अध्याय 32
संदर्भ और संशोधन
436. उच्च न्यायालय को संदर्भ।-- ( 1 ) जहां किसी न्यायालय का यह समाधान हो जाता है कि उसके समक्ष लंबित किसी मामले में किसी अधिनियम, अध्यादेश या विनियम की अथवा किसी अधिनियम, अध्यादेश या विनियम में अंतर्विष्ट किसी उपबंध की वैधता के बारे में प्रश्न अंतर्वलित है, जिसका निर्धारण मामले के निपटारे के लिए आवश्यक है, और उसकी राय है कि ऐसा अधिनियम, अध्यादेश, विनियम या उपबंध अवैध या अप्रभावी है, किन्तु उस उच्च न्यायालय द्वारा, जिसके अधीन वह न्यायालय है, या उच्चतम न्यायालय द्वारा ऐसा घोषित नहीं किया गया है, वहां न्यायालय अपनी राय और उसके कारणों को बताते हुए मामला बताएगा, और उसे उच्च न्यायालय के निर्णय के लिए निर्देशित करेगा।
स्पष्टीकरण.- इस धारा में, " विनियमन " से साधारण खंड अधिनियम, 1897 (1897 का 10) या किसी राज्य के साधारण खंड अधिनियम में परिभाषित कोई विनियमन अभिप्रेत है।
(2) सेशन न्यायालय, यदि वह ठीक समझे, अपने समक्ष लंबित किसी मामले में, जिस पर उपधारा ( 1 ) के उपबंध लागू नहीं होते, ऐसे मामले की सुनवाई में उठने वाले किसी विधि प्रश्न को उच्च न्यायालय के निर्णय के लिए निर्देशित कर सकेगा।
(3) कोई न्यायालय, उपधारा ( 1 ) या उपधारा ( 2 ) के अधीन उच्च न्यायालय को संदर्भ देते हुए, उस पर उच्च न्यायालय का निर्णय होने तक, अभियुक्त को या तो जेल भेज सकता है या बुलाए जाने पर उपस्थित होने के लिए जमानत पर रिहा कर सकता है।
न्यायालय के निर्णय के अनुसार मामले का निपटारा ।-- ( 1 ) जब कोई प्रश्न इस प्रकार निर्दिष्ट किया गया है, तब उच्च न्यायालय उस पर ऐसा आदेश पारित करेगा जैसा वह ठीक समझे, और ऐसे आदेश की एक प्रति उस न्यायालय को भेजवाएगा जिसके द्वारा निर्देश किया गया था, जो उक्त आदेश के अनुरूप मामले का निपटारा करेगा।
( 2 ) उच्च न्यायालय निदेश दे सकेगा कि ऐसे निर्देश का खर्च किसके द्वारा दिया जाएगा।
438. पुनरीक्षण की शक्तियों का प्रयोग करने के लिए अभिलेखों को मंगाना।-- ( 1 ) उच्च न्यायालय या कोई सेशन न्यायाधीश अपने स्थानीय अधिकार क्षेत्र में स्थित किसी अवर दंड न्यायालय के समक्ष किसी कार्यवाही के अभिलेख को मंगा सकता है और उसकी जांच कर सकता है, इस प्रयोजन के लिए कि वह किसी निष्कर्ष, दंडादेश या आदेश की शुद्धता, वैधानिकता या औचित्य के बारे में, जो अभिलिखित या पारित किया गया हो, तथा ऐसे अवर न्यायालय की किसी कार्यवाही की नियमितता के बारे में स्वयं को संतुष्ट कर ले, और ऐसा अभिलेख मंगाते समय निर्देश दे सकता है कि किसी दंडादेश या आदेश का निष्पादन निलंबित कर दिया जाए, और यदि अभियुक्त परिरोध में है तो अभिलेख की जांच लंबित रहने तक उसे उसके स्वयं के बंधपत्र या जमानत बंधपत्र पर छोड़ दिया जाए।
स्पष्टीकरण.- सभी मजिस्ट्रेट, चाहे वे कार्यपालक हों या न्यायिक, और चाहे वे आरंभिक या अपीलीय अधिकारिता का प्रयोग करते हों, इस उपधारा और धारा 439 के प्रयोजनों के लिए सेशन न्यायाधीश से अवर समझे जाएंगे ।
(2) उपधारा ( 1 ) द्वारा प्रदत्त पुनरीक्षण शक्तियों का प्रयोग किसी अपील, जांच, परीक्षण या अन्य कार्यवाही में पारित किसी मध्यवर्ती आदेश के संबंध में नहीं किया जाएगा।
(3) यदि इस धारा के अधीन कोई आवेदन किसी व्यक्ति द्वारा उच्च न्यायालय या सेशन न्यायाधीश के समक्ष किया गया है तो उसी व्यक्ति द्वारा किया गया कोई और आवेदन उनमें से किसी अन्य द्वारा स्वीकार नहीं किया जाएगा।
