अध्याय 20
वारंट मामलों की मजिस्ट्रेट द्वारा
सुनवाई
ए. — पुलिस रिपोर्ट पर दर्ज मामले
244.
धारा 230 का अनुपालन - जब पुलिस रिपोर्ट पर
संस्थित किसी वारंट मामले में अभियुक्त विचारण के प्रारंभ में मजिस्ट्रेट के समक्ष
उपस्थित होता है या लाया जाता है, तब मजिस्ट्रेट अपना समाधान करेगा कि उसने धारा
230 के उपबंधों का अनुपालन किया है।
245.
अभियुक्त को कब उन्मोचित किया जाएगा .-- ( 1 ) अभियुक्त धारा 230 के अधीन दस्तावेजों
की प्रतियां दिए जाने की तारीख से साठ दिन की अवधि के भीतर उन्मोचित किए जाने के
लिए आवेदन कर सकेगा।
( 2 )
यदि पुलिस रिपोर्ट और धारा 193 के अधीन उसके साथ भेजे गए दस्तावेजों पर विचार करने
के पश्चात तथा अभियुक्त की, यदि कोई हो, शारीरिक रूप से या दृश्य-श्रव्य
इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से ऐसी परीक्षा करने के पश्चात, जैसा मजिस्ट्रेट आवश्यक समझे
और अभियोजन पक्ष तथा अभियुक्त को सुनवाई का अवसर देने के पश्चात, मजिस्ट्रेट
अभियुक्त के विरुद्ध आरोप को निराधार समझता है, तो वह अभियुक्त को उन्मोचित कर
देगा और ऐसा करने के अपने कारणों को लेखबद्ध करेगा।
246.
आरोप विरचित करना ।--( 1 ) यदि ऐसे विचार-विमर्श, परीक्षा, यदि कोई हो, और सुनवाई के बाद
मजिस्ट्रेट की यह राय है कि यह उपधारणा करने का आधार है कि अभियुक्त ने इस अध्याय
के अधीन विचारणीय कोई अपराध किया है, जिसका विचारण करने के लिए ऐसा मजिस्ट्रेट
सक्षम है और जिसे उसकी राय में उसके द्वारा पर्याप्त रूप से दंडित किया जा सकता
है, तो वह आरोप पर प्रथम सुनवाई की तारीख से साठ दिन की अवधि के भीतर अभियुक्त के
विरुद्ध लिखित रूप में आरोप विरचित करेगा।
( 2 )
इसके बाद आरोप को अभियुक्त को पढ़कर सुनाया जाएगा और समझाया जाएगा, तथा उससे पूछा
जाएगा कि क्या वह आरोपित अपराध के लिए दोषी है या मुकदमा चलाए जाने का दावा करता
है।
247.
दोषी होने की दलील पर दोषसिद्धि .— यदि अभियुक्त अपना दोष स्वीकार कर लेता
है तो मजिस्ट्रेट उसकी दलील को रिकार्ड करेगा और अपने विवेकानुसार उसे दोषी ठहरा
सकता है।
248.
अभियोजन के लिए साक्ष्य .-- ( 1 ) यदि अभियुक्त अभिवचन करने से इंकार कर
देता है या अभिवचन नहीं करता है, या विचारण किए जाने का दावा करता है या
मजिस्ट्रेट अभियुक्त को धारा 264 के अधीन दोषसिद्ध नहीं करता है, तो मजिस्ट्रेट
साक्षियों की परीक्षा के लिए तारीख नियत करेगा:
बशर्ते कि मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा जांच के
दौरान दर्ज किए गए गवाहों के बयान अभियुक्त को अग्रिम रूप से उपलब्ध कराएगा।
(2) मजिस्ट्रेट अभियोजन पक्ष के आवेदन पर उसके किसी भी साक्षी को सम्मन जारी
कर उसे उपस्थित होने या कोई दस्तावेज या अन्य चीज पेश करने का निर्देश दे सकता है।
(3) इस प्रकार नियत तिथि को मजिस्ट्रेट अभियोजन पक्ष के समर्थन में प्रस्तुत
किए गए समस्त साक्ष्य लेने के लिए आगे बढ़ेगा:
परन्तु मजिस्ट्रेट किसी साक्षी की जिरह को तब
तक स्थगित करने की अनुमति दे सकेगा जब तक कि किसी अन्य साक्षी या साक्षियों की
परीक्षा न हो जाए या किसी साक्षी को आगे की जिरह के लिए वापस बुला सकेगा:
परंतु यह और कि इस उपधारा के अधीन किसी साक्षी
की परीक्षा राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित किए जाने वाले निर्दिष्ट स्थान पर
श्रव्य-दृश्य इलेक्ट्रॉनिक साधन द्वारा की जा सकेगी।
249.
