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अध्याय 37

 अध्याय 37

नियमित कार्यवाही 

506. कार्यवाही को दूषित नहीं करतीं- यदि कोई मजिस्ट्रेट निम्नलिखित में से कोई बात करने के लिए कानून द्वारा सशक्त नहीं है, अर्थात:- 

(a) धारा 97 के अंतर्गत तलाशी वारंट जारी करना;

(b) धारा 174 के अंतर्गत पुलिस को किसी अपराध की जांच करने का आदेश देना;

(c) धारा 196 के अंतर्गत जांच करना;

(d) धारा 207 के अधीन अपने स्थानीय अधिकार क्षेत्र के भीतर किसी ऐसे व्यक्ति को पकड़ने के लिए आदेशिका जारी करना, जिसने ऐसे अधिकार क्षेत्र की सीमाओं के बाहर कोई अपराध किया हो;

(e) धारा 210 की उपधारा ( 1 ) के खंड ( क ) या खंड ( ख ) के अधीन किसी अपराध का संज्ञान लेना ;

(f) धारा 212 की उपधारा ( 2 ) के अधीन मामला सौंपना ;

(g) धारा 343 के अंतर्गत क्षमादान देना;

(h) धारा 450 के अंतर्गत किसी मामले को पुनः वापस बुलाना तथा स्वयं उसका परीक्षण करना; या

(i) धारा 504 या धारा 505 के अधीन संपत्ति बेचने के लिए, गलती से सद्भावपूर्वक वह कार्य करता है, तो उसकी कार्यवाही केवल इस आधार पर अपास्त नहीं की जाएगी कि वह ऐसा करने के लिए सशक्त नहीं है।

507. अनियमितताएं जो कार्यवाही को दूषित करती हैं.- यदि कोई मजिस्ट्रेट, इस संबंध में विधि द्वारा सशक्त न होते हुए, निम्नलिखित में से कोई कार्य करता है, अर्थात :— ( क ) धारा 85 के अधीन संपत्ति कुर्क करता है और बेचता है;

(b) डाक प्राधिकारी की हिरासत में किसी दस्तावेज, पार्सल या अन्य चीजों के लिए तलाशी वारंट जारी करना;

(c) शांति बनाए रखने के लिए सुरक्षा की मांग करता है;

(d) अच्छे आचरण के लिए सुरक्षा की मांग करता है;

(e) अच्छे आचरण के लिए विधिपूर्वक आबद्ध किसी व्यक्ति को पदच्युत करना;

(f) शांति बनाए रखने के लिए बांड रद्द करता है; ( छ ) भरण-पोषण के लिए आदेश देता है;

(h) स्थानीय उपद्रव के संबंध में धारा 152 के अधीन आदेश पारित करता है;

(i) धारा 162 के तहत सार्वजनिक उपद्रव की पुनरावृत्ति या जारी रहने पर रोक लगाता है;

(j) अध्याय XI के भाग C या भाग D के अंतर्गत आदेश पारित करता है;

(k) धारा 210 की उपधारा ( 1 ) के खंड ( ग ) के अधीन किसी अपराध का संज्ञान लेता है ; ( ठ ) किसी अपराधी का विचारण करता है;

(m) अपराधी का संक्षिप्त परीक्षण करता है;

(n) किसी अन्य मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज की गई कार्यवाही पर धारा 364 के तहत सजा पारित करता है;

(o) अपील पर निर्णय लेता है;

(p) धारा 438 के अंतर्गत कार्यवाही के लिए आह्वान करता है; या

(q) धारा 491 के तहत पारित आदेश को संशोधित करता है, तो उसकी कार्यवाही शून्य हो जाएगी।

508. स्थान पर कार्यवाही - किसी भी दंड न्यायालय का कोई निष्कर्ष, दंडादेश या आदेश केवल इस आधार पर रद्द नहीं किया जाएगा कि जांच, विचारण या अन्य कार्यवाही, जिसके दौरान वह निष्कर्ष निकाला गया था या पारित किया गया था, गलत सत्र खंड, जिला, उप-खंड या अन्य स्थानीय क्षेत्र में हुई थी, जब तक कि यह प्रतीत न हो कि ऐसी त्रुटि वास्तव में न्याय की विफलता का कारण बनी है।

