अध्याय 33
आपराधिक मामलों का स्थानांतरण
446. मामलों और अपीलों को अन्तरित करने की उच्चतम न्यायालय की शक्ति।-- ( 1 ) जब कभी उच्चतम न्यायालय को यह प्रतीत कराया जाता है कि इस धारा के अधीन कोई आदेश न्याय के उद्देश्यों के लिए समीचीन है, तब वह निदेश दे सकता है कि किसी विशिष्ट मामले या अपील को एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय को अथवा एक उच्च न्यायालय के अधीनस्थ किसी दण्ड न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय के अधीनस्थ समान या वरिष्ठ अधिकारिता वाले किसी अन्य दण्ड न्यायालय को अन्तरित कर दिया जाए।
(2) उच्चतम न्यायालय इस धारा के अधीन केवल भारत के महान्यायवादी या किसी हितबद्ध पक्षकार के आवेदन पर ही कार्य कर सकेगा और ऐसा प्रत्येक आवेदन प्रस्ताव द्वारा किया जाएगा, जो उस स्थिति को छोड़कर जब आवेदक भारत का महान्यायवादी या राज्य का महाधिवक्ता हो, शपथपत्र या प्रतिज्ञान द्वारा समर्थित होगा।
(3) जहां इस धारा द्वारा प्रदत्त शक्तियों के प्रयोग के लिए कोई आवेदन खारिज कर दिया जाता है, वहां उच्चतम न्यायालय, यदि उसकी राय में आवेदन तुच्छ या तंग करने वाला था, तो आवेदक को आदेश दे सकेगा कि वह आवेदन का विरोध करने वाले किसी व्यक्ति को प्रतिकर के रूप में ऐसी राशि दे, जैसी वह मामले की परिस्थितियों में उचित समझे।
अपीलों को अन्तरित करने की उच्च न्यायालय की शक्ति ।-- ( 1 ) जब कभी उच्च न्यायालय को यह प्रतीत कराया जाए कि--
(a) कि उसके अधीनस्थ किसी भी दंड न्यायालय में निष्पक्ष और पक्षपात रहित जांच या सुनवाई नहीं हो सकती है; या
(b) कि कोई असामान्य कठिनाई वाला विधि प्रश्न उठने की संभावना है; या
(c) कि इस धारा के अधीन आदेश इस संहिता के किसी उपबंध द्वारा अपेक्षित है, या पक्षकारों या साक्षियों की सामान्य सुविधा के लिए होगा, या न्याय के उद्देश्यों के लिए समीचीन है,
यह आदेश दे सकता है—
(i) किसी अपराध की जांच या विचारण किसी ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है जो धारा 197 से 205 (दोनों सहित) के अधीन योग्य नहीं है, किन्तु अन्य बातों में ऐसे अपराध की जांच या विचारण करने के लिए सक्षम है;
(ii) कि कोई विशेष मामला या अपील, अथवा मामलों या अपीलों का वर्ग, उसके अधीनस्थ दंड न्यायालय से समान या उच्चतर अधिकारिता वाले किसी अन्य दंड न्यायालय को अंतरित किया जाए;
(iii) किसी विशेष मामले को सत्र न्यायालय को विचारण हेतु सौंपा जाए; या
(iv) किसी विशेष मामले या अपील को स्वयं अपने पास स्थानांतरित किया जाए तथा उसके समक्ष सुनवाई की जाए।
(2) उच्च न्यायालय या तो निचली अदालत की रिपोर्ट पर, या किसी हितबद्ध पक्ष के आवेदन पर, या अपनी स्वयं की पहल पर कार्य कर सकता है:
