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अध्याय 6

 अध्याय 6

62.   समन का प्ररूप - इस संहिता के अधीन न्यायालय द्वारा जारी किया गया प्रत्येक समन , -

(i)               लिखित रूप में, दो प्रतियों में, ऐसे न्यायालय के पीठासीन अधिकारी द्वारा या ऐसे अन्य अधिकारी द्वारा, जिसे उच्च न्यायालय समय-समय पर नियम द्वारा निर्दिष्ट करे, हस्ताक्षरित होगा और उस पर न्यायालय की मुहर होगी; या

(ii)             एन्क्रिप्टेड या किसी अन्य इलेक्ट्रॉनिक संचार के रूप में और उस पर न्यायालय की मुहर या डिजिटल हस्ताक्षर की छवि होगी।

63.   तामील कैसे की जाएगी .-- ( 1 ) प्रत्येक समन की तामील पुलिस अधिकारी द्वारा की जाएगी, या ऐसे नियमों के अधीन रहते हुए, जो राज्य सरकार इस निमित्त बनाए, उसे जारी करने वाले न्यायालय के अधिकारी या अन्य लोक सेवक द्वारा की जाएगी:

बशर्ते कि पुलिस थाना या न्यायालय में रजिस्ट्रार एक रजिस्टर बनाएगा जिसमें पता, ई-मेल पता, फोन नंबर और ऐसे अन्य विवरण दर्ज किए जाएंगे, जैसा कि राज्य सरकार नियमों द्वारा प्रदान कर सकती है।

(2)    यदि साध्य हो तो, सम्मन की तामील सम्मन किए गए व्यक्ति पर व्यक्तिगत रूप से की जाएगी, तथा उसे सम्मन की एक प्रति सौंपकर या प्रस्तुत करके की जाएगी:

परन्तु न्यायालय की मुहर की छवि वाले समन की तामील इलैक्ट्रानिक संसूचना द्वारा भी ऐसे प्ररूप में और ऐसे तरीके से की जा सकेगी, जैसा राज्य सरकार नियमों द्वारा उपबंधित करे।

(3)    प्रत्येक व्यक्ति, जिस पर व्यक्तिगत रूप से समन की तामील की जाती है, यदि तामील करने वाले अधिकारी द्वारा ऐसा अपेक्षित हो, तो दूसरी प्रति के पीछे रसीद पर हस्ताक्षर करेगा।

65. निगमित निकायों, फर्मों और सोसाइटियों पर समन की तामील ।--( 1 ) किसी कंपनी या निगम पर समन की तामील उस कंपनी या निगम के निदेशक, प्रबंधक, सचिव या अन्य अधिकारी पर तामील करके या कंपनी या निगम के भारत में निदेशक, प्रबंधक, सचिव या अन्य अधिकारी को संबोधित पंजीकृत डाक द्वारा भेजे गए पत्र द्वारा की जा सकेगी, ऐसी स्थिति में तामील उस समय की गई मानी जाएगी जब पत्र सामान्य डाक द्वारा पहुंचेगा।

स्पष्टीकरण- इस धारा में, "कंपनी" से निगमित निकाय अभिप्रेत है और "निगम" से कंपनी अधिनियम, 2013 (2013 का 18) के अधीन पंजीकृत निगमित कंपनी या अन्य निगमित निकाय या सोसाइटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1860 (1860 का 21) के अधीन पंजीकृत सोसाइटी अभिप्रेत है।

( 2 ) किसी फर्म या व्यक्तियों के अन्य संगम पर समन की तामील ऐसी फर्म या संगम के किसी भागीदार पर तामील करके या ऐसे भागीदार को संबोधित पंजीकृत डाक द्वारा भेजे गए पत्र द्वारा की जा सकेगी , ऐसी स्थिति में तामील तब की गई समझी जाएगी जब पत्र सामान्य डाक द्वारा पहुंचेगा।

66.   जब समन किए गए व्यक्ति नहीं मिल पाते हैं तब तामील - जहां समन किए गए व्यक्ति को सम्यक् तत्परता के प्रयोग से नहीं पाया जा सकता है, वहां समन की तामील उसके साथ रहने वाले उसके परिवार के किसी वयस्क सदस्य के पास उसकी एक प्रति छोड़कर की जा सकेगी और वह व्यक्ति जिसके पास समन इस प्रकार छोड़ा गया है, यदि तामील करने वाले अधिकारी द्वारा ऐसी अपेक्षा की जाए तो वह दूसरी प्रति के पीछे उसकी रसीद पर हस्ताक्षर करेगा।

