अध्याय 15
कार्यवाही आरंभ करने के लिए आवश्यक शर्तें
208.
मजिस्ट्रेट द्वारा अपराधों का संज्ञान .-- ( 1 ) इस अध्याय के उपबंधों के अधीन रहते
हुए, कोई प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट और उपधारा ( 2
) के अधीन इस निमित्त विशेष रूप से सशक्त कोई द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट किसी
अपराध का संज्ञान ले सकेगा--
(a)
तथ्यों की शिकायत प्राप्त होने पर,
जिसमें किसी विशेष कानून के तहत अधिकृत व्यक्ति द्वारा दायर की गई कोई शिकायत भी
शामिल है, जो ऐसे अपराध का गठन करती है;
(b)
ऐसे तथ्यों की पुलिस रिपोर्ट
(इलेक्ट्रॉनिक मोड सहित किसी भी मोड में प्रस्तुत) पर;
(c)
पुलिस अधिकारी के अलावा किसी अन्य
व्यक्ति से सूचना प्राप्त होने पर, या स्वयं के ज्ञान के आधार पर कि ऐसा अपराध
किया गया है।
( 2 )
मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट किसी द्वितीय श्रेणी मजिस्ट्रेट को उपधारा ( 1 ) के अधीन ऐसे अपराधों का संज्ञान लेने
के लिए सशक्त कर सकेगा जिनकी जांच या विचारण करना उसकी क्षमता के भीतर है।
211.
अभियुक्त के आवेदन पर स्थानांतरण । जब कोई मजिस्ट्रेट धारा 210 की उपधारा ( 1 ) के खंड ( ग ) के अधीन
किसी अपराध का संज्ञान लेता है , तब अभियुक्त को, कोई साक्ष्य लिए जाने के पूर्व,
यह सूचित किया जाएगा कि वह मामले की जांच या विचारण किसी अन्य मजिस्ट्रेट द्वारा
कराए जाने का हकदार है, और यदि अभियुक्त या अभियुक्तों में से कोई, यदि एक से अधिक
हों, संज्ञान लेने वाले मजिस्ट्रेट के समक्ष आगे की कार्यवाही पर आपत्ति करता है,
तो मामला ऐसे अन्य मजिस्ट्रेट को स्थानांतरित कर दिया जाएगा, जिसे मुख्य न्यायिक
मजिस्ट्रेट इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे।
212.
मजिस्ट्रेटों को सौंपना .-- ( 1 ) कोई भी मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट किसी
अपराध का संज्ञान लेने के पश्चात् मामले को जांच या विचारण के लिए अपने अधीनस्थ
किसी सक्षम मजिस्ट्रेट को सौंप सकता है।
( 2 )
मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा इस निमित्त सशक्त किया गया कोई प्रथम श्रेणी
मजिस्ट्रेट किसी अपराध का संज्ञान लेने के पश्चात् मामले को जांच या विचारण के लिए
ऐसे अन्य सक्षम मजिस्ट्रेट को सौंप सकता है, जिसे मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट साधारण
या विशेष आदेश द्वारा विनिर्दिष्ट करे और तदुपरि ऐसा मजिस्ट्रेट जांच या विचारण कर
सकता है।
213.
सत्र न्यायालय द्वारा अपराधों का संज्ञान .— इस
संहिता या किसी अन्य समय प्रवृत्त विधि द्वारा अन्यथा स्पष्ट रूप से उपबंधित के
सिवाय, कोई भी सत्र न्यायालय आरंभिक अधिकारिता वाले न्यायालय के रूप में किसी
अपराध का संज्ञान नहीं लेगा, जब तक कि मामला इस संहिता के अधीन मजिस्ट्रेट द्वारा
उसे सौंप न दिया गया हो।
214.
उन्हें सौंपे गए हैं । अपर सेशन न्यायाधीश ऐसे
मामलों पर विचारण करेंगे जिन्हें खंड का सेशन न्यायाधीश, सामान्य या विशेष आदेश
द्वारा, विचारण के लिए उन्हें सौंपे या जिन्हें उच्च न्यायालय, विशेष आदेश द्वारा,
विचारण के लिए उन्हें सौंपे।
215.
