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अध्याय 28

 अध्याय 28

न्याय प्रशासन को प्रभावित करने वाले अपराधों के संबंध में प्रावधान 

379. धारा 215 में वर्णित मामलों में प्रक्रिया ।--( 1 ) जब इस निमित्त या अन्यथा उससे किए गए आवेदन पर किसी न्यायालय की यह राय है कि न्याय के हित में यह समीचीन है कि धारा 215 की उपधारा ( 1 ) के खंड ( ख ) में निर्दिष्ट किसी अपराध की जांच की जाए, जो उस न्यायालय में किसी कार्यवाही में या उसके संबंध में या, जैसी भी स्थिति हो, उस न्यायालय में किसी कार्यवाही में पेश किए गए या साक्ष्य में दिए गए दस्तावेज के संबंध में किया गया प्रतीत होता है, तो ऐसा न्यायालय ऐसी प्रारंभिक जांच के पश्चात्, यदि कोई हो, जैसी वह आवश्यक समझे,-

(a) इस आशय का निष्कर्ष दर्ज करें;

(b) इसकी लिखित शिकायत करें;

(c) अधिकारिता रखने वाले प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट के पास भेजें ;

(d) ऐसे मजिस्ट्रेट के समक्ष अभियुक्त की उपस्थिति के लिए पर्याप्त प्रतिभूति ले सकेगा, या यदि अभिकथित अपराध अजमानतीय है और न्यायालय ऐसा करना आवश्यक समझे, तो अभियुक्त को ऐसे मजिस्ट्रेट के पास अभिरक्षा में भेज सकेगा; तथा

(e) किसी व्यक्ति को ऐसे मजिस्ट्रेट के समक्ष उपस्थित होने और साक्ष्य देने के लिए बाध्य नहीं कर सकेगा।

(2) उपधारा ( 1 ) द्वारा न्यायालय को प्रदत्त शक्ति का प्रयोग, किसी ऐसे मामले में, जहां उस न्यायालय ने उस अपराध के संबंध में उपधारा ( 1 ) के अधीन न तो कोई शिकायत की है और न ही ऐसी शिकायत करने के लिए आवेदन को अस्वीकृत किया है, उस न्यायालय द्वारा किया जा सकेगा, जिसके अधीन ऐसा पूर्ववर्ती न्यायालय धारा 215 की उपधारा ( 4 ) के अर्थ में अधीनस्थ है।

(3) इस धारा के अधीन की गई शिकायत पर हस्ताक्षर किए जाएंगे,— 

(a) जहां परिवाद करने वाला न्यायालय उच्च न्यायालय है, वहां न्यायालय के ऐसे अधिकारी द्वारा, जिसे न्यायालय नियुक्त करे;

(b) किसी अन्य मामले में, न्यायालय के पीठासीन अधिकारी द्वारा या न्यायालय के ऐसे अधिकारी द्वारा, जिसे न्यायालय इस संबंध में लिखित रूप में प्राधिकृत करे।

(4) इस धारा में, “न्यायालय” का वही अर्थ है जो धारा 215 में है।

380. अपील।-- ( 1 ) कोई व्यक्ति जिसके आवेदन पर उच्च न्यायालय के अलावा किसी अन्य न्यायालय ने धारा 379 की उपधारा ( 1 ) या उपधारा ( 2 ) के अधीन शिकायत करने से इनकार कर दिया है, या जिसके विरुद्ध ऐसी शिकायत ऐसे न्यायालय द्वारा की गई है, उस न्यायालय में अपील कर सकेगा जिसके अधीन ऐसा पूर्ववर्ती न्यायालय धारा 215 की उपधारा ( 4 ) के अर्थ में अधीनस्थ है, और तत्पश्चात् उच्च न्यायालय संबंधित पक्षकारों को नोटिस देने के पश्चात्, यथास्थिति, शिकायत वापस लेने का, या ऐसी शिकायत करने का निर्देश दे सकेगा जो ऐसा पूर्ववर्ती न्यायालय धारा 379 के अधीन कर सकता था, और यदि वह ऐसी शिकायत करता है तो उस धारा के उपबंध तदनुसार लागू होंगे।

( 2 ) इस धारा के अधीन आदेश और ऐसे किसी आदेश के अधीन रहते हुए धारा 379 के अधीन आदेश अंतिम होगा और संशोधन के अधीन नहीं होगा।

381. खर्चे के बारे में आदेश देने की शक्ति - धारा 379 के अधीन शिकायत या धारा 380 के अधीन अपील फाइल करने के लिए उसके समक्ष किए गए आवेदन पर विचार करते समय न्यायालय को खर्चे के बारे में ऐसा आदेश देने की शक्ति होगी, जो न्यायसंगत हो।