स्पष्टीकरण -- इस धारा के अर्थ में नौकर परिवार का सदस्य नहीं है।

67.   प्रक्रिया जब तामील पूर्व उपबंधित रूप में नहीं की जा सकती है - यदि तामील सम्यक् तत्परता के प्रयोग द्वारा धारा 64, धारा 65 या धारा 66 में उपबंधित रूप में नहीं की जा सकती है, तो तामील करने वाला अधिकारी समन की प्रतियों में से एक को उस घर या वासस्थान के किसी सहजदृश्य भाग में चिपका देगा जिसमें समन किया गया व्यक्ति सामान्यतः निवास करता है; और तब न्यायालय ऐसी जांच करने के पश्चात्, जैसी वह ठीक समझे, या तो यह घोषित कर सकेगा कि समन सम्यक् रूप से तामील कर दिया गया है या ऐसी रीति से, जैसी वह उचित समझे, नई तामील का आदेश दे सकेगा।

68.   सरकारी सेवक पर तामील .--( 1 ) जहां समन किया गया व्यक्ति सरकार की सक्रिय सेवा में है, वहां समन जारी करने वाला न्यायालय सामान्यतया उसे दो प्रतियों में उस कार्यालय के प्रधान को भेजेगा जिसमें ऐसा व्यक्ति नियोजित है; और ऐसा प्रधान तत्पश्चात् समन की तामील धारा 64 द्वारा उपबंधित रीति से कराएगा, और उस धारा द्वारा अपेक्षित पृष्ठांकन सहित अपने हस्ताक्षर से उसे न्यायालय को लौटा देगा।

( 2 ) ऐसा हस्ताक्षर सम्यक् तामील का साक्ष्य होगा।

69.   सीमाओं के बाहर समन की तामील - जब न्यायालय यह चाहता है कि उसके द्वारा जारी किया गया समन उसकी स्थानीय अधिकारिता के बाहर किसी स्थान पर तामील किया जाए, तो वह सामान्यतया ऐसे समन की दो प्रतियां उस मजिस्ट्रेट को भेजेगा, जिसकी स्थानीय अधिकारिता के भीतर समन किया गया व्यक्ति निवास करता है या वहां उसकी तामील की जानी है।

70.   ऐसे मामलों में तामील का सबूत और जब तामील करने वाला अधिकारी उपस्थित न हो।- ( 1 ) जब न्यायालय द्वारा जारी किया गया समन उसकी स्थानीय अधिकारिता के बाहर तामील किया जाता है और किसी ऐसे मामले में जहां समन तामील करने वाला अधिकारी मामले की सुनवाई के समय उपस्थित नहीं होता है, तो मजिस्ट्रेट के समक्ष दिया गया यह तात्पर्यित शपथपत्र कि ऐसा समन तामील किया गया है और समन की एक प्रति, जो उस व्यक्ति द्वारा, जिसे वह परिदत्त या निविदत्त किया गया था या जिसके पास वह छोड़ा गया था, पृष्ठांकित की गई है (धारा 64 या धारा 66 द्वारा उपबंधित रीति से) साक्ष्य में ग्राह्य होगी और उसमें किए गए कथन तब तक सही माने जाएंगे जब तक कि प्रतिकूल साबित न कर दिया जाए।

(2)    इस धारा में उल्लिखित शपथपत्र को समन की दूसरी प्रति के साथ संलग्न करके न्यायालय को वापस किया जा सकता है।

(3)    धारा 64 से 71 (दोनों सम्मिलित) के अंतर्गत इलेक्ट्रॉनिक संचार के माध्यम से भेजे गए सभी समन को विधिवत् तामील माना जाएगा और ऐसे समन की एक प्रति सत्यापित की जाएगी तथा उसे समन की तामील के सबूत के रूप में रखा जाएगा।

71. साक्षी पर समन की तामील ।--( 1 ) इस अध्याय की पूर्ववर्ती धाराओं में किसी बात के होते हुए भी, साक्षी को समन जारी करने वाला न्यायालय, ऐसे समन के जारी करने के अतिरिक्त और उसके साथ-साथ, यह निर्देश दे सकता है कि समन की एक प्रति, साक्षी को संबोधित करते हुए, इलैक्ट्रानिक संसूचना या पंजीकृत डाक द्वारा, उस स्थान पर तामील की जाए, जहां वह साधारणतया निवास करता है या कारबार करता है या अभिलाभ के लिए व्यक्तिगत रूप से काम करता है।

( 2 ) जब साक्षी द्वारा हस्ताक्षरित अभिस्वीकृति या डाक कर्मचारी द्वारा किया गया पृष्ठांकन प्राप्त हो जाता है कि साक्षी ने समन की डिलीवरी लेने से इनकार कर दिया है या न्यायालय की संतुष्टि के लिए धारा 70 की उपधारा ( 3 ) के तहत इलेक्ट्रॉनिक संचार द्वारा समन की डिलीवरी के सबूत पर, समन जारी करने वाला न्यायालय यह मान सकता है कि समन की विधिवत् तामील कर दी गई है। बी - गिरफ्तारी का वारंट

