अध्याय 36
संपत्ति का निपटान
497. कतिपय मामलों में विचारण लंबित रहने तक संपत्ति की अभिरक्षा और व्ययन के लिए आदेश।- ( 1 ) जब कोई संपत्ति किसी दंड न्यायालय या मजिस्ट्रेट के समक्ष, जो किसी अन्वेषण, जांच या विचारण के दौरान मामले का संज्ञान लेने या विचारण के लिए उसे सौंपने के लिए सशक्त है, पेश की जाती है, तब न्यायालय या मजिस्ट्रेट अन्वेषण, जांच या विचारण के निष्कर्ष तक ऐसी संपत्ति की उचित अभिरक्षा के लिए ऐसा आदेश दे सकता है, जैसा वह ठीक समझे, और यदि संपत्ति शीघ्र और प्राकृतिक रूप से क्षय होने वाली है, या यदि ऐसा करना अन्यथा समीचीन है, तो न्यायालय या मजिस्ट्रेट ऐसा साक्ष्य अभिलिखित करने के पश्चात्, जैसा वह आवश्यक समझे, उसे बेचने या अन्यथा व्ययन करने का आदेश दे सकता है।
स्पष्टीकरण.- इस धारा के प्रयोजनों के लिए, “संपत्ति” में निम्नलिखित शामिल हैं-
(a) किसी भी प्रकार की संपत्ति या दस्तावेज जो न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया हो या जो उसकी अभिरक्षा में हो;
(b) कोई संपत्ति जिसके संबंध में कोई अपराध किया गया प्रतीत होता है या जिसका उपयोग किसी अपराध को करने के लिए किया गया प्रतीत होता है।
(2) न्यायालय या मजिस्ट्रेट उपधारा ( 1 ) में निर्दिष्ट संपत्ति को अपने समक्ष प्रस्तुत किए जाने के चौदह दिन की अवधि के भीतर ऐसी संपत्ति का विवरण तैयार करेगा जिसमें उसका वर्णन ऐसे प्ररूप और रीति से होगा जैसा राज्य सरकार नियमों द्वारा उपबंधित करे।
(3) उपधारा ( 1 ) में निर्दिष्ट संपत्ति का फोटोग्राफ और यदि आवश्यक हो तो मोबाइल फोन या किसी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर वीडियोग्राफी कराएगा ।
(4) उपधारा ( 2 ) के अधीन तैयार किया गया कथन और उपधारा ( 3 ) के अधीन लिया गया फोटोग्राफ या वीडियोग्राफी संहिता के अधीन किसी जांच, परीक्षण या अन्य कार्यवाही में साक्ष्य के रूप में उपयोग की जाएगी।
(5) न्यायालय या मजिस्ट्रेट उपधारा ( 2 ) के अधीन कथन तैयार किए जाने और उपधारा ( 3 ) के अधीन फोटो या वीडियोग्राफी लिए जाने के पश्चात् तीस दिन की अवधि के भीतर, इसमें इसके पश्चात् विनिर्दिष्ट रीति से संपत्ति के निपटान, विनाश, जब्ती या परिदान का आदेश देगा।
498. विचारण की समाप्ति पर संपत्ति के व्ययन के लिए आदेश।-- ( 1 ) जब किसी आपराधिक मामले में अन्वेषण, जांच या विचारण समाप्त हो जाता है, तब न्यायालय या मजिस्ट्रेट किसी संपत्ति या दस्तावेज को, जो उसके समक्ष पेश की गई हो या उसकी अभिरक्षा में हो, या जिसके संबंध में कोई अपराध किया गया प्रतीत हो, या जो किसी अपराध के किए जाने के लिए उपयोग में लाया गया हो, नष्ट करके, जब्त करके या किसी व्यक्ति को, जो उस पर कब्जे का हकदार होने का दावा करता हो, या अन्यथा, वितरित करके व्ययन करने के लिए ऐसा आदेश दे सकता है, जैसा वह ठीक समझे।
(2) उपधारा ( 1 ) के अधीन किसी संपत्ति को उस पर कब्जे का हकदार होने का दावा करने वाले किसी व्यक्ति को, बिना किसी शर्त के या इस शर्त पर कि वह न्यायालय या मजिस्ट्रेट के समाधानप्रद रूप में प्रतिभूतियों सहित या रहित बंधपत्र निष्पादित करता है, यह वचनबद्धता रखते हुए कि यदि उपधारा ( 1 ) के अधीन किया गया आदेश अपील या पुनरीक्षण पर उपांतरित या अपास्त कर दिया जाता है तो वह संपत्ति न्यायालय को लौटा देगा, सुपुर्द करने के लिए आदेश उपधारा ( 1 ) के अधीन किया जा सकेगा।
(3) सेशन न्यायालय उपधारा ( 1 ) के अधीन स्वयं आदेश देने के बजाय संपत्ति को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को सौंपने का निर्देश दे सकेगा, जो तत्पश्चात् धारा 503, 504 और 505 में उपबंधित रीति से उससे निपटेगा।