382. संज्ञान लेने की प्रक्रिया .-- ( 1 ) वह मजिस्ट्रेट, जिसके समक्ष धारा 379 या धारा 380 के अधीन कोई शिकायत की जाती है, अध्याय 16 में किसी बात के होते हुए भी, जहां तक हो सके, मामले से इस प्रकार निपटेगा मानो वह पुलिस रिपोर्ट पर संस्थित किया गया हो।

( 2 ) जहां ऐसे मजिस्ट्रेट या किसी अन्य मजिस्ट्रेट के, जिसे मामला अंतरित किया गया हो, ध्यान में लाया जाता है कि उस न्यायिक कार्यवाही में, जिससे मामला उत्पन्न हुआ है, निकाले गए निर्णय के विरुद्ध अपील लंबित है, वहां वह, यदि वह ठीक समझे, किसी भी प्रक्रम पर मामले की सुनवाई तब तक के लिए स्थगित कर सकता है जब तक कि ऐसी अपील का निर्णय न हो जाए।

383. मिथ्या साक्ष्य देने के लिए विचारण की संक्षिप्त प्रक्रिया।-- ( 1 ) यदि कोई सेशन न्यायालय या प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट किसी न्यायिक कार्यवाही को निपटाने वाले किसी निर्णय या अंतिम आदेश के सुनाए जाने के समय इस आशय की राय व्यक्त करता है कि ऐसी कार्यवाही में उपस्थित किसी साक्षी ने जानबूझकर या स्वेच्छा से मिथ्या साक्ष्य दिया है या इस आशय से मिथ्या साक्ष्य गढ़ा है कि ऐसा साक्ष्य ऐसी कार्यवाही में उपयोग किया जाए, तो यदि उसका समाधान हो जाता है कि न्याय के हित में यह आवश्यक और समीचीन है कि साक्षी का, यथास्थिति, मिथ्या साक्ष्य देने या गढ़ने के लिए संक्षिप्त विचारण किया जाना चाहिए, तो वह अपराध का संज्ञान ले सकता है और अपराधी को यह कारण बताने का उचित अवसर देने के पश्चात कि उसे ऐसे अपराध के लिए क्यों न दंडित किया जाए, ऐसे अपराधी का संक्षिप्त विचारण कर सकता है और उसे तीन मास तक के कारावास या एक हजार रुपए तक के जुर्माने या दोनों से दण्डित कर सकता है।

(2) ऐसे प्रत्येक मामले में न्यायालय, यथासंभव संक्षिप्त सुनवाई के लिए निर्धारित प्रक्रिया का पालन करेगा।

(3) इस धारा की कोई बात न्यायालय की धारा 379 के अधीन अपराध के लिए शिकायत करने की शक्ति पर प्रभाव नहीं डालेगी, जहां वह इस धारा के अधीन कार्यवाही करने का विकल्प नहीं चुनता है।

(4) जहां उपधारा ( 1 ) के अधीन कोई कार्रवाई आरंभ किए जाने के पश्चात्, सेशन न्यायालय या प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट को यह प्रतीत होता है कि उस निर्णय या आदेश के विरुद्ध, जिसमें उस उपधारा में निर्दिष्ट राय व्यक्त की गई है, अपील या पुनरीक्षण के लिए आवेदन प्रस्तुत किया गया है या फाइल किया गया है, वहां वह अपील या पुनरीक्षण के लिए आवेदन के निपटारे तक, यथास्थिति, विचारण की आगे की कार्यवाहियों को रोक देगा और तदुपरि विचारण की आगे की कार्यवाहियां अपील या पुनरीक्षण के लिए आवेदन के परिणामों के अनुसार होंगी।

अवमानना के कुछ मामलों में प्रक्रिया । - ( 1 ) जब भारतीय न्याय अधिनियम, 1950 की धारा 210, धारा 213, धारा 214, धारा 215 या धारा 267 में वर्णित कोई अपराध किया जाता है, तो वह व्यक्ति, जो भारतीय न्याय अधिनियम, 1950 की धारा 210, धारा 213, धारा 214, धारा 215 या धारा 267 में वर्णित किसी अपराध के लिए उत्तरदायी होगा, तो वह व्यक्ति, जो भारतीय न्याय अधिनियम

संहिता, 2023 (2023 का 45) के अनुसार यदि कोई अपराध किसी सिविल, फौजदारी या राजस्व न्यायालय की दृष्टि में या उसकी उपस्थिति में किया जाता है, तो न्यायालय अपराधी को हिरासत में ले सकेगा और उसी दिन न्यायालय के उठने के पूर्व किसी भी समय अपराध का संज्ञान ले सकेगा और अपराधी को यह कारण बताने का उचित अवसर देने के पश्चात कि उसे इस धारा के अधीन दंडित क्यों न किया जाए, अपराधी को एक हजार रुपए से अधिक का जुर्माना और जुर्माना अदा न करने की स्थिति में एक माह तक की साधारण कारावास की सजा दे सकेगा, जब तक कि ऐसा जुर्माना पहले अदा न कर दिया जाए।