72. गिरफ्तारी वारंट का प्ररूप और अवधि .-- ( 1 ) इस संहिता के अधीन न्यायालय द्वारा जारी किया गया प्रत्येक गिरफ्तारी वारंट लिखित होगा, उस न्यायालय के पीठासीन अधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित होगा तथा उस पर न्यायालय की मुहर लगी होगी।

( 2 ) ऐसा प्रत्येक वारंट तब तक प्रवृत्त रहेगा जब तक उसे जारी करने वाले न्यायालय द्वारा रद्द नहीं कर दिया जाता है, या जब तक उसे निष्पादित नहीं कर दिया जाता है।

73. प्रतिभूति लेने का निदेश देने की शक्ति ।--( 1 ) किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी के लिए वारंट जारी करने वाला कोई न्यायालय, वारंट पर पृष्ठांकन द्वारा स्वविवेकानुसार निदेश दे सकेगा कि यदि ऐसा व्यक्ति न्यायालय के समक्ष विनिर्दिष्ट समय पर और उसके पश्चात् जब तक न्यायालय द्वारा अन्यथा निदेश न दिया जाए, उपस्थित रहने के लिए पर्याप्त प्रतिभुओं सहित जमानत बंधपत्र निष्पादित करता है तो वह अधिकारी, जिसके लिए वारंट निर्दिष्ट है, ऐसी प्रतिभूति ले लेगा और ऐसे व्यक्ति को हिरासत से छोड़ देगा।

(2)                   अनुमोदन में यह कहा जाएगा-

(a)    जमानतदारों की संख्या;

(b)    वह राशि जिससे वे और वह व्यक्ति जिसके लिए गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया है, क्रमशः बाध्य होंगे;

(c)    वह समय जिस पर उसे न्यायालय के समक्ष उपस्थित होना है।

(3)                   जब कभी इस धारा के अधीन प्रतिभूति ली जाती है तो वह अधिकारी, जिसके लिए वारंट जारी किया गया है, बंधपत्र न्यायालय को भेजेगा।

74. वारंट किसके लिए जारी किया जाएगा - ( 1 ) गिरफ्तारी का वारंट सामान्यतया एक या अधिक पुलिस अधिकारियों के लिए जारी किया जाएगा; किन्तु ऐसा वारंट जारी करने वाला न्यायालय, यदि उसका तत्काल निष्पादन आवश्यक है और कोई पुलिस अधिकारी तत्काल उपलब्ध नहीं है, तो उसे किसी अन्य व्यक्ति या व्यक्तियों के लिए जारी कर सकेगा और ऐसा व्यक्ति या व्यक्ति उसे जारी करेंगे।

( 2 ) जब कोई वारंट एक से अधिक अधिकारियों या व्यक्तियों के लिए निर्देशित हो, तो उसे सभी द्वारा, अथवा उनमें से किसी एक या अधिक द्वारा निष्पादित किया जा सकेगा।

75. वारंट किसी भी व्यक्ति को जारी किया जा सकेगा । - ( 1 ) मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट या प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट किसी भी फरार सिद्धदोष, उद्घोषित अपराधी या किसी ऐसे व्यक्ति को, जो किसी अजमानतीय अपराध का अभियुक्त है और गिरफ्तारी से बच रहा है, गिरफ्तार करने के लिए अपनी स्थानीय अधिकारिता के भीतर किसी भी व्यक्ति को वारंट जारी करने का निर्देश दे सकेगा।

(2)    ऐसा व्यक्ति लिखित रूप में वारंट की प्राप्ति की पुष्टि करेगा, तथा यदि वह व्यक्ति, जिसकी गिरफ्तारी के लिए वारंट जारी किया गया है, उसके प्रभार के अधीन किसी भूमि या अन्य संपत्ति में है या प्रवेश करता है, तो उसे निष्पादित करेगा।

(3)    जब वह व्यक्ति जिसके विरुद्ध ऐसा वारंट जारी किया गया है, गिरफ्तार किया जाता है तो उसे वारंट सहित निकटतम पुलिस अधिकारी को सौंप दिया जाएगा, जो उसे उस मामले में अधिकारिता रखने वाले मजिस्ट्रेट के समक्ष ले जाएगा, जब तक कि धारा 73 के अधीन प्रतिभूति न ले ली गई हो।

76.   पुलिस अधिकारी को दिया गया वारंट .— किसी पुलिस अधिकारी को दिया गया वारंट किसी अन्य पुलिस अधिकारी द्वारा भी निष्पादित किया जा सकता है जिसका नाम उस अधिकारी द्वारा वारंट पर पृष्ठांकित किया गया है जिसके लिए वह वारंट दिया गया है या पृष्ठांकित किया गया है।