लोक सेवकों के वैध प्राधिकार की अवमानना, लोक न्याय के विरुद्ध अपराधों
तथा साक्ष्य में दिए गए दस्तावेजों से संबंधित अपराधों
के लिए अभियोजन।— ( 1 ) कोई भी
न्यायालय संज्ञान नहीं लेगा—
(a)
( i ) भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 206 से 223 (दोनों धाराएं
सम्मिलित हैं , परंतु धारा 209 को छोड़कर) के अंतर्गत दंडनीय किसी अपराध का ; या
(ii)
ऐसे अपराध के लिए किसी प्रकार का
दुष्प्रेरण या प्रयास; या
(iii) ऐसे अपराध को करने के लिए किसी आपराधिक षड्यंत्र का, संबंधित लोक सेवक या
किसी अन्य लोक सेवक की, जिसके वह प्रशासनिक रूप से अधीनस्थ है या किसी अन्य लोक
सेवक की, जिसे संबंधित लोक सेवक द्वारा ऐसा करने के लिए प्राधिकृत किया गया है,
लिखित शिकायत के सिवाय;
(b)
( i ) भारतीय न्याय संहिता, 2023 की निम्नलिखित धाराओं में से किसी के
अंतर्गत दंडनीय कोई अपराध , अर्थात् धारा 229 से 233 (दोनों सम्मिलित), 236, 237,
242 से 248 (दोनों सम्मिलित) और 267, जब ऐसा अपराध किसी न्यायालय में किसी
कार्यवाही में या उसके संबंध में किया गया अभिकथित हो; या
(ii)
उपधारा ( 1 ) में वर्णित किसी अपराध का, या उक्त संहिता की धारा 340 की उपधारा
( 2 ) या धारा 342 के अधीन दंडनीय, जब
ऐसा अपराध किसी न्यायालय में किसी कार्यवाही में साक्ष्य में पेश किए गए या दिए गए
दस्तावेज के संबंध में किया गया अभिकथन किया गया हो; या
(iii)
i ) या उप-खंड ( ii ) में निर्दिष्ट किसी अपराध को करने, करने का प्रयास करने, या उसके
लिए उकसाने के किसी आपराधिक षड्यंत्र का,
उस न्यायालय द्वारा या
न्यायालय के ऐसे अधिकारी द्वारा, जिसे वह न्यायालय इस निमित्त लिखित रूप में
प्राधिकृत करे, या किसी अन्य न्यायालय द्वारा, जिसके अधीन वह न्यायालय है, लिखित
शिकायत पर ही की जाएगी, सिवाय।
216.
धमकी आदि के मामले में गवाहों के लिए प्रक्रिया - कोई गवाह या कोई अन्य
व्यक्ति भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 232 के तहत
किसी अपराध के संबंध में शिकायत दर्ज कर सकता है।
217.
