अध्याय 24
कारागारों में परिरुद्ध या निरुद्ध व्यक्तियों की देखभाल
301. परिभाषाएं - इस अध्याय में , -
(a) “निरुद्ध” में निवारक निरोध का उपबंध करने वाली किसी विधि के अधीन निरुद्ध व्यक्ति सम्मिलित है; ( ख ) “कारागार” में सम्मिलित है,—
(i) कोई स्थान जिसे राज्य सरकार ने सामान्य या विशेष आदेश द्वारा सहायक जेल घोषित किया हो;
(ii) कोई सुधार गृह, बोर्स्टल संस्था या इसी प्रकार की अन्य संस्था।
कैदियों को हाजिर कराने की शक्ति ।-- ( 1 ) जब कभी इस संहिता के अधीन किसी जांच, विचारण या कार्यवाही के दौरान दंड न्यायालय को यह प्रतीत हो कि,-
(a) किसी कारागार में निरुद्ध या बंद व्यक्ति को किसी अपराध के आरोप का उत्तर देने के लिए या उसके विरुद्ध किसी कार्यवाही के प्रयोजनार्थ न्यायालय के समक्ष लाया जाना चाहिए; या
(b) न्याय के उद्देश्यों के लिए ऐसे व्यक्ति की साक्षी के रूप में परीक्षा करना आवश्यक है, वहां न्यायालय कारागार के भारसाधक अधिकारी से यह अपेक्षा करते हुए आदेश दे सकेगा कि वह ऐसे व्यक्ति को आरोप का उत्तर देने के लिए या ऐसी कार्यवाही के प्रयोजन के लिए या साक्ष्य देने के लिए न्यायालय के समक्ष पेश करे।
(2) जहां उपधारा ( 1 ) के अधीन कोई आदेश द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट द्वारा किया जाता है, वहां उसे कारागार के भारसाधक अधिकारी को तब तक नहीं भेजा जाएगा या उसके द्वारा उस पर कार्रवाई नहीं की जाएगी जब तक कि वह मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा, जिसके अधीनस्थ वह मजिस्ट्रेट है, प्रतिहस्ताक्षरित न कर दिया जाए।
(3) उपधारा ( 2 ) के अधीन प्रतिहस्ताक्षर के लिए प्रस्तुत प्रत्येक आदेश के साथ उन तथ्यों का कथन होगा जो मजिस्ट्रेट की राय में आदेश को आवश्यक बनाते हैं और मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, जिसके समक्ष आदेश प्रस्तुत किया गया है, ऐसे कथन पर विचार करने के पश्चात् आदेश पर प्रतिहस्ताक्षर करने से इंकार कर सकेगा।
303. धारा 302 के प्रवर्तन से कुछ व्यक्तियों को अपवर्जित करने की राज्य सरकार या केन्द्रीय सरकार की शक्ति ।--( 1 ) यथास्थिति, राज्य सरकार या केन्द्रीय सरकार किसी भी समय उपधारा (2) में विनिर्दिष्ट विषयों को ध्यान में रखते हुए साधारण या विशेष आदेश द्वारा निदेश दे सकेगी कि किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के वर्ग को उस कारागार से नहीं हटाया जाएगा जिसमें वह परिरुद्ध या निरुद्ध है और तत्पश्चात्, जब तक वह आदेश प्रवृत्त रहता है, तब तक धारा 302 के अधीन किया गया कोई आदेश, चाहे वह राज्य सरकार या केन्द्रीय सरकार के आदेश के पूर्व हो या बाद में, ऐसे व्यक्ति या व्यक्तियों के वर्ग के संबंध में प्रभावी नहीं होगा।
( 2 ) उपधारा ( 1 ) के अधीन कोई आदेश करने से पूर्व, राज्य सरकार या केन्द्रीय सरकार, अपनी केन्द्रीय एजेंसी द्वारा संस्थित मामलों में, जैसी भी स्थिति हो, निम्नलिखित विषयों पर ध्यान देगी, अर्थात्:-
(a) अपराध की प्रकृति जिसके लिए, या जिन आधारों पर, व्यक्ति या व्यक्तियों के वर्ग को जेल में बंद या निरुद्ध करने का आदेश दिया गया है;
(b) यदि व्यक्ति या व्यक्तियों के वर्ग को जेल से निकालने की अनुमति दी जाती है तो सार्वजनिक व्यवस्था में गड़बड़ी की संभावना;
(c) आम तौर पर सार्वजनिक हित.
304. कारागार के भारसाधक अधिकारी का कुछ आकस्मिकताओं में आदेश का पालन करने से विरत रहना ।- जहां वह व्यक्ति जिसके संबंध में धारा 302 के अधीन आदेश दिया गया है-
(a) बीमारी या अशक्तता के कारण जेल से निकाले जाने के अयोग्य है; या
(b) परीक्षण हेतु सुपुर्दगी में है या परीक्षण लंबित रहने तक या प्रारंभिक जांच लंबित रहने तक रिमांड पर है; या
(c) वह उस अवधि के लिए हिरासत में है जो आदेश का अनुपालन करने और उसे उस जेल में वापस ले जाने के लिए अपेक्षित समय की समाप्ति से पहले समाप्त हो जाएगी जिसमें वह परिरुद्ध या निरुद्ध है; या
(d) वह व्यक्ति है जिस पर राज्य सरकार या केन्द्र सरकार द्वारा धारा 303 के अधीन किया गया आदेश लागू होता है,
जेल का प्रभारी अधिकारी न्यायालय के आदेश का पालन करने से विरत रहेगा तथा ऐसा विरत रहने के कारणों का विवरण न्यायालय को भेजेगा:
परन्तु जहां ऐसे व्यक्ति की उपस्थिति कारागार से पच्चीस किलोमीटर से अधिक दूरी पर स्थित स्थान पर साक्ष्य देने के लिए अपेक्षित है, वहां कारागार का भारसाधक अधिकारी खंड ( ख ) में उल्लिखित कारण से ऐसा करने से विरत नहीं रहेगा।
305. कैदी को अभिरक्षा में न्यायालय में लाया जाना । धारा 304 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, कारागार का भारसाधक अधिकारी, धारा 302 की उपधारा ( 1 ) के अधीन किए गए आदेश के वितरित होने पर और जहां आवश्यक हो, उसकी उपधारा ( 2 ) के अधीन सम्यक् रूप से प्रतिहस्ताक्षरित होने पर, आदेश में नामित व्यक्ति को उस न्यायालय में ले जाएगा जिसमें उसकी उपस्थिति अपेक्षित है, ताकि वह आदेश में उल्लिखित समय पर वहां उपस्थित हो सके, और उसे न्यायालय में या उसके निकट तब तक अभिरक्षा में रखेगा जब तक उसकी परीक्षा न हो जाए या जब तक न्यायालय उसे उस कारागार में वापस ले जाने के लिए प्राधिकृत न कर दे जिसमें वह परिरुद्ध या निरुद्ध था।
306. कारागार में साक्षी की परीक्षा के लिए कमीशन जारी करने की शक्ति - इस अध्याय के उपबंध, कारागार में परिरुद्ध या निरुद्ध किसी व्यक्ति की, साक्षी के रूप में, परीक्षा के लिए, धारा 319 के अधीन कमीशन जारी करने की न्यायालय की शक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना होंगे; और अध्याय 25 के भाग ख के उपबंध कारागार में ऐसे किसी व्यक्ति की कमीशन पर परीक्षा के संबंध में उसी प्रकार लागू होंगे, जैसे वे किसी अन्य व्यक्ति की कमीशन पर परीक्षा के संबंध में लागू होते हैं।