439. जांच का आदेश देने की शक्ति। धारा 438 के अधीन या अन्यथा किसी अभिलेख की परीक्षा करने पर उच्च न्यायालय या सत्र न्यायाधीश मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को स्वयं या अपने अधीनस्थ किसी मजिस्ट्रेट द्वारा किसी ऐसे परिवाद की, जिसे धारा 226 या धारा 227 की उपधारा (4) के अधीन खारिज कर दिया गया है, या किसी ऐसे व्यक्ति के मामले की, जिस पर किसी अपराध का आरोप है और जिसे उन्मोचित कर दिया गया है, आगे जांच करने का निर्देश दे सकता है और मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट स्वयं या किसी अधीनस्थ मजिस्ट्रेट को ऐसा करने का निर्देश दे सकता है:
परन्तु कोई भी न्यायालय किसी ऐसे व्यक्ति के मामले में जांच के लिए इस धारा के अधीन कोई निदेश तब तक नहीं देगा, जब तक ऐसे व्यक्ति को यह हेतुक दर्शित करने का अवसर न मिल गया हो कि ऐसा निदेश क्यों न दिया जाए।
440. पुनरीक्षण शक्तियां .-- ( 1 ) किसी कार्यवाही के मामले में, जिसका अभिलेख स्वयं सेशन न्यायाधीश ने मंगवाया है, सेशन न्यायाधीश उन सभी या किन्हीं शक्तियों का प्रयोग कर सकेगा, जो धारा 442 की उपधारा ( 1 ) के अधीन उच्च न्यायालय द्वारा प्रयोग की जा सकती हैं।
(2) जहां पुनरीक्षण के माध्यम से कोई कार्यवाही उपधारा ( 1 ) के अधीन सेशन न्यायाधीश के समक्ष प्रारंभ की जाती है, वहां धारा 442 की उपधारा ( 2 ), उपधारा ( 3) , उपधारा ( 4 ) और उपधारा ( 5 ) के उपबंध, जहां तक हो सके, ऐसी कार्यवाही को लागू होंगे और उक्त उपधाराओं में उच्च न्यायालय के प्रति निर्देशों का अर्थ सेशन न्यायाधीश के प्रति निर्देशों के रूप में लगाया जाएगा।
(3) जहां किसी व्यक्ति द्वारा या उसकी ओर से सत्र न्यायाधीश के समक्ष पुनरीक्षण के लिए कोई आवेदन किया जाता है, वहां ऐसे व्यक्ति के संबंध में सत्र न्यायाधीश का निर्णय अंतिम होगा और ऐसे व्यक्ति के अनुरोध पर पुनरीक्षण के माध्यम से आगे कोई कार्यवाही उच्च न्यायालय या किसी अन्य न्यायालय द्वारा ग्रहण नहीं की जाएगी।
441. न्यायाधीश की शक्तियां । अपर सेशन न्यायाधीश को इस अध्याय के अधीन किसी मामले के संबंध में सेशन न्यायाधीश की सभी शक्तियां प्राप्त होंगी और वह उनका प्रयोग कर सकेगा, जो सेशन न्यायाधीश के किसी साधारण या विशेष आदेश द्वारा या उसके अधीन उसे अंतरित किया जा सकता है।
442. उच्च न्यायालय की पुनरीक्षण शक्तियाँ।- ( 1 ) किसी कार्यवाही के मामले में, जिसका अभिलेख स्वयं उच्च न्यायालय द्वारा मंगवाया गया है या जो अन्यथा उसके ज्ञान में आता है, उच्च न्यायालय स्वविवेकानुसार धारा 427, 430, 431 और 432 द्वारा अपील न्यायालय को या धारा 344 द्वारा सेशन न्यायालय को प्रदत्त शक्तियों में से किसी का प्रयोग कर सकता है और जब पुनरीक्षण न्यायालय के न्यायाधीशों की राय समान रूप से विभाजित हो, तब मामले का निपटारा धारा 433 द्वारा उपबंधित रीति से किया जाएगा।
(2) इस धारा के अधीन कोई भी आदेश अभियुक्त या अन्य व्यक्ति के प्रतिकूल तब तक नहीं किया जाएगा जब तक कि उसे व्यक्तिगत रूप से या अपने बचाव में वकील द्वारा सुनवाई का अवसर न मिल गया हो।
(3) इस धारा की कोई भी बात उच्च न्यायालय को दोषमुक्ति के निर्णय को दोषसिद्धि में परिवर्तित करने के लिए प्राधिकृत करने वाली नहीं समझी जाएगी।
(4) जहां इस संहिता के अंतर्गत कोई अपील की जा सकती है और कोई अपील नहीं की जाती है, वहां उस पक्षकार के अनुरोध पर पुनरीक्षण के माध्यम से कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी, जो अपील कर सकता था।
