1
If you are facing any issue, then join our Telegram group or channel and let us know.Join Channel Join Group!

अध्याय 17

 

अध्याय 17

मजिस्ट्रेट के समक्ष कार्यवाही प्रारंभ

226.                    आदेशिका जारी करना - ( 1 ) यदि किसी अपराध का संज्ञान लेने वाले मजिस्ट्रेट की राय में कार्यवाही के लिए पर्याप्त आधार है, और मामला ऐसा प्रतीत होता है कि -

(a)         किसी समन-मामले में, वह अभियुक्त को उसकी उपस्थिति के लिए समन जारी करेगा; या

(b)         किसी वारंट-मामले में, वह अभियुक्त को ऐसे मजिस्ट्रेट के समक्ष या (यदि उसे स्वयं कोई अधिकारिता नहीं है तो) अधिकारिता रखने वाले किसी अन्य मजिस्ट्रेट के समक्ष किसी निश्चित समय पर लाने या उपस्थित कराने के लिए वारंट या यदि वह ठीक समझे तो समन जारी कर सकता है:

बशर्ते कि समन या वारंट इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से भी जारी किए जा सकेंगे।

(2)    उपधारा ( 1 ) के अधीन अभियुक्त के विरुद्ध तब तक कोई समन या वारंट जारी नहीं किया जाएगा जब तक अभियोजन पक्ष के साक्षियों की सूची दाखिल नहीं कर दी जाती।

(3)    लिखित रूप में की गई शिकायत पर संस्थित कार्यवाही में, उपधारा ( 1 ) के अधीन जारी प्रत्येक समन या वारंट के साथ ऐसी शिकायत की एक प्रति संलग्न की जाएगी।

(4)    जब किसी तत्समय प्रवृत्त विधि द्वारा कोई आदेशिका-फीस या अन्य फीस देय हो, तब तब तक कोई आदेशिका जारी नहीं की जाएगी जब तक फीस का भुगतान न कर दिया जाए और यदि ऐसी फीस का भुगतान युक्तियुक्त समय के भीतर न किया जाए, तो मजिस्ट्रेट शिकायत को खारिज कर सकता है।

(5)    इस धारा की कोई भी बात धारा 90 के उपबंधों पर प्रभाव डालने वाली नहीं समझी जाएगी।

अभियुक्त को वैयक्तिक उपस्थिति से छूट दे सकेगा - ( 1 ) जब कभी मजिस्ट्रेट समन जारी करता है, तब यदि वह ऐसा करने का कारण देखता है, तो वह अभियुक्त को वैयक्तिक उपस्थिति से छूट दे सकेगा और उसे अपने अधिवक्ता द्वारा उपस्थित होने की अनुज्ञा दे सकेगा।

( 2 ) किन्तु मामले की जांच या विचारण करने वाला मजिस्ट्रेट, अपने विवेकानुसार, कार्यवाही के किसी भी प्रक्रम पर अभियुक्त को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का निर्देश दे सकता है और यदि आवश्यक हो तो इसमें पूर्व उपबंधित रीति से ऐसी उपस्थिति को लागू कर सकता है।

229. छोटे अपराध के मामलों में विशेष समन ।--( 1 ) यदि छोटे अपराध का संज्ञान लेने वाले मजिस्ट्रेट की राय में, मामले का धारा 283 या धारा 284 के अधीन संक्षेप में निपटारा किया जा सकता है, तो मजिस्ट्रेट, सिवाय उस स्थिति के, जब उसके पास लिखित रूप में अभिलिखित किए जाने वाले कारणों से विपरीत राय हो, अभियुक्त को समन जारी करेगा जिसमें उससे यह अपेक्षा की जाएगी कि वह या तो स्वयं या अधिवक्ता के माध्यम से मजिस्ट्रेट के समक्ष विनिर्दिष्ट तिथि को उपस्थित हो, या यदि वह मजिस्ट्रेट के समक्ष उपस्थित हुए बिना आरोप में दोषी होने की इच्छा रखता है, तो वह विनिर्दिष्ट तिथि से पहले डाक या संदेशवाहक द्वारा मजिस्ट्रेट को लिखित रूप में उक्त अभिवाक और समन में विनिर्दिष्ट जुर्माने की राशि भेजे, या यदि वह अधिवक्ता द्वारा उपस्थित होना चाहता है और ऐसे अधिवक्ता के माध्यम से आरोप में दोषी होने की इच्छा रखता है, तो वह अधिवक्ता को उसकी ओर से आरोप में दोषी होने की इच्छा रखने और ऐसे अधिवक्ता के माध्यम से जुर्माना देने के लिए लिखित रूप में प्राधिकृत करे:

परन्तु ऐसे समन में विनिर्दिष्ट जुर्माने की राशि पांच हजार रुपए से अधिक नहीं होगी।