(2) ऐसे प्रत्येक मामले में न्यायालय अपराध गठित करने वाले तथ्य, अपराधी द्वारा दिया गया कथन (यदि कोई हो) तथा निष्कर्ष और दण्ड को अभिलिखित करेगा।

(3) यदि अपराध भारतीय न्याय संहिता, 2023 (2023 का 45) की धारा 267 के अंतर्गत है, तो अभिलेख में उस न्यायिक कार्यवाही की प्रकृति और चरण दर्शाया जाएगा जिसमें न्यायालय बैठा था जिसमें बाधा पहुंचाई गई या अपमानित किया गया तथा बाधा या अपमान की प्रकृति दर्शाई जाएगी।

385. जहां न्यायालय का विचार है कि मामले को धारा 384 के अधीन नहीं निपटाया जाना चाहिए वहां प्रक्रिया ।--( 1 ) यदि न्यायालय किसी मामले में यह विचार करता है कि धारा 384 में निर्दिष्ट किसी अपराध का अभियुक्त व्यक्ति, जो उसके समक्ष या दृष्टि में किया गया है, जुर्माना न चुकाने के सिवाय कारावासित किया जाना चाहिए, या उस पर दो सौ रुपए से अधिक जुर्माना अधिरोपित किया जाना चाहिए, या ऐसे न्यायालय की किसी अन्य कारण से यह राय है कि मामले को धारा 384 के अधीन निपटाया नहीं जाना चाहिए, तो ऐसा न्यायालय अपराध को गठित करने वाले तथ्यों और अभियुक्त के कथन को अभिलिखित करने के पश्चात्, जैसा कि इसमें पूर्व में उपबंधित है, मामले को उस मजिस्ट्रेट को भेज सकेगा, जिसे उस पर विचार करने की अधिकारिता है, और ऐसे व्यक्ति को ऐसे मजिस्ट्रेट के समक्ष उपस्थित होने के लिए प्रतिभूति दिए जाने की अपेक्षा कर सकेगा, या यदि पर्याप्त प्रतिभूति नहीं दी जाती है, तो ऐसे व्यक्ति को अभिरक्षा में ऐसे मजिस्ट्रेट को भेज सकेगा।

( 2 ) वह मजिस्ट्रेट, जिसके पास इस धारा के अधीन कोई मामला भेजा जाता है, उसमें यथासम्भव इस प्रकार कार्यवाही करेगा मानो वह पुलिस रिपोर्ट पर संस्थित किया गया हो।

386. रजिस्ट्रार या उप-रजिस्ट्रार कब सिविल न्यायालय समझा जाएगा.-- जब राज्य सरकार ऐसा निदेश दे, तो पंजीकरण अधिनियम, 1908 (1908 का 16) के अधीन नियुक्त कोई रजिस्ट्रार या उप-रजिस्ट्रार धारा 384 और 385 के अर्थान्तर्गत सिविल न्यायालय समझा जाएगा ।

387. क्षमा मांगने पर अपराधी को उन्मोचित किया जाना - जब किसी न्यायालय ने किसी अपराधी को धारा 384 के अधीन दण्डित किया हो या धारा 385 के अधीन उसे किसी मजिस्ट्रेट के पास, किसी ऐसी बात को करने से इन्कार करने या न करने के लिए, जिसे करने की उससे विधिपूर्वक अपेक्षा की गई थी, विचारण के लिए भेजा हो, तब न्यायालय स्वविवेकानुसार अपराधी को उस न्यायालय के आदेश या अध्यपेक्षा के प्रति उसके समर्पण पर या उसके समाधानप्रद रूप में क्षमा मांगने पर उन्मोचित कर सकता है या दण्ड का परिहार कर सकता है।