अपराध करने के लिए आपराधिक षड्यंत्र के लिए अभियोजन । - ( 1 ) कोई भी न्यायालय
निम्नलिखित का संज्ञान नहीं लेगा -
(a)
भारतीय न्याय संहिता, 2023 के
अध्याय VII या धारा 196, धारा 299 या धारा 353 की उपधारा ( 1 ) के अंतर्गत दंडनीय कोई अपराध ; या
(b)
ऐसा अपराध करने के लिए आपराधिक
षड्यंत्र; या
(c)
भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा
47 में वर्णित किसी भी प्रकार के दुष्प्रेरण को केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार की
पूर्व मंजूरी के बिना नहीं किया जा सकेगा।
(2) कोई भी न्यायालय निम्नलिखित का संज्ञान नहीं लेगा-
(a)
भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा
197 या धारा 353 की उपधारा ( 2 ) या
उपधारा ( 3 ) के अंतर्गत दंडनीय कोई अपराध ;
या
(b)
ऐसा अपराध करने के लिए आपराधिक
षड्यंत्र, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार या जिला मजिस्ट्रेट की पूर्व मंजूरी के
बिना।
(3) भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 61 की उपधारा ( 2 ) के अंतर्गत दंडनीय किसी आपराधिक षड्यंत्र के अपराध का संज्ञान
नहीं लेगा , सिवाय मृत्युदंड, आजीवन कारावास या दो वर्ष या उससे अधिक अवधि के कठोर
कारावास से दंडनीय अपराध करने के आपराधिक षड्यंत्र के, जब तक कि राज्य सरकार या
जिला मजिस्ट्रेट ने कार्यवाही आरंभ करने के लिए लिखित में सहमति नहीं दे दी हो:
परन्तु जहां आपराधिक षडयंत्र ऐसा है जिस पर
धारा 215 के उपबंध लागू होते हैं, वहां ऐसी सहमति आवश्यक नहीं होगी।
(4) केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार उपधारा ( 1 ) या उपधारा ( 2 ) के
अधीन मंजूरी देने से पूर्व और जिला मजिस्ट्रेट उपधारा ( 2 ) के अधीन मंजूरी देने से पूर्व और राज्य सरकार या जिला मजिस्ट्रेट
उपधारा ( 3 ) के अधीन सहमति देने से
पूर्व निरीक्षक की पंक्ति से नीचे का न होने वाले पुलिस अधिकारी द्वारा प्रारंभिक
जांच का आदेश दे सकता है, ऐसी स्थिति में ऐसे पुलिस अधिकारी को धारा 174 की उपधारा
( 3 ) में निर्दिष्ट शक्तियां प्राप्त
होंगी।
218.
न्यायाधीशों और लोक सेवकों का अभियोजन ।--( 1 ) जब किसी व्यक्ति पर, जो न्यायाधीश या
मजिस्ट्रेट या लोक सेवक है या था, जिसे सरकार द्वारा या उसकी मंजूरी के बिना उसके
पद से हटाया नहीं जा सकता, किसी ऐसे अपराध का आरोप लगाया जाता है जो उसके द्वारा
अपने पदीय कर्तव्य के निर्वहन में कार्य करते समय या कार्य करने का प्रकल्पना करते
समय किया गया है, तब कोई भी न्यायालय लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 (2014
का 1) में अन्यथा उपबंधित के सिवाय पूर्व मंजूरी के बिना ऐसे अपराध का संज्ञान
नहीं लेगा-
(a)
ऐसे व्यक्ति की दशा में, जो संघ के
कार्यकलापों के संबंध में केन्द्रीय सरकार में नियोजित है या, यथास्थिति, अभिकथित
अपराध के किए जाने के समय नियोजित था;
(b)
ऐसे व्यक्ति की दशा में, जो राज्य
के कार्यकलाप के संबंध में नियोजित है या, यथास्थिति, अभिकथित अपराध के किए जाने
के समय नियोजित था, राज्य सरकार की:
ख ) में निर्दिष्ट व्यक्ति द्वारा उस अवधि के दौरान किया गया था जब संविधान के
अनुच्छेद 356 के खंड (1) के अधीन जारी की गई उद्घोषणा किसी राज्य में प्रवृत्त थी,
वहां खंड ( ख ) इस प्रकार लागू होगा
