा वह ठीक समझे।
(6) जब ऐसी रिपोर्ट किसी ऐसे मामले के संबंध में हो, जिस पर धारा 190 लागू
होती है, तो पुलिस अधिकारी रिपोर्ट के साथ मजिस्ट्रेट को निम्नलिखित भेजेगा-
(a)
सभी दस्तावेज या उनके प्रासंगिक
उद्धरण जिन पर अभियोजन पक्ष भरोसा करने का प्रस्ताव करता है, उनके अलावा जो जांच
के दौरान मजिस्ट्रेट को पहले ही भेजे जा चुके हैं;
(b)
उन सभी व्यक्तियों के धारा 180 के
अंतर्गत दर्ज बयान, जिनकी अभियोजन पक्ष अपने गवाहों के रूप में जांच करना चाहता
है।
(7) यदि पुलिस अधिकारी की यह राय है कि ऐसे किसी कथन का कोई भाग कार्यवाही की
विषय-वस्तु से सुसंगत नहीं है या अभियुक्त के समक्ष उसका प्रकटीकरण न्याय के हित
में आवश्यक नहीं है तथा लोकहित में अनुचित है, तो वह कथन के उस भाग को उपदर्शित
करेगा तथा एक टिप्पणी संलग्न करेगा जिसमें मजिस्ट्रेट से अनुरोध किया जाएगा कि वह
अभियुक्त को दी जाने वाली प्रतियों में से उस भाग को निकाल दे तथा ऐसा अनुरोध करने
के अपने कारणों का भी उल्लेख करेगा।
(8) उपधारा ( 7 ) में निहित
प्रावधानों के अधीन रहते हुए, मामले की जांच करने वाला पुलिस अधिकारी भी
मजिस्ट्रेट को अभियुक्त को आपूर्ति करने के लिए पुलिस रिपोर्ट की उतनी प्रतियां और
अन्य दस्तावेज प्रस्तुत करेगा, जो धारा 230 के तहत अपेक्षित हैं:
बशर्ते कि इलेक्ट्रॉनिक संचार द्वारा रिपोर्ट
और अन्य दस्तावेजों की आपूर्ति को विधिवत तामील माना जाएगा।
(9) इस धारा की कोई बात किसी अपराध के संबंध में उपधारा ( 3 ) के अधीन रिपोर्ट मजिस्ट्रेट को भेजे
जाने के पश्चात् आगे अन्वेषण को रोकने वाली नहीं समझी जाएगी और जहां ऐसे अन्वेषण
पर पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी मौखिक या दस्तावेजी अतिरिक्त साक्ष्य प्राप्त
करता है, वहां वह ऐसे साक्ष्य के संबंध में मजिस्ट्रेट को अतिरिक्त रिपोर्ट या
रिपोर्टें उस प्ररूप में भेजेगा जैसा राज्य सरकार नियमों द्वारा उपबंधित करे; और
उपधारा ( 3 ) से ( 8 ) के उपबंध, जहां तक हो सके, ऐसी
रिपोर्ट या रिपोर्टों के संबंध में उसी प्रकार लागू होंगे जैसे वे उपधारा ( 3 ) के अधीन भेजी गई रिपोर्ट के संबंध में
लागू होते हैं:
बशर्ते कि विचारण के दौरान आगे की जांच मामले
की सुनवाई करने वाले न्यायालय की अनुमति से की जा सकेगी और उसे नब्बे दिन की अवधि
के भीतर पूरा किया जाएगा जिसे न्यायालय की अनुमति से बढ़ाया जा सकेगा।
194.