(4) सिवाय उस स्थिति के जहां संपत्ति पशुधन है या शीघ्र और प्राकृतिक रूप से क्षयशील है, या जहां उपधारा ( 2 ) के अनुसरण में बंधपत्र निष्पादित किया गया है, उपधारा ( 1 ) के अधीन किया गया आदेश दो मास तक या जब कोई अपील प्रस्तुत की जाती है, तब तक कार्यान्वित नहीं किया जाएगा जब तक ऐसी अपील का निपटारा नहीं हो जाता है।
(5) इस धारा में, "संपत्ति" शब्द के अंतर्गत, ऐसी संपत्ति के मामले में जिसके संबंध में कोई अपराध किया गया प्रतीत होता है, न केवल ऐसी संपत्ति सम्मिलित है जो मूल रूप से किसी पक्षकार के कब्जे या नियंत्रण में रही है, बल्कि कोई संपत्ति भी सम्मिलित है जिसके लिए उसे परिवर्तित या विनिमय किया गया हो, और ऐसे परिवर्तन या विनिमय द्वारा अर्जित कोई भी वस्तु, चाहे तुरन्त या अन्यथा।
499. अभियुक्त के पास से प्राप्त धन का निर्दोष क्रेता को भुगतान - जब कोई व्यक्ति किसी ऐसे अपराध के लिए दोषसिद्ध किया जाता है, जिसमें चोरी या चोरी की संपत्ति प्राप्त करना सम्मिलित है या वह अपराध है, और यह साबित हो जाता है कि किसी अन्य व्यक्ति ने यह जाने बिना या यह विश्वास करने का कारण रखे बिना कि वह चोरी की गई थी, उससे वह संपत्ति खरीदी है, और यह कि उसकी गिरफ्तारी पर दोषसिद्ध व्यक्ति के कब्जे से कोई धन ले लिया गया है, तो न्यायालय ऐसे क्रेता के आवेदन पर और चोरी की गई संपत्ति को उस व्यक्ति को, जो उस पर कब्जे का हकदार है, प्रत्यावर्तित करने पर आदेश दे सकता है कि ऐसे धन में से ऐसी राशि, जो ऐसे क्रेता द्वारा दी गई कीमत से अधिक न हो, ऐसे आदेश की तारीख से छह मास के भीतर उसे परिदत्त कर दी जाए।
500. धारा 498 या धारा 499 के अधीन आदेशों के विरुद्ध अपील ।-( 1 ) कोई व्यक्ति, जो धारा 498 या धारा 499 के अधीन किसी न्यायालय या मजिस्ट्रेट द्वारा किए गए आदेश से व्यथित है, उसके विरुद्ध उस न्यायालय में अपील कर सकेगा, जिसमें पूर्ववर्ती न्यायालय द्वारा दोषसिद्धियों के विरुद्ध सामान्यतया अपीलें की जाती हैं।
(2) ऐसी अपील पर, अपीलीय न्यायालय अपील के निपटारे तक आदेश को स्थगित करने का निर्देश दे सकता है, या आदेश को संशोधित, परिवर्तित या रद्द कर सकता है तथा कोई भी अन्य आदेश दे सकता है जो न्यायोचित हो।
(3) उपधारा ( 2 ) में निर्दिष्ट शक्तियों का प्रयोग अपील, पुष्टि या पुनरीक्षण न्यायालय द्वारा उस मामले में विचार करते समय भी किया जा सकेगा जिसमें उपधारा ( 1 ) में निर्दिष्ट आदेश दिया गया था।
501. मानहानिकारक और अन्य सामग्री का विनाश।-- ( 1 ) भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 294, धारा 295 या धारा 356 की उपधारा ( 3 ) और ( 4 ) के अधीन दोषसिद्धि होने पर न्यायालय उस चीज की सभी प्रतियों को नष्ट करने का आदेश दे सकता है जिसके संबंध में दोषसिद्धि हुई थी और जो न्यायालय की अभिरक्षा में हैं या दोषसिद्ध व्यक्ति के कब्जे या शक्ति में हैं।
( 2 ) न्यायालय इसी प्रकार धारा 274, धारा 275, धारा 276 या धारा 277 के अंतर्गत दोषसिद्धि पर, भारतीय न्याय संहिता, 2023 के अनुसार , उस खाद्य, पेय, औषधि या चिकित्सा तैयारी को नष्ट करने का आदेश दिया जाता है, जिसके संबंध में दोषसिद्धि हुई थी।
502. स्थावर सम्पत्ति पर कब्जा लौटाने की शक्ति।-- ( 1 ) जब कोई व्यक्ति आपराधिक बल के प्रयोग या बल प्रदर्शन या आपराधिक धमकी द्वारा किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध किया जाता है और न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि ऐसे बल प्रयोग या बल प्रदर्शन या धमकी द्वारा किसी व्यक्ति को किसी स्थावर सम्पत्ति से बेदखल किया गया है, तो न्यायालय, यदि वह ठीक समझे, आदेश दे सकता है कि उस सम्पत्ति पर कब्जा रखने वाले किसी अन्य व्यक्ति को, यदि आवश्यक हो, बलपूर्वक बेदखल करने के पश्चात, उस व्यक्ति को उस सम्पत्ति का कब्जा लौटा दिया जाए:
परन्तु न्यायालय द्वारा ऐसा कोई आदेश दोषसिद्धि की तारीख के एक माह से अधिक समय पश्चात नहीं दिया जाएगा।
(2) जहां अपराध का विचारण करने वाले न्यायालय ने उपधारा ( 1 ) के अधीन कोई आदेश नहीं दिया है वहां अपील, पुष्टि या पुनरीक्षण न्यायालय, यदि वह ठीक समझे, यथास्थिति, अपील, निर्देश या पुनरीक्षण का निपटारा करते समय ऐसा आदेश दे सकेगा।
(3) जहां उपधारा ( 1 ) के अधीन कोई आदेश किया गया है वहां धारा 500 के उपबंध उसके संबंध में उसी प्रकार लागू होंगे जैसे वे धारा 499 के अधीन किसी आदेश के संबंध में लागू होते हैं।
(4) इस धारा के अधीन किया गया कोई भी आदेश ऐसी अचल संपत्ति पर या उसमें किसी अधिकार या हित पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालेगा जिसे कोई व्यक्ति सिविल मुकदमे में स्थापित करने में सक्षम हो।
503. संपत्ति के अभिग्रहण पर पुलिस द्वारा प्रक्रिया।-- ( 1 ) जब कभी किसी पुलिस अधिकारी द्वारा संपत्ति के अभिग्रहण की सूचना इस संहिता के उपबंधों के अधीन मजिस्ट्रेट को दी जाती है, और ऐसी संपत्ति किसी जांच या विचारण के दौरान दंड न्यायालय के समक्ष पेश नहीं की जाती, तब मजिस्ट्रेट ऐसी संपत्ति के व्ययन के संबंध में या उस संपत्ति को उस व्यक्ति को सौंपने के संबंध में, जो उस पर कब्जे का हकदार है, या यदि ऐसे व्यक्ति का पता नहीं लगाया जा सकता है, तो ऐसी संपत्ति की अभिरक्षा और पेश करने के संबंध में ऐसा आदेश दे सकता है, जैसा वह ठीक समझे।
( 2 ) यदि इस प्रकार हकदार व्यक्ति ज्ञात है, तो मजिस्ट्रेट संपत्ति को ऐसी शर्तों पर (यदि कोई हों) उसे सौंपने का आदेश दे सकता है, जिन्हें मजिस्ट्रेट ठीक समझे और यदि ऐसा व्यक्ति अज्ञात है, तो मजिस्ट्रेट उसे निरुद्ध कर सकता है और ऐसी स्थिति में वह एक उद्घोषणा जारी करेगा, जिसमें ऐसी संपत्ति में शामिल वस्तुएं निर्दिष्ट की जाएंगी और उस पर दावा करने वाले किसी भी व्यक्ति से यह अपेक्षा की जाएगी कि वह ऐसी उद्घोषणा की तारीख से छह मास के भीतर उसके समक्ष उपस्थित हो और अपना दावा सिद्ध करे।
504. जहां छह मास के भीतर कोई दावेदार उपस्थित नहीं होता वहां प्रक्रिया।- ( 1 ) यदि ऐसी अवधि के भीतर कोई व्यक्ति ऐसी संपत्ति पर अपना दावा स्थापित नहीं करता है और यदि वह व्यक्ति जिसके कब्जे में ऐसी संपत्ति पाई गई है यह दर्शाने में असमर्थ है कि वह संपत्ति उसके द्वारा वैध रूप से अर्जित की गई थी तो मजिस्ट्रेट आदेश द्वारा निर्देश दे सकेगा कि ऐसी संपत्ति राज्य सरकार के अधीन होगी और वह सरकार उसे बेच सकेगी और ऐसी बिक्री से प्राप्त आय का निपटान ऐसी रीति से किया जाएगा जैसा राज्य सरकार नियमों द्वारा उपबंधित करे।
( 2 ) किसी ऐसे आदेश के विरुद्ध अपील उस न्यायालय में की जाएगी जिसमें मजिस्ट्रेट द्वारा दोषसिद्धि के विरुद्ध सामान्यतः अपील की जाती है।
505. नाशवान सम्पत्ति को बेचने की शक्ति। यदि ऐसी सम्पत्ति पर कब्जे का हकदार व्यक्ति अज्ञात है या अनुपस्थित है और सम्पत्ति शीघ्र और प्राकृतिक रूप से क्षयशील है, या यदि वह मजिस्ट्रेट, जिसे उसके अभिग्रहण की सूचना दी गई है, यह राय रखता है कि उसका विक्रय स्वामी के फायदे के लिए होगा, या ऐसी सम्पत्ति का मूल्य दस हजार रुपए से कम है, तो मजिस्ट्रेट किसी भी समय उसे बेचे जाने का निदेश दे सकता है; और धारा 503 और 504 के उपबन्ध, यथाशक्य, ऐसे विक्रय के शुद्ध आगमों पर लागू होंगे।