मानो उसमें आने वाले "राज्य सरकार" पद के स्थान पर "केन्द्रीय
सरकार" पद रख दिया गया हो:
परंतु यह और कि ऐसी सरकार मंजूरी के लिए अनुरोध
प्राप्त होने की तारीख से एक सौ बीस दिन की अवधि के भीतर निर्णय लेगी और यदि वह
ऐसा करने में असफल रहती है तो मंजूरी ऐसी सरकार द्वारा प्रदान की गई मानी जाएगी:
यह भी प्रावधान है कि भारतीय न्याय संहिता,
2023 की धारा 64, धारा 65, धारा 66, धारा 68, धारा 69, धारा 70, धारा 71, धारा 74,
धारा 75, धारा 76, धारा 77, धारा 78, धारा 79, धारा 143, धारा 199 या धारा 200 के
अंतर्गत किए गए किसी अपराध के आरोपी लोक सेवक के मामले में किसी मंजूरी की
आवश्यकता नहीं होगी।
(2) कोई भी न्यायालय संघ के सशस्त्र बलों के किसी सदस्य द्वारा अपने पदीय
कर्तव्य के निर्वहन में कार्य करते समय या कार्य करने का प्रकल्पना करते समय किए
गए किसी अपराध का संज्ञान, केन्द्रीय सरकार की पूर्व मंजूरी के बिना नहीं लेगा।
(3) राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा, निदेश दे सकेगी कि उपधारा ( 2 ) के उपबंध, लोक व्यवस्था बनाए रखने का
कार्यभार संभालने वाले बलों के सदस्यों के ऐसे वर्ग या प्रवर्ग पर, जो उसमें
विनिर्दिष्ट किए जाएं, लागू होंगे, चाहे वे कहीं भी सेवा कर रहे हों, और तब उस
उपधारा के उपबंध इस प्रकार लागू होंगे मानो उसमें आने वाले "केन्द्रीय
सरकार" पद के स्थान पर "राज्य सरकार" पद रख दिया गया हो।
(4) उपधारा ( 3 ) में किसी बात के
होते हुए भी, कोई न्यायालय किसी ऐसे अपराध का संज्ञान नहीं लेगा, जिसके बारे में
यह अभिकथन है कि वह किसी राज्य में लोक व्यवस्था बनाए रखने के लिए नियुक्त बलों के
किसी सदस्य द्वारा, उस अवधि के दौरान अपने पदीय कर्तव्य के निर्वहन में कार्य करते
समय या कार्य करने का तात्पर्य रखते हुए किया गया है, जब संविधान के अनुच्छेद 356
के खंड (1) के अधीन जारी की गई उद्घोषणा वहां प्रवृत्त थी, केन्द्रीय सरकार की
पूर्व मंजूरी के बिना।
(5) केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार उस व्यक्ति का निर्धारण कर सकेगी जिसके
द्वारा, वह रीति जिससे, और वह अपराध या अपराध जिनके लिए ऐसे न्यायाधीश, मजिस्ट्रेट
या लोक सेवक के विरुद्ध अभियोजन चलाया जाना है, तथा वह न्यायालय विनिर्दिष्ट कर
सकेगी जिसके समक्ष विचारण चलाया जाना है।
विवाह
के विरुद्ध अपराधों के लिए अभियोजन ।-- ( 1 ) कोई भी न्यायालय भारतीय न्याय संहिता,
2023 की धारा 81 से 84 (दोनों सम्मिलित) के अधीन दंडनीय अपराध का संज्ञान, उस
अपराध से व्यथित किसी व्यक्ति द्वारा की गई शिकायत के अलावा नहीं लेगा: बशर्ते
कि--
(a)
जहां ऐसा व्यक्ति बच्चा है, या
विकृत चित्त का है या बौद्धिक अक्षमता से ग्रस्त है जिसके लिए उच्चतर सहायता की
आवश्यकता है, या वह बीमारी या अशक्तता के कारण शिकायत करने में असमर्थ है, या वह
महिला है जिसे स्थानीय रीति-रिवाजों और रीति-रिवाजों के अनुसार सार्वजनिक रूप से
उपस्थित होने के लिए बाध्य नहीं किया जाना चाहिए, वहां कोई अन्य व्यक्ति न्यायालय
की अनुमति से उसकी ओर से शिकायत कर सकता है;
(b)
जहां ऐसा व्यक्ति पति है और वह संघ
के किसी सशस्त्र बल में ऐसी शर्तों के अधीन सेवा कर रहा है, जो उसके कमांडिंग
आफिसर द्वारा प्रमाणित की गई हैं कि वे उसे व्यक्तिगत रूप से शिकायत करने में