बचाव के लिए साक्ष्य .-- ( 1 ) तब अभियुक्त को अपना बचाव प्रस्तुत करने और अपना साक्ष्य प्रस्तुत
करने के लिए कहा जाएगा; और यदि अभियुक्त कोई लिखित कथन देता है तो मजिस्ट्रेट उसे
अभिलेख में दाखिल करेगा।
(2) यदि अभियुक्त, अपनी प्रतिरक्षा आरंभ करने के पश्चात्, किसी साक्षी को
परीक्षा या प्रतिपरीक्षा के प्रयोजन के लिए, या कोई दस्तावेज या अन्य चीज पेश करने
के लिए उपस्थित होने के लिए बाध्य करने हेतु कोई आदेशिका जारी करने के लिए
मजिस्ट्रेट को आवेदन करता है, तो मजिस्ट्रेट ऐसा आदेशिका जारी करेगा, जब तक कि वह
यह न समझे कि ऐसे आवेदन को इस आधार पर अस्वीकार कर दिया जाना चाहिए कि वह तंग करने
या विलंब करने या न्याय के उद्देश्यों को विफल करने के प्रयोजन से किया गया है और
ऐसा आधार उसके द्वारा लिखित रूप में अभिलिखित किया जाएगा:
परन्तु जब अभियुक्त ने अपना बचाव प्रारम्भ करने
से पूर्व किसी साक्षी से प्रतिपरीक्षा कर ली है या उसे प्रतिपरीक्षा करने का अवसर
मिल चुका है, तब ऐसे साक्षी को इस धारा के अधीन उपस्थित होने के लिए बाध्य नहीं
किया जाएगा, जब तक कि मजिस्ट्रेट का यह समाधान न हो जाए कि न्याय के उद्देश्यों के
लिए ऐसा करना आवश्यक है:
परंतु यह और कि इस उपधारा के अधीन किसी साक्षी
की परीक्षा राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित किए जाने वाले निर्दिष्ट स्थान पर
श्रव्य-दृश्य इलेक्ट्रॉनिक साधन द्वारा की जा सकेगी।
(3) मजिस्ट्रेट, उपधारा ( 2 ) के
अधीन आवेदन पर किसी साक्षी को बुलाने से पूर्व, यह अपेक्षा कर सकेगा कि विचारण के
प्रयोजनों के लिए उपस्थित होने में साक्षी द्वारा उपगत उचित व्यय न्यायालय में जमा
किया जाए।
बी. - पुलिस रिपोर्ट के अलावा अन्य
आधार पर शुरू किए गए मामले
250.
अभियोजन के लिए साक्ष्य .-- ( 1 ) जब पुलिस रिपोर्ट के अलावा किसी अन्य
आधार पर संस्थित किसी वारंट मामले में अभियुक्त मजिस्ट्रेट के समक्ष उपस्थित होता
है या लाया जाता है, तब मजिस्ट्रेट अभियोजन की सुनवाई करेगा और अभियोजन के समर्थन
में प्रस्तुत किए जाने वाले सभी साक्ष्य लेगा।
( 2 )
मजिस्ट्रेट अभियोजन पक्ष के आवेदन पर उसके किसी भी साक्षी को सम्मन जारी कर सकेगा
जिसमें उसे उपस्थित होने या कोई दस्तावेज या अन्य चीज पेश करने का निर्देश दिया
जाएगा।
251.