पुलिस द्वारा आत्महत्या आदि के बारे में जांच करना और रिपोर्ट देना ।--( 1 ) जब किसी पुलिस थाने
का भारसाधक अधिकारी या राज्य सरकार द्वारा विशेष रूप से सशक्त कोई अन्य पुलिस
अधिकारी सूचना प्राप्त करता है कि किसी व्यक्ति ने आत्महत्या कर ली है या किसी
अन्य व्यक्ति द्वारा या किसी पशु द्वारा या किसी मशीन द्वारा या किसी दुर्घटना से
मारा गया है या ऐसी परिस्थितियों में मर गया है जिससे उचित संदेह उत्पन्न होता है
कि किसी अन्य व्यक्ति ने कोई अपराध किया है, तो वह तत्काल इसकी सूचना जांच करने के
लिए सशक्त निकटतम कार्यपालक मजिस्ट्रेट को देगा और जब तक राज्य सरकार द्वारा बनाए
गए किसी नियम या जिला या उप-विभागीय मजिस्ट्रेट के किसी सामान्य या विशेष आदेश
द्वारा अन्यथा निर्देशित न किया जाए, उस स्थान पर जाएगा जहां ऐसे मृत व्यक्ति का
शरीर है और वहां पड़ोस के दो या अधिक सम्मानित निवासियों की उपस्थिति में जांच
करेगा और मृत्यु के स्पष्ट कारण की एक रिपोर्ट तैयार करेगा, जिसमें शरीर पर पाए
जाने वाले घाव, फ्रैक्चर, खरोंच और चोट के अन्य निशानों का वर्णन होगा और यह भी
बताया जाएगा कि किस तरीके से या किस हथियार या उपकरण (यदि कोई हो) से ऐसे निशान
लगे हैं। प्रवृत्त किया गया है।
(2) चौबीस घंटे के भीतर जिला मजिस्ट्रेट या उप-मंडल मजिस्ट्रेट को भेज दिया
जाएगा।
(3) कब-
(i)
मामला किसी महिला द्वारा अपनी शादी
के सात साल के भीतर आत्महत्या करने से संबंधित है; या
(ii)
मामला किसी महिला की उसके विवाह के
सात वर्ष के भीतर किसी भी परिस्थिति में हुई मृत्यु से संबंधित है, जिससे यह उचित
संदेह उत्पन्न होता है कि किसी अन्य व्यक्ति ने उस महिला के संबंध में कोई अपराध
किया है; या
(iii)
मामला किसी महिला की उसके विवाह के
सात वर्ष के भीतर मृत्यु से संबंधित है और महिला के किसी रिश्तेदार ने इस संबंध
में अनुरोध किया है; या
(iv)
मृत्यु के कारण के बारे में कोई
संदेह है; या
(v)
यदि पुलिस अधिकारी किसी अन्य कारण
से ऐसा करना समीचीन समझता है, तो वह ऐसे नियमों के अधीन रहते हुए, जो राज्य सरकार
इस निमित्त विहित करे, शव को उसकी जांच के लिए निकटतम सिविल सर्जन या राज्य सरकार
द्वारा इस निमित्त नियुक्त अन्य अर्ह चिकित्सा व्यक्ति के पास भेजेगा, यदि मौसम की
स्थिति और दूरी के कारण शव को सड़क पर ऐसी सड़न के जोखिम के बिना इस प्रकार भेजा
जा सकता हो, जिससे जांच निरर्थक हो जाए।
(4) निम्नलिखित मजिस्ट्रेट को जांच करने का अधिकार है, अर्थात कोई भी जिला
मजिस्ट्रेट या उप-विभागीय मजिस्ट्रेट और कोई अन्य कार्यपालक मजिस्ट्रेट जिसे राज्य
सरकार या जिला मजिस्ट्रेट द्वारा इस संबंध में विशेष रूप से सशक्त किया गया हो।
195.