सक्षम होने के लिए अनुपस्थिति की छुट्टी प्राप्त करने से रोकती हैं, वहां उपधारा (
4 ) के उपबंधों के अनुसार पति द्वारा
प्राधिकृत कोई अन्य व्यक्ति उसकी ओर से शिकायत कर सकता है;
(c)
भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा
82 के अंतर्गत दंडनीय अपराध से व्यथित व्यक्ति पत्नी है, वहां उसकी ओर से उसके
पिता, माता, भाई, बहन, पुत्र या पुत्री या उसके पिता या माता के भाई या बहन द्वारा
अथवा न्यायालय की अनुमति से उसके साथ रक्त, विवाह या दत्तक संबंध से संबंधित किसी
अन्य व्यक्ति द्वारा शिकायत की जा सकती है।
(2) उपधारा ( 1 ) के प्रयोजनों के
लिए, महिला के पति के अलावा कोई अन्य व्यक्ति भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा
84 के तहत दंडनीय किसी अपराध से व्यथित नहीं माना जाएगा।
(3) उपधारा ( 1 ) के परन्तुक के खण्ड (
क ) के अन्तर्गत आने वाले किसी मामले में , शिकायत किसी बालक या विकृतचित्त
वाले व्यक्ति की ओर से ऐसे व्यक्ति द्वारा की जानी है, जिसे किसी सक्षम प्राधिकारी
द्वारा बालक या विकृतचित्त वाले व्यक्ति का संरक्षक नियुक्त या घोषित नहीं किया
गया है, और न्यायालय का यह समाधान हो जाता है कि ऐसा कोई संरक्षक नियुक्त या घोषित
किया गया है, तो न्यायालय इजाजत के लिए आवेदन स्वीकृत करने के पूर्व ऐसे संरक्षक
को सूचना दिलवाएगा और उसे सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर देगा।
(4) उपधारा ( 1 ) के परन्तुक के खंड (
ख ) में निर्दिष्ट प्राधिकार लिखित रूप में होगा, पति द्वारा हस्ताक्षरित या
अन्यथा सत्यापित होगा, उसमें इस आशय का कथन होगा कि उसे उन अभिकथनों की जानकारी दे
दी गई है जिन पर शिकायत आधारित है, उसके कमान अधिकारी द्वारा प्रतिहस्ताक्षरित
होगा और उसके साथ उस अधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित इस आशय का प्रमाणपत्र होगा कि
व्यक्तिगत रूप से शिकायत करने के प्रयोजन के लिए पति को फिलहाल छुट्टी नहीं दी जा
सकती।
(5) कोई दस्तावेज जो ऐसा प्राधिकरण होना तात्पर्यित करता है और उपधारा ( 4 ) के उपबंधों का अनुपालन करता है, और
कोई दस्तावेज जो उस उपधारा द्वारा अपेक्षित प्रमाणपत्र होना तात्पर्यित करता है,
जब तक कि प्रतिकूल साबित न कर दिया जाए, असली माना जाएगा और साक्ष्य में ग्रहण
किया जाएगा।
(6) भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 64 के अंतर्गत किसी अपराध का संज्ञान
नहीं लेगा , जिसमें किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध बनाना शामिल
हो, तथा पत्नी की आयु अठारह वर्ष से कम हो, यदि अपराध किए जाने की तिथि से एक वर्ष
से अधिक समय बीत चुका हो।
220.
भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 85 के तहत अपराधों का अभियोजन।— कोई भी
न्यायालय भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 85 के अंतर्गत दंडनीय अपराध का
संज्ञान तब तक नहीं लेगा, जब तक कि ऐसे तथ्यों की पुलिस रिपोर्ट न मिल जाए, जो ऐसे
अपराध का गठन करते हैं या अपराध से व्यथित व्यक्ति या उसके पिता, माता, भाई, बहन
या उसके पिता या माता के भाई या बहन द्वारा या न्यायालय की अनुमति से, उससे रक्त,
विवाह या दत्तक ग्रहण से संबंधित किसी अन्य व्यक्ति द्वारा शिकायत न की जाए।
221.