(5) जहां इस संहिता के अधीन कोई अपील होती है, किन्तु किसी व्यक्ति द्वारा उच्च न्यायालय में पुनरीक्षण के लिए आवेदन किया गया है और उच्च न्यायालय का यह समाधान हो जाता है कि ऐसा आवेदन इस गलत विश्वास के अधीन किया गया था कि उसके विरुद्ध कोई अपील नहीं हो सकती और न्याय के हित में ऐसा करना आवश्यक है, वहां उच्च न्यायालय पुनरीक्षण के लिए आवेदन को अपील याचिका के रूप में मान सकेगा और तद्नुसार उस पर कार्यवाही कर सकेगा।
443. पुनरीक्षण मामलों को वापस लेने या स्थानांतरित करने की उच्च न्यायालय की शक्ति। - ( 1 ) जब कभी एक ही विचारण में दोषसिद्ध एक या अधिक व्यक्ति पुनरीक्षण के लिए उच्च न्यायालय में आवेदन करते हैं और उसी विचारण में दोषसिद्ध कोई अन्य व्यक्ति पुनरीक्षण के लिए सेशन न्यायाधीश के समक्ष आवेदन करता है, तो उच्च न्यायालय पक्षकारों की सामान्य सुविधा और अंतर्ग्रस्त प्रश्नों के महत्व को ध्यान में रखते हुए विनिश्चित करेगा कि दोनों न्यायालयों में से किस न्यायालय को पुनरीक्षण के आवेदनों का अंतिम रूप से निपटारा करना चाहिए और जब उच्च न्यायालय यह विनिश्चय कर ले कि पुनरीक्षण के सभी आवेदनों का निपटारा उसी द्वारा किया जाना चाहिए, तब उच्च न्यायालय यह निदेश देगा कि सेशन न्यायाधीश के समक्ष लंबित पुनरीक्षण के आवेदनों को अपने पास स्थानांतरित कर दिया जाए और जहां उच्च न्यायालय यह विनिश्चय कर ले कि पुनरीक्षण के आवेदनों का निपटारा करना उसके लिए आवश्यक नहीं है, वहां वह यह निदेश देगा कि उसके समक्ष किए गए पुनरीक्षण के आवेदनों को सेशन न्यायाधीश के पास स्थानांतरित कर दिया जाए।
(2) जब कभी पुनरीक्षण के लिए कोई आवेदन उच्च न्यायालय को अन्तरित किया जाता है तो वह न्यायालय उस पर उसी प्रकार विचार करेगा मानो वह उसके समक्ष सम्यक रूप से प्रस्तुत किया गया आवेदन हो।
(3) जब कभी पुनरीक्षण के लिए कोई आवेदन सत्र न्यायाधीश को अन्तरित किया जाता है, तो वह न्यायाधीश उस पर इस प्रकार विचार करेगा मानो वह उसके समक्ष सम्यक रूप से प्रस्तुत किया गया आवेदन हो।
(4) जहां पुनरीक्षण के लिए कोई आवेदन उच्च न्यायालय द्वारा सत्र न्यायाधीश को अंतरित कर दिया जाता है, वहां उस व्यक्ति या व्यक्तियों के अनुरोध पर, जिनके पुनरीक्षण के लिए आवेदन सत्र न्यायाधीश द्वारा निपटा दिए गए हैं, उच्च न्यायालय या किसी अन्य न्यायालय में पुनरीक्षण के लिए कोई और आवेदन नहीं किया जाएगा।
444. पक्षकारों को सुनने का विकल्प - इस संहिता द्वारा अन्यथा स्पष्ट रूप से उपबंधित के सिवाय, किसी भी पक्षकार को अपनी पुनरीक्षण शक्तियों का प्रयोग करने वाले किसी न्यायालय के समक्ष व्यक्तिगत रूप से या अधिवक्ता द्वारा सुने जाने का कोई अधिकार नहीं है; किन्तु न्यायालय, यदि वह ठीक समझे, ऐसी शक्तियों का प्रयोग करते समय, किसी पक्षकार को व्यक्तिगत रूप से या अधिवक्ता द्वारा सुन सकता है।
445. उच्च न्यायालय के आदेश का निचले न्यायालय को प्रमाणित किया जाना. -जब कोई मामला इस अध्याय के अधीन उच्च न्यायालय या सेशन न्यायाधीश द्वारा पुनरीक्षित किया जाता है, तब वह धारा 429 द्वारा उपबंधित रीति से अपना विनिश्चय या आदेश उस न्यायालय को प्रमाणित करेगा, जिसने संशोधित निष्कर्ष, दण्डादेश या आदेश अभिलिखित या पारित किया था, और वह न्यायालय, जिसके समक्ष विनिश्चय या आदेश इस प्रकार प्रमाणित किया गया है, तत्पश्चात् ऐसे आदेश देगा, जो इस प्रकार प्रमाणित विनिश्चय के अनुरूप हों, और यदि आवश्यक हो, तो अभिलेख को उसके अनुसार संशोधित किया जाएगा।