परन्तु किसी मामले को एक दंड न्यायालय से उसी सत्र खण्ड के दूसरे दंड न्यायालय में स्थानांतरित करने के लिए उच्च न्यायालय में तब तक आवेदन नहीं किया जाएगा जब तक कि ऐसे स्थानांतरण के लिए आवेदन सत्र न्यायाधीश के समक्ष न किया गया हो और उसके द्वारा उसे अस्वीकार न कर दिया गया हो।
(3) उपधारा ( 1 ) के अधीन आदेश के लिए प्रत्येक आवेदन प्रस्ताव द्वारा किया जाएगा, जो, सिवाय उस स्थिति के जब आवेदक राज्य का महाधिवक्ता हो, शपथपत्र या प्रतिज्ञान द्वारा समर्थित होगा।
(4) जब ऐसा आवेदन अभियुक्त व्यक्ति द्वारा किया जाता है, तो उच्च न्यायालय उसे किसी प्रतिकर के भुगतान के लिए बंधपत्र या जमानत बंधपत्र निष्पादित करने का निर्देश दे सकता है, जिसे उच्च न्यायालय उपधारा ( 7 ) के अधीन अधिनिर्णीत कर सकता है।
(5) ऐसा आवेदन करने वाला प्रत्येक अभियुक्त व्यक्ति, आवेदन की लिखित सूचना लोक अभियोजक को देगा, साथ ही उन आधारों की एक प्रति भी देगा जिन पर वह आवेदन किया जा रहा है; और आवेदन के गुण-दोष पर तब तक कोई आदेश नहीं दिया जाएगा जब तक ऐसी सूचना दिए जाने और आवेदन की सुनवाई के बीच कम से कम चौबीस घंटे न बीत गए हों।
(6) जहां आवेदन किसी अधीनस्थ न्यायालय से किसी मामले या अपील के अंतरण के लिए है, वहां उच्च न्यायालय, यदि उसका समाधान हो जाता है कि न्याय के हित में ऐसा करना आवश्यक है, तो आदेश दे सकता है कि आवेदन का निपटारा होने तक अधीनस्थ न्यायालय में कार्यवाही ऐसी शर्तों पर रोक दी जाएगी, जिन्हें उच्च न्यायालय अधिरोपित करना ठीक समझे:
बशर्ते कि ऐसा स्थगन धारा 346 के अधीन अधीनस्थ न्यायालय की रिमांड की शक्ति पर प्रभाव नहीं डालेगा।
(7) जहां उपधारा ( 1 ) के अधीन आदेश के लिए आवेदन खारिज कर दिया जाता है, वहां उच्च न्यायालय, यदि उसकी राय में आवेदन तुच्छ या तंग करने वाला है, आवेदक को आदेश दे सकेगा कि वह आवेदन का विरोध करने वाले किसी व्यक्ति को प्रतिकर के रूप में ऐसी राशि दे, जैसी वह मामले की परिस्थितियों में उचित समझे।
(8) जब उच्च न्यायालय उपधारा ( 1 ) के अधीन आदेश देता है कि किसी मामले को उसके समक्ष विचारण के लिए किसी न्यायालय से अंतरित किया जाए, तो वह ऐसे विचारण में वही प्रक्रिया अपनाएगा जो वह न्यायालय तब अपनाता यदि मामला इस प्रकार अंतरित न किया गया होता।
(9) इस धारा की कोई भी बात धारा 218 के अधीन सरकार के किसी आदेश पर प्रभाव डालने वाली नहीं समझी जाएगी।
अपीलों को अन्तरित करने की सेशन न्यायाधीश की शक्ति ।-- ( 1 ) जब कभी सेशन न्यायाधीश को यह प्रतीत हो कि इस उपधारा के अधीन कोई आदेश न्याय के उद्देश्यों के लिए समीचीन है, तब वह आदेश दे सकेगा कि कोई विशिष्ट मामला उसके सेशन खण्ड में एक दंड न्यायालय से दूसरे दंड न्यायालय को अन्तरित कर दिया जाए।
(2) सत्र न्यायाधीश या तो निचली अदालत की रिपोर्ट पर, या किसी हितबद्ध पक्ष के आवेदन पर, या अपनी स्वयं की पहल पर कार्य कर सकता है।