अभियुक्त कब उन्मोचित किया जाएगा .-- ( 1 ) यदि धारा 267 में निर्दिष्ट समस्त
साक्ष्य लेने पर मजिस्ट्रेट, लेखबद्ध किए जाने वाले कारणों से, यह समझता है कि
अभियुक्त के विरुद्ध कोई ऐसा मामला नहीं बनाया गया है, जिसका खंडन न किए जाने पर
उसे दोषसिद्ध किया जा सके, तो मजिस्ट्रेट उसे उन्मोचित कर देगा।
( 2 )
इस धारा की कोई बात किसी मजिस्ट्रेट को मामले के किसी पूर्वतर प्रक्रम पर अभियुक्त
को उन्मोचित करने से रोकने वाली नहीं समझी जाएगी, यदि मजिस्ट्रेट द्वारा लेखबद्ध
किए जाने वाले कारणों से वह आरोप को निराधार समझता है।
252.
जहां अभियुक्त उन्मोचित नहीं किया जाता वहां प्रक्रिया - ( 1 ) यदि, जब ऐसा साक्ष्य
ले लिया गया हो, या मामले के किसी पूर्वतर प्रक्रम पर, मजिस्ट्रेट की यह राय है कि
यह उपधारणा करने का आधार है कि अभियुक्त ने इस अध्याय के अधीन विचारणीय कोई अपराध
किया है, जिसका विचारण करने के लिए ऐसा मजिस्ट्रेट सक्षम है और जिसे उसकी राय में
वह पर्याप्त रूप से दंडित कर सकता है, तो वह अभियुक्त के विरुद्ध आरोप लिखित रूप
में विरचित करेगा।
(2) इसके बाद आरोप को अभियुक्त को पढ़कर सुनाया जाएगा और समझाया जाएगा, तथा
उससे पूछा जाएगा कि क्या वह दोषी है या उसके पास बचाव के लिए कोई तर्क है।
(3) यदि अभियुक्त अपना दोष स्वीकार कर लेता है तो मजिस्ट्रेट उसकी दलील को
रिकार्ड करेगा और अपने विवेकानुसार उसे दोषी ठहरा सकता है।
(4) यदि अभियुक्त अभिवचन करने से इंकार करता है या अभिवचन नहीं करता है या
विचारण किए जाने का दावा करता है या यदि अभियुक्त उपधारा ( 3 ) के अधीन दोषसिद्ध नहीं होता है तो उससे यह अपेक्षित होगा कि वह
मामले की अगली सुनवाई के प्रारम्भ में या यदि मजिस्ट्रेट, लेखबद्ध किए जाने वाले
कारणों से ऐसा ठीक समझे तो तुरन्त बताए कि क्या वह अभियोजन पक्ष के उन साक्षियों
में से किसी से जिरह करना चाहता है, और यदि हां तो किनसे, जिनका साक्ष्य लिया जा
चुका है।
(5) यदि वह कहता है कि वह ऐसा चाहता है, तो उसके द्वारा नामित साक्षियों को
वापस बुलाया जाएगा और जिरह तथा पुनः परीक्षा (यदि कोई हो) के पश्चात उन्हें
उन्मोचित कर दिया जाएगा।
(6) इसके बाद अभियोजन पक्ष के शेष बचे गवाहों का साक्ष्य लिया जाएगा और जिरह
तथा पुनःपरीक्षा (यदि कोई हो) के बाद उन्हें भी उन्मोचित कर दिया जाएगा।
(7) जहां अभियोजन पक्ष को अवसर देने और इस संहिता के अधीन सभी युक्तियुक्त
उपाय करने के बाद भी, यदि उपधारा ( 5 )
और ( 6 ) के अधीन अभियोजन पक्ष के
साक्षियों की उपस्थिति प्रतिपरीक्षा के लिए सुनिश्चित नहीं की जा सकती है, तो यह
समझा जाएगा कि ऐसे साक्षी की उपस्थिति न होने के कारण परीक्षा नहीं की गई है, और
मजिस्ट्रेट लिखित रूप में अभिलिखित किए जाने वाले कारणों से अभियोजन साक्ष्य को
बंद कर सकता है और अभिलेख पर उपलब्ध सामग्री के आधार पर मामले को आगे बढ़ा सकता
है।
253.