77.   वारंट के सार की अधिसूचना - गिरफ्तारी वारंट को निष्पादित करने वाला पुलिस अधिकारी या अन्य व्यक्ति गिरफ्तार किए जाने वाले व्यक्ति को उसके सार की अधिसूचना देगा और यदि अपेक्षित हो तो उसे वारंट दिखाएगा।

78.   अविलंब न्यायालय के समक्ष पेश किया जाना - गिरफ्तारी वारंट को निष्पादित करने वाला पुलिस अधिकारी या अन्य व्यक्ति (सुरक्षा के संबंध में धारा 73 के उपबंधों के अधीन रहते हुए) गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को अनावश्यक विलंब के बिना उस न्यायालय के समक्ष पेश करेगा जिसके समक्ष उसे ऐसे व्यक्ति को पेश करने की विधि द्वारा अपेक्षा की जाती है:

परन्तु ऐसा विलम्ब किसी भी दशा में गिरफ्तारी के स्थान से मजिस्ट्रेट के न्यायालय तक की यात्रा के लिए आवश्यक समय को छोड़कर चौबीस घंटे से अधिक नहीं होगा।

79.   वारंट कहां निष्पादित किया जा सकेगा - गिरफ्तारी का वारंट भारत में किसी भी स्थान पर निष्पादित किया जा सकेगा।

80.   अधिकारिता के बाहर निष्पादन के लिए भेजा गया वारंट - ( 1 ) जब किसी वारंट को उसे जारी करने वाले न्यायालय की स्थानीय अधिकारिता के बाहर निष्पादित किया जाना है, तब ऐसा न्यायालय वारंट को अपनी अधिकारिता के भीतर किसी पुलिस अधिकारी को भेजने के बजाय उसे डाक द्वारा या अन्यथा किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट या जिला पुलिस अधीक्षक या पुलिस आयुक्त को भेज सकेगा, जिसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर उसे निष्पादित किया जाना है; और कार्यपालक मजिस्ट्रेट या जिला अधीक्षक या आयुक्त उस पर अपना नाम पृष्ठांकित करेगा, और यदि साध्य हो, तो उसे इसमें इसके पूर्व उपबंधित रीति से निष्पादित कराएगा।

( 2 ) उपधारा ( 1 ) के अधीन वारंट जारी करने वाला न्यायालय, वारंट के साथ गिरफ्तार किए जाने वाले व्यक्ति के विरुद्ध सूचना का सार तथा ऐसे दस्तावेज, यदि कोई हों, भेजेगा जो धारा 83 के अधीन कार्य करने वाले न्यायालय को यह विनिश्चय करने में समर्थ बनाने के लिए पर्याप्त हों कि उस व्यक्ति को जमानत दी जानी चाहिए या नहीं।

81. अधिकारिता के बाहर निष्पादन के लिए पुलिस अधिकारी को निदेशित वारंट - ( 1 ) जब किसी पुलिस अधिकारी को निदेशित वारंट को उसे जारी करने वाले न्यायालय की स्थानीय अधिकारिता के बाहर निष्पादित किया जाना है, तब वह उसे सामान्यतः या तो कार्यपालक मजिस्ट्रेट के पास या किसी ऐसे पुलिस अधिकारी के पास, जो उस पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी की पंक्ति से नीचे का नहीं होगा, पृष्ठांकन के लिए ले जाएगा, जिसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर वारंट निष्पादित किया जाना है।

(2)    ऐसा मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी उस पर अपना नाम अंकित करेगा और ऐसा अंकित करना उस पुलिस अधिकारी के लिए पर्याप्त प्राधिकार होगा, जिसे वारंट निष्पादित करने के लिए निर्देशित किया गया है, और स्थानीय पुलिस, यदि अपेक्षित हो, ऐसे वारंट को निष्पादित करने में ऐसे अधिकारी की सहायता करेगी।

(3)    जब कभी यह विश्वास करने का कारण हो कि उस मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी का, जिसकी स्थानीय अधिकारिता के भीतर वारंट निष्पादित किया जाना है, पृष्ठांकन प्राप्त करने में हुआ विलम्ब ऐसे निष्पादन को रोक देगा, तो वह पुलिस अधिकारी, जिसके लिए वह वारंट निर्दिष्ट है, उसे ऐसे पृष्ठांकन के बिना, उस न्यायालय की स्थानीय अधिकारिता से परे, जिसने उसे जारी किया है, किसी स्थान पर निष्पादित कर सकता है।