(3) की उपधारा ( 3 ), ( 4 ), ( 5 ), ( 6 ), ( 7 ) और ( 9 ) के उपबंध, उपधारा ( 1 ) के अधीन आदेश के लिए सेशन न्यायाधीश को आवेदन के संबंध में उसी प्रकार लागू होंगे, जैसे वे धारा 447 की उपधारा ( 1 ) के अधीन आदेश के लिए उच्च न्यायालय को आवेदन के संबंध में लागू होते हैं , सिवाय इसके कि उस धारा की उपधारा ( 7 ) इस प्रकार लागू होगी मानो उसमें आने वाले शब्द “राशि” के स्थान पर, शब्द “दस हजार रुपए से अनधिक राशि” प्रतिस्थापित कर दिए गए हों।
न्यायाधीशों द्वारा मामलों और अपीलों का वापस लिया जाना ।-- ( 1 ) सेशन न्यायाधीश अपने अधीनस्थ मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष कोई मामला या अपील वापस ले सकता है या कोई मामला या अपील वापस मंगा सकता है, जिसे उसने सौंपा है ।
(2) अपर सत्र न्यायाधीश के समक्ष मामले की सुनवाई या अपील की सुनवाई शुरू होने से पहले किसी भी समय, सत्र न्यायाधीश किसी भी मामले या अपील को वापस बुला सकता है, जिसे उसने किसी अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश को सौंप दिया है।
(3) जहां कोई सेशन न्यायाधीश उपधारा ( 1 ) या उपधारा ( 2 ) के अधीन मामला या अपील वापस ले लेता है या वापस मंगा लेता है, वहां वह या तो अपने न्यायालय में मामले का विचारण कर सकता है या अपील स्वयं सुन सकता है, या उसे इस संहिता के उपबंधों के अनुसार, यथास्थिति, विचारण या सुनवाई के लिए किसी अन्य न्यायालय को सौंप सकता है।
450. न्यायिक मजिस्ट्रेटों द्वारा मामलों का वापस लिया जाना।-- ( 1 ) कोई भी मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अपने अधीनस्थ किसी मजिस्ट्रेट से कोई मामला वापस ले सकता है या कोई मामला वापस मंगवा सकता है, जिसे उसने उसे सौंप दिया है, और ऐसे मामले की स्वयं जांच या विचारण कर सकता है, या उसे जांच या विचारण के लिए किसी अन्य मजिस्ट्रेट को निर्देशित कर सकता है, जो उसकी जांच या विचारण करने के लिए सक्षम हो।
( 2 ) कोई न्यायिक मजिस्ट्रेट धारा 212 की उपधारा ( 2 ) के अधीन अपने द्वारा सौंपे गए किसी मामले को किसी अन्य मजिस्ट्रेट को वापस बुला सकेगा तथा ऐसे मामलों की स्वयं जांच या विचारण कर सकेगा।
मजिस्ट्रेटों द्वारा मामलों को सौंपना या वापस लेना-- कोई जिला मजिस्ट्रेट या
उप-विभागीय मजिस्ट्रेट-
(a) अपने समक्ष शुरू की गई किसी कार्यवाही को निपटाने के लिए अपने अधीनस्थ किसी मजिस्ट्रेट को सौंपना;
(b) अपने अधीनस्थ किसी मजिस्ट्रेट से कोई मामला वापस ले सकता है या कोई मामला वापस ले सकता है, जिसे उसने अपने अधीनस्थ किसी मजिस्ट्रेट को सौंप दिया है, और ऐसी कार्यवाही का स्वयं निपटारा कर सकता है या उसे किसी अन्य मजिस्ट्रेट को निपटान के लिए निर्दिष्ट कर सकता है।
452. किए जाने वाले कारण .-- धारा 448 , धारा 449, धारा 450 या धारा 451 के अधीन आदेश देने वाला सत्र न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट आदेश देने के अपने कारण लेखबद्ध करेगा।