509. धारा 183 या धारा 316 के उपबंधों का अनुपालन न करना। - ( 1 ) यदि कोई न्यायालय जिसके समक्ष किसी अभियुक्त व्यक्ति का संस्वीकृति या अन्य कथन, जो धारा 183 या धारा 316 के अधीन अभिलिखित है या अभिलिखित होने का तात्पर्य है, प्रस्तुत किया गया है या साक्ष्य में प्राप्त हुआ है, पाता है कि कथन अभिलिखित करने वाले मजिस्ट्रेट द्वारा ऐसी धाराओं में से किसी के उपबंध का अनुपालन नहीं किया गया है, तो वह भारतीय दंड संहिता की धारा 94 में किसी बात के होते हुए भी, साक्ष्य अधिनियम , 2023 के तहत, न्यायालय ऐसे गैर-अनुपालन के संबंध में साक्ष्य ले सकेगा और यदि वह संतुष्ट हो जाए कि ऐसे गैर-अनुपालन से अभियुक्त को उसके बचाव में गुण-दोष के आधार पर कोई क्षति नहीं पहुंची है और उसने विधिवत् रूप से अभिलिखित कथन दिया है, तो वह ऐसे कथन को स्वीकार कर सकेगा।

( 2 ) इस धारा के प्रावधान अपील, संदर्भ और पुनरीक्षण न्यायालयों पर लागू होंगे।

510. आरोप विरचित करने में चूक का प्रभाव, या आरोप का अभाव या त्रुटि का प्रभाव।-- ( 1 ) सक्षम अधिकारिता वाले न्यायालय द्वारा दिया गया कोई निष्कर्ष, दण्डादेश या आदेश केवल इस आधार पर अवैध नहीं समझा जाएगा कि कोई आरोप विरचित नहीं किया गया था या आरोप में किसी त्रुटि, चूक या अनियमितता के आधार पर, जिसके अंतर्गत आरोपों का गलत संयोजन भी है, तब तक अवैध नहीं समझा जाएगा जब तक कि अपील, पुष्टि या पुनरीक्षण न्यायालय की राय में उसके कारण वास्तव में न्याय में असफलता न हुई हो।

( 2 ) यदि अपील, पुष्टि या पुनरीक्षण न्यायालय की यह राय है कि वास्तव में न्याय में असफलता हुई है, तो वह ,— 

(a) आरोप विरचित करने में चूक की स्थिति में, आदेश दे सकेगा कि आरोप विरचित किया जाए, तथा आरोप विरचित किए जाने के तुरन्त बाद के बिन्दु से विचारण पुनः प्रारम्भ किया जाए;

(b) आरोप में किसी त्रुटि, चूक या अनियमितता की स्थिति में, आरोप पर नए सिरे से सुनवाई करने का निर्देश दे सकेगी, जैसा भी वह उचित समझे:

परन्तु यदि न्यायालय की यह राय है कि मामले के तथ्य ऐसे हैं कि साबित तथ्यों के आधार पर अभियुक्त के विरुद्ध कोई वैध आरोप नहीं लगाया जा सकता, तो वह दोषसिद्धि को अभिखंडित कर देगा।

511. त्रुटि, चूक या अनियमितता के कारण निष्कर्ष या दंडादेश का प्रतिवर्ती होना। - ( 1 ) इसमें पूर्व में अंतर्विष्ट उपबंधों के अधीन रहते हुए, सक्षम अधिकारिता वाले न्यायालय द्वारा पारित कोई निष्कर्ष, दंडादेश या आदेश किसी अपील, पुनरीक्षण या पुष्टिकरण न्यायालय द्वारा इस संहिता के अधीन परीक्षण से पूर्व या उसके दौरान या किसी जांच या अन्य कार्यवाही में शिकायत, समन, वारंट, उद्घोषणा, आदेश, निर्णय या अन्य कार्यवाही में किसी त्रुटि, चूक या अनियमितता के कारण या अभियोजन के लिए किसी मंजूरी में किसी त्रुटि या अनियमितता के कारण तब तक उलटा या परिवर्तित नहीं किया जाएगा, जब तक कि उस न्यायालय की राय में उसके कारण वास्तव में न्याय में असफलता न हुई हो।

( 2 ) यह अवधारित करते समय कि क्या इस संहिता के अधीन किसी कार्यवाही में कोई त्रुटि, चूक या अनियमितता, अथवा अभियोजन के लिए किसी मंजूरी में कोई त्रुटि या अनियमितता के कारण न्याय में असफलता हुई है, न्यायालय को इस तथ्य पर ध्यान देना होगा कि क्या कार्यवाही के किसी पूर्वतर चरण में आपत्ति उठाई जा सकती थी और उठाई जानी चाहिए थी।

 

512. त्रुटि या भूल के कारण कुर्की अवैध नहीं होगी - इस संहिता के अधीन की गई कोई भी कुर्की अवैध नहीं मानी जाएगी, और न ही उसे करने वाला कोई व्यक्ति, समन, दोषसिद्धि, कुर्की रिट या उससे संबंधित अन्य कार्यवाही में किसी त्रुटि या प्रारूप के अभाव के कारण अतिचारी समझा जाएगा।


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