व्यक्तियों को बुलाने की शक्ति ।--( 1 ) धारा 194 के अधीन कार्यवाही करने वाला
पुलिस अधिकारी लिखित आदेश द्वारा उक्त अन्वेषण के प्रयोजन के लिए पूर्वोक्त दो या
अधिक व्यक्तियों को तथा किसी अन्य व्यक्ति को, जो मामले के तथ्यों से परिचित
प्रतीत होता है, बुला सकता है और इस प्रकार बुलाया गया प्रत्येक व्यक्ति उपस्थित
होने के लिए तथा उन प्रश्नों को छोड़कर, जिनके उत्तरों से उस पर आपराधिक आरोप या
दंड या जब्ती का खतरा हो सकता है, सभी प्रश्नों का सही उत्तर देने के लिए आबद्ध
होगा:
बशर्ते कि पंद्रह वर्ष से कम या साठ वर्ष से अधिक आयु के किसी पुरुष
व्यक्ति या किसी महिला या मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्ति या गंभीर
बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति को उस स्थान के अलावा किसी अन्य स्थान पर उपस्थित होने
की आवश्यकता नहीं होगी जहां ऐसा व्यक्ति निवास करता है:
आगे यह भी प्रावधान है कि यदि ऐसा व्यक्ति
पुलिस थाने में उपस्थित होने और जवाब देने के लिए तैयार है, तो ऐसे व्यक्ति को ऐसा
करने की अनुमति दी जा सकेगी।
( 2 )
यदि तथ्यों से ऐसा कोई संज्ञेय अपराध प्रकट नहीं होता जिस पर धारा 190 लागू होती
है, तो ऐसे व्यक्तियों को पुलिस अधिकारी द्वारा मजिस्ट्रेट की अदालत में उपस्थित
होने की आवश्यकता नहीं होगी।
196.
मजिस्ट्रेट द्वारा मृत्यु के कारण की जांच ।--( 1 ) जब मामला धारा 194 की उपधारा ( 3 ) के खंड ( i ) या खंड ( ii ) में निर्दिष्ट प्रकृति का है , तो
जांच करने के लिए सशक्त निकटतम मजिस्ट्रेट, और धारा 194 की उपधारा ( 1 ) में वर्णित किसी अन्य मामले में, इस
प्रकार सशक्त कोई मजिस्ट्रेट पुलिस अधिकारी द्वारा की गई जांच के स्थान पर या उसके
अतिरिक्त मृत्यु के कारण की जांच कर सकता है; और यदि वह ऐसा करता है, तो उसे जांच
करने में वे सभी शक्तियां प्राप्त होंगी जो उसे किसी अपराध की जांच करने में
होतीं।
(2) कहाँ,-
(a)
किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है
या वह गायब हो जाता है; या
(b)
यदि किसी महिला के साथ बलात्कार का
आरोप लगाया जाता है, जबकि ऐसा व्यक्ति या महिला पुलिस की हिरासत में है या
मजिस्ट्रेट या न्यायालय द्वारा अधिकृत किसी अन्य हिरासत में है, तो इस संहिता के
तहत पुलिस द्वारा की गई जांच या अन्वेषण के अतिरिक्त, उस मजिस्ट्रेट द्वारा जांच
की जाएगी जिसके स्थानीय क्षेत्राधिकार में अपराध किया गया है।
(3) ऐसी जांच करने वाला मजिस्ट्रेट मामले की परिस्थितियों के अनुसार, इसके
पश्चात् विनिर्दिष्ट किसी भी तरीके से, उसके संबंध में अपने द्वारा लिए गए साक्ष्य
को अभिलिखित करेगा।
(4) जब कभी ऐसा मजिस्ट्रेट किसी व्यक्ति के शव की, जिसे पहले ही दफना दिया गया
है, उसकी मृत्यु का कारण जानने के लिए परीक्षा करना समीचीन समझता है, तो वह
मजिस्ट्रेट शव को खुलवाकर उसकी परीक्षा करवा सकता है।
(5) जहां इस धारा के अधीन जांच की जानी हो, वहां मजिस्ट्रेट, जहां तक संभव हो,
मृतक के उन रिश्तेदारों को, जिनके नाम और पते ज्ञात हों, सूचित करेगा और उन्हें
जांच के समय उपस्थित रहने की अनुमति देगा।
(6) उपधारा ( 2 ) के अधीन जांच या
अन्वेषण करने वाला मजिस्ट्रेट या कार्यपालक मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी किसी
व्यक्ति की मृत्यु के चौबीस घंटे के भीतर शव को जांच के लिए निकटतम सिविल सर्जन या
राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त नियुक्त अन्य योग्य चिकित्सा व्यक्ति के पास
भेजेगा, जब तक कि लिखित में अभिलिखित किए जाने वाले कारणों से ऐसा करना संभव न हो।
स्पष्टीकरण-
इस धारा में "रिश्तेदार" से माता-पिता, बच्चे,
भाई, बहन और पति/पत्नी अभिप्रेत हैं ।