82. उस व्यक्ति की गिरफ्तारी पर प्रक्रिया जिसके विरुद्ध वारंट जारी किया गया है ।--( 1 ) जब गिरफ्तारी का वारंट उस जिले के बाहर निष्पादित किया जाता है जिसमें वह जारी किया गया था, तब गिरफ्तार व्यक्ति को, जब तक कि वह न्यायालय, जिसने वारंट जारी किया था, गिरफ्तारी के स्थान से तीस किलोमीटर के भीतर न हो या उस कार्यपालक मजिस्ट्रेट या जिला पुलिस अधीक्षक या पुलिस आयुक्त से निकट न हो जिसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर गिरफ्तारी की गई थी, या जब तक कि धारा 73 के अधीन प्रतिभूति न ले ली गई हो, ऐसे मजिस्ट्रेट या जिला अधीक्षक या आयुक्त के समक्ष ले जाया जाएगा।

( 2 ) उपधारा ( 1 ) में निर्दिष्ट किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी पर, पुलिस अधिकारी ऐसी गिरफ्तारी और उस स्थान के संबंध में जहां गिरफ्तार व्यक्ति को रखा जा रहा है, सूचना तत्काल जिले में पदाभिहित पुलिस अधिकारी को और दूसरे जिले के ऐसे अधिकारी को देगा जहां गिरफ्तार व्यक्ति सामान्यतः निवास करता है।

83. उस मजिस्ट्रेट द्वारा प्रक्रिया जिसके समक्ष गिरफ्तार किया गया व्यक्ति लाया जाता है - ( 1 ) यदि गिरफ्तार किया गया व्यक्ति वह व्यक्ति प्रतीत होता है जिसे वह न्यायालय, जिसने वारंट जारी किया था, द्वारा अपेक्षित किया गया है, कार्यपालक मजिस्ट्रेट या जिला पुलिस अधीक्षक या पुलिस आयुक्त उसे ऐसे न्यायालय की अभिरक्षा में ले जाने का निर्देश देगा:

परंतु यदि अपराध जमानतीय है और ऐसा व्यक्ति ऐसे मजिस्ट्रेट, जिला अधीक्षक या आयुक्त के समाधानप्रद रूप में जमानत बांड देने के लिए तैयार और रजामंद है या वारंट पर धारा 73 के अधीन निदेश पृष्ठांकित किया गया है और ऐसा व्यक्ति ऐसे निदेश द्वारा अपेक्षित प्रतिभूति देने के लिए तैयार और रजामंद है तो मजिस्ट्रेट, जिला अधीक्षक या आयुक्त, यथास्थिति, ऐसा जमानत बांड या प्रतिभूति लेगा और बांड को उस न्यायालय को भेजेगा जिसने वारंट जारी किया था:

आगे यह भी प्रावधान है कि यदि अपराध अजमानतीय है तो मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (धारा 480 के उपबंधों के अधीन) या उस जिले के सत्र न्यायाधीश के लिए, जिसमें गिरफ्तारी की गई है, धारा 80 की उपधारा (2 ) में निर्दिष्ट सूचना और दस्तावेजों पर विचार करने के बाद , ऐसे व्यक्ति को जमानत पर रिहा करना वैध होगा।

( 2 ) इस धारा की कोई बात किसी पुलिस अधिकारी को धारा 73 के अधीन सुरक्षा लेने से रोकने वाली नहीं समझी जाएगी।

सी.—उद्घोषणा और कुर्की

84. फरार व्यक्ति के लिए उद्घोषणा ।--( 1 ) यदि किसी न्यायालय को यह विश्वास करने का कारण है (साक्ष्य लेने के पश्चात् या नहीं) कि कोई व्यक्ति, जिसके विरुद्ध उसके द्वारा वारंट जारी किया गया है, फरार हो गया है या अपने को इस प्रकार छिपा रहा है कि ऐसे वारंट का निष्पादन नहीं किया जा सकता, तो ऐसा न्यायालय उससे यह अपेक्षा करते हुए लिखित उद्घोषणा प्रकाशित कर सकेगा कि वह ऐसी उद्घोषणा के प्रकाशन की तारीख से कम से कम तीस दिन के भीतर विनिर्दिष्ट स्थान पर और विनिर्दिष्ट समय पर उपस्थित हो।

(2)    घोषणा निम्नानुसार प्रकाशित की जाएगी:—

(i)               ( ) इसे उस नगर या गांव के किसी प्रमुख स्थान पर सार्वजनिक रूप से पढ़ा जाएगा जिसमें ऐसा व्यक्ति सामान्यतः निवास करता है;

(b)         इसे उस घर या वासस्थान के किसी सहजदृश्य भाग पर, जिसमें ऐसा व्यक्ति सामान्यतः निवास करता है, या ऐसे नगर या गांव के किसी सहजदृश्य स्थान पर लगाया जाएगा;

(c)         इसकी एक प्रतिलिपि न्यायालय के किसी प्रमुख भाग पर चिपका दी जाएगी;