बचाव के लिए साक्ष्य - तब अभियुक्त को अपना बचाव
प्रस्तुत करने और अपना साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिए कहा जाएगा; और धारा 266 के
उपबंध मामले पर लागू होंगे।
सी. - मुकदमे का निष्कर्ष
254.
दोषमुक्ति या दोषसिद्धि .-- ( 1 ) यदि इस अध्याय के अधीन किसी मामले
में, जिसमें आरोप विरचित किया जा चुका है, मजिस्ट्रेट अभियुक्त को दोषी नहीं पाता
है तो वह दोषमुक्ति का आदेश अभिलिखित करेगा।
(2) जहां इस अध्याय के अधीन किसी मामले में मजिस्ट्रेट अभियुक्त को दोषी पाता
है, किन्तु धारा 364 या धारा 401 के उपबंधों के अनुसार कार्यवाही नहीं करता है,
वहां वह दण्ड के प्रश्न पर अभियुक्त को सुनने के पश्चात् विधि के अनुसार उस पर
दण्डादेश पारित करेगा।
(3) 7 ) के
उपबंधों के अधीन पूर्व दोषसिद्धि आरोपित की जाती है और अभियुक्त यह स्वीकार नहीं
करता है कि उसे आरोप में अभिकथित अनुसार पहले भी दोषसिद्ध किया जा चुका है, वहां
मजिस्ट्रेट उक्त अभियुक्त को दोषसिद्ध करने के पश्चात् अभिकथित पूर्व दोषसिद्धि के
संबंध में साक्ष्य ले सकेगा और उस पर निष्कर्ष अभिलिखित करेगा:
परन्तु ऐसा कोई आरोप मजिस्ट्रेट द्वारा न तो
पढ़ा जाएगा और न ही अभियुक्त को उस पर बहस करने के लिए कहा जाएगा और न ही अभियोजन
पक्ष या उसके द्वारा प्रस्तुत किसी साक्ष्य में पूर्व दोषसिद्धि का उल्लेख किया
जाएगा, जब तक कि अभियुक्त को उपधारा ( 2 )
के अधीन दोषसिद्ध न कर दिया गया हो।
255.
शिकायतकर्ता की अनुपस्थिति - जब कार्यवाही
शिकायत पर संस्थित की गई हो और मामले की सुनवाई के लिए नियत किसी दिन, शिकायतकर्ता
अनुपस्थित हो और अपराध का विधिपूर्वक शमन किया जा सकता हो या वह संज्ञेय अपराध न
हो, तो मजिस्ट्रेट शिकायतकर्ता को उपस्थित होने के लिए तीस दिन का समय देने के
पश्चात, अपने विवेकानुसार, इसमें इसके पूर्व किसी बात के होते हुए भी, आरोप विरचित
किए जाने के पूर्व किसी भी समय अभियुक्त को उन्मोचित कर सकेगा।
256.