388. उत्तर देने या दस्तावेज पेश करने से इनकार करने वाले व्यक्ति को कारावास या सुपुर्द किया जाना। यदि कोई साक्षी या व्यक्ति, जिसे दंड न्यायालय के समक्ष कोई दस्तावेज या चीज पेश करने के लिए बुलाया गया है, उससे पूछे गए प्रश्नों का उत्तर देने से या उसके कब्जे या शक्ति में कोई दस्तावेज या चीज पेश करने से इनकार करता है, जिसे पेश करने की न्यायालय उससे अपेक्षा करता है, और ऐसा करने के लिए उसे उचित अवसर दिए जाने के पश्चात् ऐसे इनकार के लिए कोई उचित बहाना प्रस्तुत नहीं करता है, तो ऐसा न्यायालय, कारणों को लेखबद्ध करके, उसे सादा कारावास से दंडादेश दे सकता है, या पीठासीन मजिस्ट्रेट या न्यायाधीश के हस्ताक्षर सहित वारंट द्वारा उसे सात दिन से अनधिक की अवधि के लिए न्यायालय के किसी अधिकारी की अभिरक्षा में सौंप सकता है, जब तक कि इस बीच ऐसा व्यक्ति परीक्षा किए जाने और उत्तर देने या दस्तावेज या चीज पेश करने के लिए सहमति न दे दे और उसके इनकार पर अड़े रहने की दशा में, उसके साथ धारा 384 या धारा 385 के उपबंधों के अनुसार कार्रवाई की जा सकेगी।

389. समन के पालन में साक्षी द्वारा उपस्थित न होने पर दण्ड की संक्षिप्त प्रक्रिया।-- ( 1 ) यदि कोई साक्षी, जिसे दण्ड न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने के लिए समन किया जा रहा है, समन के पालन में निश्चित स्थान और समय पर उपस्थित होने के लिए वैध रूप से आबद्ध है और बिना किसी उचित कारण के उस स्थान या समय पर उपस्थित होने में उपेक्षा करता है या इनकार करता है या उस स्थान से जहां उसे उपस्थित होना है, उस समय से पूर्व चला जाता है जिस समय उसका जाना वैध है और जिस न्यायालय के समक्ष साक्षी को उपस्थित होना है उसका यह समाधान हो जाता है कि न्याय के हित में यह समीचीन है कि ऐसे साक्षी का संक्षिप्त विचारण किया जाना चाहिए, तो न्यायालय अपराध का संज्ञान ले सकता है और अपराधी को यह कारण बताने का अवसर देने के पश्चात कि उसे इस धारा के अधीन क्यों न दण्डित किया जाए, उसे पांच सौ रुपए से अनधिक जुर्माने से दण्डित कर सकता है।

( 2 ) ऐसे प्रत्येक मामले में न्यायालय, यथासम्भव, संक्षिप्त विचारण के लिए विहित प्रक्रिया का अनुसरण करेगा।

390. धारा 383, 384, 388 और 389 के अधीन दोषसिद्धि से अपील ।--( 1 ) कोई व्यक्ति, जिसे उच्च न्यायालय से भिन्न किसी न्यायालय द्वारा धारा 383, 384, 388 या 389 के अधीन दण्डादिष्ट किया गया हो, इस संहिता में किसी बात के होते हुए भी, उस न्यायालय में अपील कर सकेगा, जिसमें ऐसे न्यायालय में पारित डिक्री या आदेश सामान्यतया अपील योग्य होते हैं।

(2) अध्याय 31 के प्रावधान, जहां तक वे लागू होते हैं, इस धारा के तहत अपील पर लागू होंगे, और अपीलीय न्यायालय निष्कर्ष को बदल या उलट सकता है, या जिस सजा के खिलाफ अपील की गई है उसे कम या उलट सकता है।

(3) लघुवाद न्यायालय द्वारा ऐसी दोषसिद्धि के विरुद्ध अपील उस सत्र न्यायालय में की जाएगी, जिसके सत्र खण्ड में ऐसा न्यायालय स्थित है।

(4) धारा 386 के अधीन जारी किए गए निदेश के आधार पर सिविल न्यायालय समझे गए किसी रजिस्ट्रार या उप-रजिस्ट्रार द्वारा ऐसी दोषसिद्धि के विरुद्ध अपील, उस सत्र खण्ड के सत्र न्यायालय में होगी, जिसके भीतर ऐसे रजिस्ट्रार या उप-रजिस्ट्रार का कार्यालय स्थित है।

391. कुछ न्यायाधीशों और मजिस्ट्रेटों द्वारा कुछ अपराधों का, जब वे उनके समक्ष किए गए हों, विचारण न करना। धारा 383, 384, 388 और 389 में जैसा उपबंधित है उसके सिवाय, दंड न्यायालय का कोई न्यायाधीश (उच्च न्यायालय के न्यायाधीश से भिन्न) या मजिस्ट्रेट धारा 215 में निर्दिष्ट किसी अपराध के लिए किसी व्यक्ति का विचारण नहीं करेगा, जब ऐसा अपराध उसके समक्ष या उसके प्राधिकार की अवमानना में किया गया हो, या न्यायिक कार्यवाही के दौरान ऐसे न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट के रूप में उसके संज्ञान में लाया गया हो।


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