(ii)             न्यायालय, यदि वह ठीक समझे, तो उद्घोषणा की एक प्रति उस स्थान में प्रसारित होने वाले दैनिक समाचारपत्र में प्रकाशित करने का निर्देश भी दे सकता है जहां ऐसा व्यक्ति सामान्यतः निवास करता है।

(3)    उद्घोषणा जारी करने वाले न्यायालय द्वारा लिखित में यह कथन कि उद्घोषणा उपधारा ( 2 ) के खंड ( i ) में विनिर्दिष्ट रीति से विनिर्दिष्ट दिन को सम्यक् रूप से प्रकाशित कर दी गई थी, इस बात का निर्णायक साक्ष्य होगा कि इस धारा की अपेक्षाओं का अनुपालन किया गया है और उद्घोषणा ऐसे दिन प्रकाशित कर दी गई थी।

(4)    जहां उपधारा ( 1 ) के अधीन प्रकाशित उद्घोषणा किसी ऐसे व्यक्ति के संबंध में है जो किसी ऐसे अपराध का अभियुक्त है जो भारतीय न्याय संहिता, 2023 के अधीन या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन दस वर्ष या अधिक के कारावास या आजीवन कारावास या मृत्यु दण्ड से दण्डनीय है और ऐसा व्यक्ति उद्घोषणा द्वारा अपेक्षित विनिर्दिष्ट स्थान और समय पर उपस्थित होने में असफल रहता है, वहां न्यायालय ऐसी जांच करने के पश्चात्, जैसी वह ठीक समझे, उसे उद्घोषित अपराधी घोषित कर सकेगा और इस आशय की घोषणा कर सकेगा।

(5)    उपधारा ( 2 ) और ( 3 ) के उपबंध न्यायालय द्वारा उपधारा ( 4 ) के अधीन की गई घोषणा पर उसी प्रकार लागू होंगे, जैसे वे उपधारा ( 1 ) के अधीन प्रकाशित उद्घोषणा पर लागू होते हैं।

फरार व्यक्ति की संपत्ति की कुर्की ।-- ( 1 ) धारा 84 के अधीन उद्घोषणा जारी करने वाला न्यायालय, कारणों को लेखबद्ध करके, उद्घोषणा जारी करने के पश्चात किसी भी समय उद्घोषित व्यक्ति की किसी भी संपत्ति, चाहे वह चल हो या स्थावर, या दोनों हो, की कुर्की का आदेश दे सकेगा:

परंतु जहां उद्घोषणा जारी किए जाने के समय न्यायालय का शपथपत्र द्वारा या अन्यथा समाधान हो जाता है कि वह व्यक्ति जिसके संबंध में उद्घोषणा जारी की जानी है, -

(a)         अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति या उसके किसी भाग का निपटान करने वाला है; या

(b)         अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति या उसके किसी भाग को न्यायालय के स्थानीय अधिकार क्षेत्र से बाहर ले जाने वाला है, तो वह उद्घोषणा जारी करने के साथ-साथ सम्पत्ति की कुर्की का आदेश दे सकता है।

(2)    ऐसा आदेश उस जिले के भीतर ऐसे व्यक्ति की किसी संपत्ति की कुर्की को प्राधिकृत करेगा जिसमें वह बनाया गया है; और वह ऐसे व्यक्ति की किसी संपत्ति की ऐसे जिले के बाहर कुर्की को प्राधिकृत करेगा जब वह उस जिला मजिस्ट्रेट द्वारा पृष्ठांकित किया गया हो जिसके जिले में ऐसी संपत्ति स्थित है।

(3)    यदि कुर्क की जाने वाली संपत्ति ऋण या अन्य चल संपत्ति है, तो इस धारा के अधीन कुर्की- ( ) अभिग्रहण द्वारा की जाएगी; या

(b)    रिसीवर की नियुक्ति द्वारा; या

(c)    लिखित आदेश द्वारा ऐसी संपत्ति को घोषित व्यक्ति या उसकी ओर से किसी अन्य को सौंपने पर रोक लगाई जा सकती है; या

(d)    उन सभी या किन्हीं दो विधियों द्वारा, जिन्हें न्यायालय उचित समझे।

(4)    यदि कुर्क की जाने वाली आदेशित संपत्ति अचल है, तो इस धारा के अधीन कुर्की, राज्य सरकार को राजस्व देने वाली भूमि के मामले में, उस जिले के कलेक्टर के माध्यम से की जाएगी जिसमें भूमि स्थित है, और अन्य सभी मामलों में -

(a)    कब्ज़ा करके; या

(b)    रिसीवर की नियुक्ति द्वारा; या

(c)    लिखित आदेश द्वारा घोषित व्यक्ति को या उसकी ओर से किसी अन्य को संपत्ति सौंपे जाने पर किराये के भुगतान पर रोक लगाई जा सकती है; या