युक्तियुक्त कारण के बिना अभियोग के लिए प्रतिकर ।-( 1 ) यदि किसी मामले में,
जो किसी पुलिस अधिकारी या मजिस्ट्रेट को शिकायत या सूचना दिए जाने पर संस्थित किया
गया है, एक या एक से अधिक व्यक्ति मजिस्ट्रेट के समक्ष किसी ऐसे अपराध के लिए
अभियुक्त हैं, जो मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है, और वह मजिस्ट्रेट, जिसके द्वारा
मामले की सुनवाई की जा रही है, सभी या किसी अभियुक्त को उन्मोचित या दोषमुक्त कर
देता है, और उसकी राय है कि उनके या उनमें से किसी के विरुद्ध अभियोग लगाने के लिए
कोई युक्तियुक्त आधार नहीं था, तो मजिस्ट्रेट उन्मोचित या दोषमुक्ति के अपने आदेश
द्वारा, यदि वह व्यक्ति, जिसके शिकायत या सूचना पर अभियोग लगाया गया था, उपस्थित
है, उससे तुरन्त कारण दर्शित करने की मांग कर सकता है कि वह ऐसे अभियुक्त को या जब
अभियुक्त एक से अधिक हों, तो प्रत्येक या उनमें से किसी को प्रतिकर क्यों न दे; या
यदि ऐसा व्यक्ति उपस्थित नहीं है, तो उसे उपस्थित होने और पूर्वोक्त कारण दर्शित
करने के लिए समन जारी करने का निर्देश दे सकता है।
(2) मजिस्ट्रेट ऐसे किसी कारण को अभिलिखित करेगा और उस पर विचार करेगा जिसे
ऐसा शिकायतकर्ता या सूचनाकर्ता दर्शाए, और यदि उसका समाधान हो जाता है कि आरोप
लगाने के लिए कोई युक्तियुक्त आधार नहीं था, तो वह ऐसे कारणों को अभिलिखित करके
आदेश दे सकेगा कि वह जुर्माने की उस रकम से अधिक नहीं, जिसे अधिरोपित करने के लिए
वह सशक्त है, ऐसी रकम का प्रतिकर, जैसा वह अवधारित करे, ऐसे शिकायतकर्ता या
सूचनाकर्ता द्वारा अभियुक्त को या उनमें से प्रत्येक को या उनमें से किसी को दिया
जाए।
(3) मजिस्ट्रेट उपधारा ( 2 ) के
अधीन प्रतिकर के संदाय का निदेश देने वाले आदेश द्वारा यह भी आदेश दे सकेगा कि
संदाय न करने पर, जिस व्यक्ति को ऐसा प्रतिकर देने का आदेश दिया गया है, वह तीस
दिन से अधिक की अवधि के लिए सादा कारावास भोगेगा।
(4) जब कोई व्यक्ति उपधारा ( 3 ) के
अधीन कारावासित होता है, तो भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 8 की उपधारा ( 6 ) के उपबंध , जहां तक हो सके, लागू
होंगे।
(5) कोई भी व्यक्ति जिसे इस धारा के अधीन प्रतिकर देने का निर्देश दिया गया
है, ऐसे आदेश के कारण, उसके द्वारा की गई शिकायत या दी गई सूचना के संबंध में किसी
सिविल या आपराधिक दायित्व से छूट नहीं दी जाएगी:
परन्तु इस धारा के अधीन किसी अभियुक्त व्यक्ति
को दी गई कोई रकम उसी मामले से संबंधित किसी पश्चातवर्ती सिविल वाद में ऐसे
व्यक्ति को प्रतिकर अधिनिर्णीत करने में ध्यान में ली जाएगी।
(6) कोई परिवादी या सूचक, जिसे द्वितीय श्रेणी मजिस्ट्रेट द्वारा उपधारा ( 2 ) के अधीन दो हजार रुपए से अधिक प्रतिकर
देने का आदेश दिया गया है, उस आदेश के विरुद्ध अपील कर सकेगा, मानो ऐसा परिवादी या
सूचक ऐसे मजिस्ट्रेट द्वारा चलाए गए विचारण में दोषसिद्ध किया गया हो।
(7) जब किसी अभियुक्त व्यक्ति को प्रतिकर के संदाय के लिए कोई आदेश ऐसे मामले
में किया जाता है, जो उपधारा ( 6 ) के
अधीन अपील के अधीन है, तब प्रतिकर उसे अपील के प्रस्तुत किए जाने के लिए अनुज्ञात
अवधि बीत जाने के पूर्व या यदि अपील प्रस्तुत की जाती है, तो अपील के विनिश्चय के
पूर्व नहीं दिया जाएगा; और जहां ऐसा आदेश ऐसे मामले में किया जाता है, जो इस
प्रकार अपील के अधीन नहीं है, वहां प्रतिकर आदेश की तारीख से एक मास की समाप्ति के
पूर्व नहीं दिया जाएगा।