अपराध का संज्ञान .— कोई भी न्यायालय भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 67 के अंतर्गत
दंडनीय अपराध का संज्ञान नहीं लेगा, जहां व्यक्ति वैवाहिक संबंध में हैं, सिवाय
इसके कि पत्नी द्वारा पति के विरुद्ध शिकायत दर्ज किए जाने या किए जाने पर अपराध
का गठन करने वाले तथ्यों की प्रथम दृष्टया संतुष्टि
हो जाए।
222.
मानहानि के लिए अभियोजन .-- ( 1 ) कोई भी न्यायालय भारतीय न्याय संहिता,
2023 की धारा 356 के अंतर्गत दंडनीय अपराध का संज्ञान उस अपराध से व्यथित किसी
व्यक्ति द्वारा की गई शिकायत के अलावा नहीं लेगा:
परन्तु जहां ऐसा व्यक्ति बालक है, या
विकृतचित्त है, या बौद्धिक रूप से अक्षम है, या बीमारी या अंग-शैथिल्य के कारण
शिकायत करने में असमर्थ है, या ऐसी स्त्री है, जिसे स्थानीय रीति-रिवाजों और
रीतियों के अनुसार सार्वजनिक रूप से उपस्थित होने के लिए बाध्य नहीं किया जाना
चाहिए, वहां कोई अन्य व्यक्ति न्यायालय की अनुमति से उसकी ओर से शिकायत कर सकता
है।
(2) इस संहिता में किसी बात के होते हुए भी, जब भारतीय न्याय संहिता, 2023 की
धारा 356 के अंतर्गत आने वाले किसी अपराध का, ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध किया जाना
अभिकथित है, जो ऐसे अपराध के समय भारत का राष्ट्रपति, भारत का उपराष्ट्रपति, किसी
राज्य का राज्यपाल, किसी संघ राज्य क्षेत्र का प्रशासक या संघ या राज्य या संघ
राज्य क्षेत्र का मंत्री, या संघ या राज्य के कार्यकलापों के संबंध में नियोजित
कोई अन्य लोक सेवक है, उसके सार्वजनिक कृत्यों के निर्वहन में उसके आचरण के संबंध
में, तो सत्र न्यायालय ऐसे अपराध का संज्ञान, मामला उसके सुपुर्द हुए बिना, लोक
अभियोजक द्वारा लिखित में की गई शिकायत पर ले सकता है।
(3) उपधारा ( 2 ) में निर्दिष्ट
प्रत्येक शिकायत में वे तथ्य, जिनसे अभिकथित अपराध गठित होता है, ऐसे अपराध की
प्रकृति तथा अन्य ऐसी विशिष्टियां दी जाएंगी जो अभियुक्त को उसके द्वारा किए गए
अभिकथित अपराध की सूचना देने के लिए युक्तियुक्त रूप से पर्याप्त हैं।
(4) उपधारा ( 2 ) के अधीन कोई
शिकायत लोक अभियोजक द्वारा पूर्व मंजूरी के बिना नहीं की जाएगी,-
( क ) राज्य सरकार का,-
(i)
ऐसे व्यक्ति के मामले में जो उस
राज्य का राज्यपाल या मंत्री है या रहा है
सरकार;
(ii)
राज्य के कार्यकलापों के संबंध में
नियोजित किसी अन्य लोक सेवक की दशा में; ( ख
) केन्द्रीय सरकार के किसी अन्य मामले में।
(5) कोई भी सत्र न्यायालय उपधारा ( 2 )
के अधीन किसी अपराध का संज्ञान तब तक नहीं लेगा जब तक कि शिकायत उस तारीख से छह
माह के भीतर न की जाए जिसको अपराध का किया जाना अभिकथित है।