(d)    उन सभी या किन्हीं दो विधियों द्वारा, जिन्हें न्यायालय उचित समझे।

(5)    यदि कुर्क की जाने वाली संपत्ति में पशुधन शामिल है या वह नाशवान प्रकृति की है, तो न्यायालय, यदि वह समीचीन समझे, तो उसकी तत्काल बिक्री का आदेश दे सकता है, और ऐसी स्थिति में बिक्री से प्राप्त राशि न्यायालय के आदेश के अधीन होगी।

(6)    इस धारा के अधीन नियुक्त रिसीवर की शक्तियां, कर्तव्य और दायित्व वही होंगे जो सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) के अधीन नियुक्त रिसीवर के हैं।

86.   व्यक्ति की संपत्ति की पहचान और कुर्की । - न्यायालय, पुलिस अधीक्षक या पुलिस आयुक्त के पद से नीचे के पद के न होने वाले पुलिस अधिकारी के लिखित अनुरोध पर, अध्याय VIII में प्रदान की गई प्रक्रिया के अनुसार घोषित व्यक्ति से संबंधित संपत्ति की पहचान, कुर्की और जब्ती के लिए अनुबंधकारी राज्य के न्यायालय या प्राधिकरण से सहायता का अनुरोध करने की प्रक्रिया शुरू कर सकता है।

87.   कुर्की के संबंध में दावे और आक्षेप ।--( 1 ) यदि धारा 85 के अधीन कुर्क की गई किसी संपत्ति के संबंध में उद्घोषित व्यक्ति से भिन्न किसी व्यक्ति द्वारा ऐसी कुर्की की तारीख से छह मास के भीतर इस आधार पर कोई दावा किया जाता है या कुर्की के संबंध में आक्षेप किया जाता है कि दावेदार या आक्षेपकर्ता का ऐसी संपत्ति में हित है और ऐसा हित धारा 85 के अधीन कुर्की योग्य नहीं है तो दावे या आक्षेप की जांच की जाएगी और उसे पूर्णतः या भागतः स्वीकार या अस्वीकार किया जा सकेगा:

परन्तु इस उपधारा द्वारा अनुज्ञात अवधि के भीतर किया गया कोई दावा या आक्षेप, दावेदार या आक्षेपकर्ता की मृत्यु की दशा में, उसके विधिक प्रतिनिधि द्वारा जारी रखा जा सकेगा।

(2)    उपधारा ( 1 ) के अधीन दावे या आक्षेप उस न्यायालय में किए जा सकेंगे, जिसने कुर्की का आदेश जारी किया है, अथवा यदि दावा या आक्षेप धारा 85 की उपधारा ( 2 ) के अधीन पृष्ठांकित आदेश के अधीन कुर्क की गई संपत्ति के संबंध में है, तो उस जिले के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय में किए जा सकेंगे, जिसमें कुर्की की गई है।

(3)    प्रत्येक ऐसे दावे या आपत्ति की जांच उस न्यायालय द्वारा की जाएगी जिसमें वह प्रस्तुत किया गया है या किया गया है:

परन्तु यदि वह किसी मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय में प्रस्तुत किया गया है या किया गया है तो वह उसे अपने अधीनस्थ किसी मजिस्ट्रेट को निपटान हेतु सौंप सकता है।

(4)    कोई व्यक्ति, जिसका दावा या आक्षेप उपधारा ( 1 ) के अधीन आदेश द्वारा पूर्णतः या भागतः अस्वीकृत कर दिया गया है, ऐसे आदेश की तारीख से एक वर्ष की अवधि के भीतर, विवादित संपत्ति के संबंध में अपने दावे के अधिकार को स्थापित करने के लिए वाद संस्थित कर सकेगा; किन्तु ऐसे वाद के परिणाम के, यदि कोई हो, अधीन रहते हुए, आदेश निश्चायक होगा।

संपत्ति की रिहाई, बिक्री और प्रत्यावर्तन ।-- ( 1 ) यदि उद्घोषित व्यक्ति उद्घोषणा में निर्दिष्ट समय के भीतर उपस्थित होता है, तो न्यायालय संपत्ति को कुर्की से मुक्त करने का आदेश देगा।

(2)    यदि घोषित व्यक्ति, घोषणा में निर्दिष्ट समय के भीतर उपस्थित नहीं होता है, तो कुर्क की गई संपत्ति राज्य सरकार के अधीन होगी; किन्तु उसे कुर्की की तारीख से छह मास की समाप्ति तक और धारा 87 के अधीन किए गए किसी दावे या आक्षेप का उस धारा के अधीन निपटारा होने तक नहीं बेचा जाएगा, जब तक कि वह शीघ्र और प्राकृतिक क्षय के अधीन न हो, या न्यायालय यह न समझे कि विक्रय स्वामी के लाभ के लिए होगा; इनमें से किसी भी मामले में न्यायालय जब भी ठीक समझे, उसका विक्रय करा सकेगा।