(2)    इस धारा के प्रयोजनों के लिए, "छोटा अपराध" से पांच हजार रुपए से अधिक के जुर्माने से दंडनीय कोई अपराध अभिप्रेत है, किन्तु इसमें मोटर वाहन अधिनियम, 1988 (1988 का 59) या किसी अन्य कानून के तहत दंडनीय कोई अपराध शामिल नहीं है, जो दोषी होने की दलील पर अभियुक्त व्यक्ति की अनुपस्थिति में उसे दोषी ठहराने का प्रावधान करता है।

(3)    राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा, किसी मजिस्ट्रेट को उपधारा ( 1 ) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करने के लिए विशेष रूप से सशक्त कर सकेगी, किसी ऐसे अपराध के संबंध में जो धारा 359 के अधीन समझौता योग्य है या किसी ऐसे अपराध के संबंध में जो तीन मास से अधिक की अवधि के कारावास या जुर्माने या दोनों से दंडनीय है, जहां मजिस्ट्रेट की यह राय है कि मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए केवल जुर्माना लगाने से ही न्याय का उद्देश्य पूरा होगा।

230.                    दस्तावेजों की प्रति प्रदान करना - किसी भी मामले में जहां कार्यवाही पुलिस रिपोर्ट पर शुरू की गई है, मजिस्ट्रेट बिना किसी देरी के, और किसी भी मामले में अभियुक्त के उत्पादन या उपस्थिति की तारीख से चौदह दिनों से अधिक नहीं, अभियुक्त और पीड़ित को (यदि वकील द्वारा प्रतिनिधित्व किया जाता है) निम्नलिखित में से प्रत्येक की एक प्रति निःशुल्क प्रदान करेगा : -

(i)     पुलिस रिपोर्ट;

(ii)   धारा 173 के अंतर्गत दर्ज प्रथम सूचना रिपोर्ट;

(iii)  उपधारा ( 3 ) के अधीन अभिलिखित उन सभी व्यक्तियों के कथन, जिनकी अभियोजन पक्ष अपने साक्षियों के रूप में परीक्षा करने का प्रस्ताव करता है, उनमें से ऐसे किसी भाग को अपवर्जित कर दिया जाएगा जिसके संबंध में पुलिस अधिकारी द्वारा धारा 193 की उपधारा ( 7 ) के अधीन ऐसे अपवर्जन का अनुरोध किया गया है;

(iv)  धारा 183 के तहत दर्ज की गई स्वीकारोक्ति और बयान, यदि कोई हो;

(v)    धारा 193 की उपधारा ( 6 ) के अधीन पुलिस रिपोर्ट के साथ मजिस्ट्रेट को भेजा गया कोई अन्य दस्तावेज या उसका सुसंगत उद्धरण:

iii ) में निर्दिष्ट है, अध्ययन करने के पश्चात् और पुलिस अधिकारी द्वारा अनुरोध के लिए दिए गए कारणों पर विचार करने के पश्चात् निर्देश दे सकेगा कि कथन के उस भाग की या उसके ऐसे भाग की, जिसे मजिस्ट्रेट उचित समझे, एक प्रति अभियुक्त को दी जाएगी:

आगे यह भी प्रावधान है कि यदि मजिस्ट्रेट को यह विश्वास हो कि ऐसा कोई दस्तावेज बहुत बड़ा है, तो वह अभियुक्त और पीड़ित को (यदि उसका प्रतिनिधित्व अधिवक्ता द्वारा किया जा रहा हो) उसकी प्रतिलिपि देने के स्थान पर इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से प्रतिलिपि दे सकेगा या निर्देश दे सकेगा कि उसे केवल व्यक्तिगत रूप से या न्यायालय में अधिवक्ता के माध्यम से उसका निरीक्षण करने की अनुमति होगी:

बशर्ते कि इलेक्ट्रॉनिक रूप में दस्तावेजों की आपूर्ति को विधिवत प्रस्तुत माना जाएगा।

231.                    सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय अन्य मामलों में अभियुक्तों को बयानों और दस्तावेजों की प्रतियां उपलब्ध कराना । - जहां पुलिस रिपोर्ट के अलावा किसी अन्य आधार पर संस्थित मामले में, धारा 227 के अधीन आदेशिका जारी करने वाले मजिस्ट्रेट को यह प्रतीत होता है कि अपराध अनन्य रूप से सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय है, वहां मजिस्ट्रेट अभियुक्त को निम्नलिखित में से प्रत्येक की एक प्रति तत्काल निःशुल्क उपलब्ध कराएगा : -

(i)     धारा 223 या धारा 225 के तहत दर्ज किए गए बयान, द्वारा जांचे गए सभी व्यक्तियों के

मजिस्ट्रेट;

(ii)   धारा 180 या धारा 183 के तहत दर्ज किए गए बयान और स्वीकारोक्ति, यदि कोई हो;

(iii)  मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत कोई भी दस्तावेज जिस पर अभियोजन पक्ष निर्भर करने का प्रस्ताव करता है:

परंतु यदि मजिस्ट्रेट का यह समाधान हो जाए कि ऐसा कोई दस्तावेज बहुत बड़ा है, तो वह अभियुक्त को उसकी प्रतिलिपि देने के स्थान पर यह निर्देश देगा कि उसे केवल व्यक्तिगत रूप से या न्यायालय में अधिवक्ता के माध्यम से उसका निरीक्षण करने की अनुमति दी जाएगी:

बशर्ते कि इलेक्ट्रॉनिक रूप में दस्तावेजों की आपूर्ति को विधिवत प्रस्तुत माना जाएगा।

232.                    न्यायालय द्वारा विचारणीय हो तो मामले को सेशन न्यायालय को सौंपना - जब पुलिस रिपोर्ट पर या अन्यथा संस्थित किसी मामले में अभियुक्त मजिस्ट्रेट के समक्ष उपस्थित होता है या लाया जाता है और मजिस्ट्रेट को यह प्रतीत होता है कि अपराध अनन्यतः सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय है तो वह -

(a)              धारा 230 या धारा 231 के उपबंधों का अनुपालन करने के पश्चात् मामले को सत्र न्यायालय को सौंपना, तथा जमानत से संबंधित इस संहिता के उपबंधों के अधीन रहते हुए, अभियुक्त को ऐसी प्रतिबद्धता होने तक हिरासत में भेजना;

(b)              जमानत से संबंधित इस संहिता के प्रावधानों के अधीन, अभियुक्त को मुकदमे के दौरान और उसके समापन तक हिरासत में भेजना;

(c)              उस न्यायालय को मामले का अभिलेख तथा दस्तावेज और वस्तुएं, यदि कोई हों, जो साक्ष्य में पेश किए जाने हैं, भेजना;

(d)              मामले को सत्र न्यायालय को सौंपे जाने की सूचना लोक अभियोजक को देना:

परंतु इस धारा के अधीन कार्यवाही संज्ञान लेने की तारीख से नब्बे दिन की अवधि के भीतर पूरी की जाएगी और ऐसी अवधि को मजिस्ट्रेट द्वारा लिखित रूप में अभिलिखित किए जाने वाले कारणों से एक सौ अस्सी दिन से अनधिक अवधि के लिए बढ़ाया जा सकेगा:

आगे यह भी प्रावधान है कि सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय किसी मामले में अभियुक्त या पीड़ित या ऐसे व्यक्ति द्वारा प्राधिकृत किसी व्यक्ति द्वारा मजिस्ट्रेट के समक्ष दायर कोई आवेदन, मामले की सुपुर्दगी के साथ सेशन न्यायालय को अग्रेषित किया जाएगा।

233.                    अपराध के संबंध में शिकायत का मामला और पुलिस जांच हो तो अपनाई जाने वाली प्रक्रिया ।- ( 1 ) जब पुलिस रिपोर्ट के अलावा किसी अन्य आधार पर संस्थित कोई मामला (जिसे इसमें आगे शिकायत का मामला कहा गया है) मजिस्ट्रेट के समक्ष, जांच या विचारण के दौरान प्रस्तुत किया जाता है, तो यह मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है कि वह मामला पुलिस जांच के दौरान संस्थित किया गया है।

उसे यह ज्ञात हो कि उस अपराध के संबंध में पुलिस द्वारा जांच चल रही है जो उसके द्वारा की जा रही जांच या विचारण का विषय-वस्तु है, तो मजिस्ट्रेट ऐसी जांच या विचारण की कार्यवाही पर रोक लगा देगा और जांच करने वाले पुलिस अधिकारी से मामले पर रिपोर्ट मांगेगा।

(2)    यदि जांच करने वाले पुलिस अधिकारी द्वारा धारा 193 के अधीन कोई रिपोर्ट की जाती है और ऐसी रिपोर्ट के आधार पर मजिस्ट्रेट द्वारा किसी ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध किसी अपराध का संज्ञान लिया जाता है, जो शिकायत मामले में अभियुक्त है, तो मजिस्ट्रेट शिकायत मामले और पुलिस रिपोर्ट से उत्पन्न मामले की एक साथ जांच या विचारण करेगा, मानो दोनों मामले पुलिस रिपोर्ट पर संस्थित किए गए हों।

(3)    यदि पुलिस रिपोर्ट शिकायत मामले में किसी अभियुक्त से संबंधित नहीं है या यदि मजिस्ट्रेट पुलिस रिपोर्ट पर किसी अपराध का संज्ञान नहीं लेता है, तो वह इस संहिता के प्रावधानों के अनुसार, जांच या परीक्षण, जिस पर उसने रोक लगा दी थी, को आगे बढ़ाएगा।

Cookie Consent
Ras Desk serve cookies on this site to analyze traffic, remember your preferences, and optimize your experience.
Oops!
It seems there is something wrong with your internet connection. Please connect to the internet and start browsing again.
AdBlock Detected!
We have detected that you are using adblocking plugin in your browser.
The revenue we earn by the advertisements is used to manage this website, we request you to whitelist our website in your adblocking plugin.
Site is Blocked
Sorry! This site is not available in your country.
Do you have any doubts? chat with us on WhatsApp
Hello, How can I help you? ...
Click me to start the chat...