(3)    यदि कुर्की की तारीख से दो वर्ष के भीतर कोई व्यक्ति, जिसकी संपत्ति उपधारा ( 2 ) के अधीन राज्य सरकार के अधीन है या रही है, स्वेच्छा से हाजिर होता है या पकड़ा जाता है और उस न्यायालय के समक्ष लाया जाता है जिसके आदेश से संपत्ति कुर्क की गई थी या वह न्यायालय जिसके अधीन ऐसा न्यायालय है और वह ऐसे न्यायालय के समाधानप्रद रूप में साबित कर देता है कि वह वारंट के निष्पादन से बचने के प्रयोजन से फरार नहीं हुआ था या छिपा नहीं था और उसे उद्घोषणा की ऐसी सूचना नहीं थी जिससे वह उसमें विनिर्दिष्ट समय के भीतर हाजिर हो सके, तो ऐसी संपत्ति या यदि वह बेच दी गई है तो बिक्री से प्राप्त शुद्ध आय या यदि उसका केवल भाग बेचा गया है तो बिक्री से प्राप्त शुद्ध आय और संपत्ति का अवशेष, कुर्की के परिणामस्वरूप उपगत सभी लागतों की पूर्ति करने के पश्चात् उसे सौंप दिया जाएगा।

89.   संपत्ति की वापसी के लिए आवेदन को खारिज करने के आदेश से अपील - धारा 88 की उपधारा ( 3 ) में निर्दिष्ट कोई व्यक्ति, जो संपत्ति या उसके विक्रय से प्राप्त आय को देने से इंकार करने से व्यथित है, उस न्यायालय में अपील कर सकेगा, जिसमें प्रथम वर्णित न्यायालय के दण्डादेशों के विरुद्ध सामान्यतया अपील की जाती है।

 

डी.—प्रक्रियाओं से संबंधित अन्य नियम

90.   समन के बदले में या उसके अतिरिक्त वारंट जारी करना - न्यायालय, किसी ऐसे मामले में, जिसमें उसे इस संहिता द्वारा किसी व्यक्ति की उपस्थिति के लिए समन जारी करने का अधिकार दिया गया है, अपने कारणों को लिखित रूप में अभिलिखित करने के पश्चात् उसकी गिरफ्तारी के लिए वारंट जारी कर सकता है -

(a)              यदि, या तो ऐसे समन के जारी होने से पूर्व, या उसके जारी होने के पश्चात् किन्तु उसके उपस्थित होने के लिए नियत समय के पूर्व, न्यायालय को यह विश्वास करने का कारण दिखाई देता है कि वह फरार हो गया है या समन का पालन नहीं करेगा; या

(b)              यदि वह ऐसे समय पर उपस्थित होने में असफल रहता है और यह साबित हो जाता है कि समन की तामील समय पर कर दी गई है, जिससे कि वह उसके अनुसार उपस्थित हो सके और ऐसे असफल होने के लिए कोई उचित बहाना प्रस्तुत नहीं किया जाता है।

91.   उपस्थिति के लिए बंधपत्र या जमानतपत्र लेने की शक्ति - जब कोई व्यक्ति, जिसकी उपस्थिति या गिरफ्तारी के लिए किसी न्यायालय में पीठासीन अधिकारी समन या वारंट जारी करने के लिए सशक्त है, ऐसे न्यायालय में उपस्थित है, तो ऐसा अधिकारी ऐसे व्यक्ति से ऐसे न्यायालय में या किसी अन्य न्यायालय में, जिसमें मामला विचारण के लिए अंतरित किया जा सकता है, अपनी उपस्थिति के लिए बंधपत्र या जमानतपत्र निष्पादित करने की अपेक्षा कर सकेगा।

92.   उपस्थिति के लिए बांड या जमानत बांड के उल्लंघन पर गिरफ्तारी - जब कोई व्यक्ति, जो इस संहिता के तहत लिए गए किसी बांड या जमानत बांड से न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने के लिए आबद्ध है, उपस्थित नहीं होता है, तो ऐसे न्यायालय में पीठासीन अधिकारी एक वारंट जारी कर सकता है जिसमें निर्देश दिया जाता है कि ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाए और उसके समक्ष पेश किया जाए।

93.   गिरफ्तारी के समन और वारंट पर लागू होंगे।- इस अध्याय में समन और वारंट तथा उनके जारी किए जाने, तामील और निष्पादन से संबंधित उपबंध, जहां तक हो सके, इस संहिता के अधीन जारी किए गए प्रत्येक समन और प्रत्येक गिरफ्तारी वारंट पर लागू होंगे।

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